अध्यात्म ज्ञानवर्धक कहानी

यदि पाना चाहते है ईश्वर के दर्शन तो सुने यह कथा

Written by Bhakti Pravah

आज के इस युग में लगभग हर धर्मं में भक्त की लालसा ईश्वर का साक्षात्कार करने की होती है। लेकिन ईश्वर के दर्शन इतने सुलभ नहीं कि यूँ कहा और प्रभु आ गये। भक्त वत्सल के दर्शन पाने के लिए मनुष्य को मन, वचन, कर्म और बुद्धि में शुचिता लानी पड़ती है। आज एक कहानी इसका सबसे बड़ा उदाहरण बन सकती है।

कथा : एक राजा था बड़ा दानी धार्मिक। ईश्वर में उसकी आस्था असीम थी वह मानता था जो भी वह करता है वह नहीं करता बल्कि ईश्वर इच्छा से हो रहा है। एक दिन उसने ईश्वर दर्शन पाने की अभिलाषा से तप किया भगवान ने उसके तप से प्रसन्न हो कर दर्शन दिए बोले जो मांगना हो मांगो भक्त। राजा ने कहा प्रभु आपका दिया सब कुछ है मेरे पास, बस मेरी विनती है कि मेरी प्रजा को भी आपके दर्शन हो जाएँ तो मेरा जीवन सफल हो जाये। भगवान् ने राजा को बहुत समझाया की ऐसा संभव नहीं है। लेकिन राजा का हठ और भगवान ठहरे भक्त वत्सल, भक्त के आगे झुके बोले ठीक है कल मैं सामने वाली पहाड़ी पर तुम्हारा और तुम्हारी प्रजा का इंतज़ार करूँगा।

अगली सुबह राजा-रानी अपनी प्रजा समेत भगवान से मिलने निकाल पडे। कुछ दूर अभी पंहुचे ही थे कि सामने तांबे के सिक्कों का ढेर दिखा प्रजा के कुछ लोग समूह से अलग होकर सिक्कों की तरफ दौड़ पडे राजा के मना करने पर भी नहीं माने बोले की भगवान के दर्शन और कभी कर लेंगे पहले ये धन तो इक्कठा कर लें। लोग गठरी बांध-बांध कर सिक्के अपने घर ले जाने लगे। राजा बचे लोगों के साथ ईश्वर दर्शन को चल दिए। रास्ते में एक और ढेर दिखा वो ढेर चांदी के सिक्कों का था। अब भी प्रजा के कुछ लोगो ने पहले वाला जवाब देकर भगवान से मिलने को माना करते हुए सिक्कों को ढोना शुरू कर दिया।

राजा बेचारा बाकी बची प्रजा के साथ कुछ दूर चले ही थे की सोने के सिक्कों का ढेर देख सारी की सारी प्रजा उसे ढोने भाग गयी। अब राजा-रानी ही बचे राजा ने रानी से कहा देखा दुनिया कितनी लोभी है। रानी ने राजा की बात का हामी भरकर समर्थन किया। लेकिन कुछ दूर पर रानी को हीरों का एक टीला दिखा रानी राजा को छोड़ते हुये टीला की तरफ भागी और अपने कपड़ों को फाड कर हीरे भरने लगी वह लगभग निर्वस्त्र अवस्था में हो गयी थी यह देख राजा को शर्म आ गयी। वह आगे बढ़ भगवान तक अकेला पंहुचा। भगवान् ने मुस्कुराकर कहा कहाँ रह गये थे? बड़ी देर कर दी आने में। कहाँ है तुम्हारी प्रजा? अब राजा ने लज्जा और आत्म ग्लानी से अपना सर झुका दिया। तब भगवान् बोले- हे भक्त जिनके लिए मुझसे ज्यादा प्रिय सांसारिक एवं भौतिक पदार्थ वे लोग मुझे कभी नहीं पा सकते। उन्हें कभी मेरा प्यार कृपा नहीं मिलती।

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