अध्यात्म

जानिए कब और किन जगहों पर पत्नी को पति के दाई बाई तरफ बैठना चाहिये

हमारे शास्त्रों में पति-पत्नी के संबंध को बहुत ही पवित्र मान कर इसकी प्रशंसा की गई है। इस संबंध द्वारा स्त्री-पुरुष अपने-अपने दायित्वों को पूरा करते हुए इस धरती पर समस्त सुख-साधनों का भोग कर मृत्यु के पश्चात स्वर्ग प्राप्त करें, इसके लिए ऋषि-मुनियों ने कुछ नियम बनाएं। इन्हीं नियमों में बताया गया है कि कब स्त्री को पुरुष के बाईं तरफ तथा कब दाईं तरफ बैठना चाहिए।

जानिए कब और किन जगहों पर पत्नी को पति के दाई बाई तरफ बैठना चाहिये

शास्त्रों के अनुसार जो कर्म स्त्रीप्रधान या इस सांसारिक जीवन से संबद्ध होते हैं, उनमें स्त्री को बाएं तरफ बैठना चाहिए। उदाहरण के लिए स्त्री-पुरुष का सहवास, दूसरों की सेवा करना तथा अन्य सांसारिक कार्यों में पत्नी के लिए पति के बाई तरफ बैठने का नियम है।

इसी प्रकार जो कार्य पुरुष प्रधान या पुण्य और मोक्ष देने वाले हैं जैसे कन्यादान, विवाह, यज्ञ, पूजा-पाठ आदि, उनको करते समय पत्नी दाएं तरफ विराजमान होती है।ऐसे समय पत्नी को पति की बाईं तरफ बैठना चाहिए।संस्कार गणपति में कहा गया है, वामे सिन्दूरदाने च वामे चैव द्विरागमने, वामे शयनैकश्यायां भवेज्जाए प्रियार्थिनी।आर्शीवार्दे अभिषेके च पादप्रक्षालेन तथा, शयने भोजने चैव पत्नी तूत्तरतो भवेत।।अर्थात् सिंदूर दान, द्विरागमन के समय, भोजन, शयन, सहवास, सेवा तथा बड़ों से आर्शीवाद लेते समय पत्नी को पति के बाईं तरफ रहना चाहिए। इन कामों में पत्नी को बैठना चाहिए पति के दाईं तरफकन्यादाने विवाहे च प्रतिष्ठा-यज्ञकर्मणि, सर्वेषु धर्मकार्येषु पत्नी दक्षिणत- स्मृता।अर्थात् कन्यादान, विवाह, यज्ञकर्म, पूजा तथा अन्य धर्म-कर्म के कार्यों में पत्नी को सदैव पति के दाईं और बैठना चाहिए।

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