शनि देव की न्यायप्रियता की पौराणिक कहानी, एक बार भगवान विष्णु, शंकर और ब्रह्मा के बीच एक संवाद शुरू हुआ। यह संवाद था संसार में एक न्याय अधिकारी को जन्म देने का। यह संवाद तब शुरू हुआ जब देवों और असुरों के बीच लगातार युद्ध हो रहा था। असुरों को लगता था कि जब न्याय की बात आती है तो फैसला देवों के हक में सुनाया जाता है। परंतु असुरों के गुरु शुक्राचार्य को भगवान शंकर पर पूर्ण विश्वास था कि वह देवों के साथ असुरों के हितों की भी रक्षा करेंगे। भगवान शंकर ने अपने परम भक्त शुक्राचार्य को निराश नहीं किया। भगवान् शंकर ही थे जिन्होंने शनिदेव के जन्म की पटकथा लिखी। शनिदेव का जन्म सूर्य पुत्र के रूप में हुआ जिनकी मां का नाम छाया था। एक पौराणिक कथा के अनुसार छाया ने शनि को एक जंगल में छुपा के रख उनका वही पालन-पोषण किया। यम के अलावा शनि भी एक पुत्र है। शनि देव को भी नहीं मालूम था उनके पिता स्वयं सूर्य देव है।
लेकिन यह राज बहुत दिनों तक छुप ना सका। क्योंकि संसार को उसका न्याय अधिकारी मिलना था जो कर्मों के आधार पर लोगों को न्याय और दंड देगा। इधर देवाधिपति इंद्र देव और शुक्राचार्य के बीच न्याय अधिकारी के अस्तित्व को जानने के लिए खलबली मची हुई थी। इसी खलबली का नतीजा एक चक्रवात के रूप में आया जिसका संचालन शुक्राचार्य कर रहे थे।
शुक्राचार्य को मोहरा बनाते हुए इंद्र देव ने एक षड्यंत्र रचा था। सही मायनों में इस चक्रवात के लिए इंद्रदेव जिम्मेदार थे जिन्होंने असुरों के गुरु शुक्राचार्य को उकसाया। इस चक्रवात की चपेट में शनि की माता छाया आ गई जिससे शनि देव नाराज हो गए और शंकर भगवान की कृपा से उन्हें अपनी शक्तियों का बोध हो गया और उन्होंने अपनी मां छाया को बचा लिया। इसके बाद सूर्य देव चक्रवात से क्रोधित हो गए और उन्होंने शुक्राचार्य और इंद्र देव को सूर्य लोक में बुलाया। जहां पर चक्रवात के दोषी को दंड दे कर न्याय दिया जाना था। लेकिन शुक्राचार्य की बात सुने बिना सूर्यदेव ने शुक्राचार्य को दोषी करार दे दिया इसको देखते हुए वहां शनि देव प्रकट हो गए उन्होंने न्याय अधिकारी के रूप में उचित न्याय किया।
उन्होंने सभी को बताया कि चक्रवात के असली दोषी शुक्राचार्य नहीं अपितु इंद्रदेव हैं। शनिदेव की यह बात सुनकर वहां मौजूद सभी देवता (उनके पिता सूर्यदेव) और शुक्राचार्य चकित रह गए। लेकिन शनिदेव ने कहा कि न्याय सबके लिए बराबर होता है चाहे वह देव हो या असुर। अंत में देवताओं को शनि देव के आगे झुकना ही पड़ा क्योंकि न्याय विश्व के न्याय अधिकारी के द्वारा हो रहा था। इंद्र देव को सजा के तौर पर अपना मुकुट धरती पर उतार कर रखना पड़ा।
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