भारतीय आयुर्वेदिक चिकित्सा काफ़ी बेहतर है और इनमें से कुछ उपचार तो अब घरेलू हो चुके हैं। ऐसी ही कुछ दवाओं में है नीम।आयुर्वेद में नीम की बड़ी महिमा गाई गई है।भारत में एक कहावत प्रचलित है कि जिस धरती पर नीम के पेड़ होते हैं वहाँ मृत्यु और बीमारी कैसे हो सकती है। इस वृक्ष के ढेरों औषधीय गुण हैं। पौराणिक काल से ही नीम का उपयोग कई बीमारियों के उपचार के लिए किया जाता रहा है। आज भी बहुत सी ऐसी दवाइयां हैं जिनमें नीम के पत्तों का रस, नीम के पेड़ के दूसरों हिस्सों का इस्तेमाल होता है। नीम के पेड़ की छांव की तो बात ही कुछ और है क्योंकि यह उन वृक्षों में शुमार होता है जो सबसे ज्यादा वातावरण में ऑक्सीजन प्रदान करता है।
- नीम के तेल से मालिश करने से विभिन्न प्रकार के चर्म रोग ठीक हो जाते हैं। नीम का लेप सभी प्रकार के चर्म रोगों के निवारण में सहायक है।
- नीम की दातुन करने से दांत व मसूढे मज़बूत होते है और दांतों में कीडा नहीं लगता है, तथा मुंह से दुर्गंध आना बंद हो जाता है। इसमें दोगुना पिसा सेंधा नमक मिलाकर मंजन करने से पायरिया, दांत-दाढ़ का दर्द आदि दूर हो जाता है। नीम की कोपलों को पानी में उबालकर कुल्ले करने से दाँतों का दर्द जाता रहता है।
- नीम की पत्तियां चबाने से रक्त शोधन होता है और त्वचा विकार रहित और चमकदार होती है। नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर और पानी ठंडा करके उस पानी से नहाने से चर्म विकार दूर होते हैं, और ये ख़ासतौर से चेचक के उपचार में सहायक है और उसके विषाणु को फैलने न देने में सहायक है।
- चेचक होने पर रोगी को नीम की पत्तियों बिछाकर उस पर लिटाएं।
- नीम की छाल के काढे में धनिया और सौंठ का चूर्ण मिलाकर पीने से मलेरिया रोग में जल्दी लाभ होता है। नीम मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों को दूर रखने में अत्यन्त सहायक है। जिस वातावरण में नीम के पेड़ रहते हैं, वहाँ मलेरिया नहीं फैलता है। नीम के पत्ते जलाकर रात को धुआं करने से मच्छर नष्ट हो जाते हैं और विषम ज्वर (मलेरिया) से बचाव होता है।
- नीम के फल (छोटा सा) और उसकी पत्तियों से निकाले गये तेल से मालिश की जाये तो शरीर के लिये अच्छा रहता है।
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