नवरात्र में क्योँ किया जाता है कन्या का पूजन, नवरात्र में कन्या को देवी का रूप मानकर पूजन किया जाता है। कन्याओं का देवियों की तरह आदर सत्कार और भोज कराने से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करती है।
कन्या पूजन में कन्याओं की उम्र
कन्या पूजन में कन्या की आयु 2 वर्ष से ऊपर तथा 11 वर्ष से कम होनी चाहिए। श्रीमद देवीभागवत पुराण के अनुसार कन्या पूजन में 1 वर्ष की कन्या को नही बुलाना चाहिए, क्योकि वह कन्या गंध भोग आदि पदार्थो के स्वाद से एकदम अनभिज्ञ तथा अपनी भावना को भी व्यक्त नहीं कर पाती है । अतः इस उम्र की कन्या का पूजन नही करना चाहिए।
पूजा में कन्या की संख्या कम से कम 9 होनी चाहिए। कन्या पूजन के समय एक बालक भी होना चाहिए जिसे हनुमानजी अथवा भैरव का रूप माना जाता है। जिस प्रकार माता की पूजा भैरव के बिना पूर्ण नहीं होती है, उसी प्रकार कन्या-पूजन के समय एक बालक को भी भोजन कराना बहुत जरूरी होता है।
उम्र के अनुसार कन्या का नामकरण
प्रथम वर्ष – देवी रूप में
द्वितीय वर्ष – कुमारी
तृतीय वर्ष – त्रिमूर्ति
चतुर्थ वर्ष – कल्याणी
पंचम वर्ष- रोहिणी
षष्ठ वर्ष- कालिका
सप्तम वर्ष- चण्डिका
अष्ट वर्ष – शाम्भवी
नवम वर्ष- दुर्गा
दस वर्ष – सुभद्रा
अर्थात 2 वर्ष से लेकर 10 वर्ष तक की कन्या का ही पूजन करना चाहिए । 10 वर्ष से अधिक उम्र की कन्या का पूजन करने से पूर्ण फल की प्राप्ति नहीं होती है । अर्थात यदि आप पूजन करते है तो आपका पूजन निरर्थक तो नहीं होगा परन्तु उतना फल नहीं मिलेगा जितना मिलना चाहिए। कन्या की पूजा में किसी भी प्रकार की कोताही नही बरतनी चाहिए बल्कि विधिवत पूजा ही करनी चाहिए । पूजन के बाद अपनी सामर्थ्यानुसार ही दान दक्षिणा देनी चाहिए।
आयु के अनुसार कन्या पूजन से लाभ
वैसे तो बिना किसी विशेष दिन के भी कन्या के पूजन से हमें मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और यदि आप नवरात्र में कन्या का पूजन करते है तो उसके अनेक प्रकार के लाभ की प्राप्ति होती है।
1. जो कन्या दो वर्ष की होती है उसे “कुमारी” नाम की कन्या कहते है नवरात्र में इनका पूजन करने से हमारे दुःख तथा दरिद्रता का नाश होता है । जीवन यात्रा में बाधा बनकर आने वाले शत्रुओं का क्षय और धन तथा आयु की अभिवृद्धि होती हैं ।
2. तीन बर्ष की कन्या “त्रिमूर्ति” कहलाती है नवरात्र में इनका पूजन करने से त्रिविध सुख धर्म-अर्थ और काम की पूर्ति होती हैं । इनकी पूजन से मान सम्मान तथा पुत्र- पौत्र की प्राप्ति होती है।
3. चतुर्थ वर्ष की कन्या “कल्याणी” नाम से जानी जाती है और इनका नवरात्र में पूजन करने से जातक को बल बुद्धि तथा विद्या की प्राप्ति होती है तथा इसके माध्यम से शत्रुओ पर विजय एवं असीम सुख-समृद्धि की प्राप्त होती हैं.
4. यदि कोई कन्या पांच वर्ष की है तो उसे “रोहणी” नाम से जानी जाती है । यदि आप रोहिणी कन्या की पूजन नवरात्र में करते है तो रोग तथा शत्रु का नाश् होता हैं।
5. जब कन्या छः साल की होती है तो “कालिका” नाम से जानी जाती है ।नवरात्र के दौरान कालिका नामक कन्या की पूजन करने से शत्रुओं का नाश तथा शत्रुओं पर विजय की प्राप्ति होती है।
6. “चण्डिका” नाम की कन्या वह होती जो अपने उम्र के सप्तम वर्ष में प्रवेश करती है । नवरात्र के समय इनकी विधिवित पूजा करने से भक्त को मान सम्मान, धन एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती हैं
7. जब कन्या अष्टम वर्ष में प्रवेश करती है तो “शाम्भवी” नाम की कन्या के नाम से जानी जाती है । नवरात्र के दौरान शाम्भवी नामक कन्या की पूजन से भक्त के अंदर सम्मोहन, दुःख-दरिद्रता का नाश होता है तथा वह युद्ध (संग्राम) में विजय प्राप्त करता है।
8. जब कोई लड़की अपने उम्र के 9वें वर्ष में प्रवेश करती है तो “दुर्गा” नामक कन्या के रूप में जानी जाती है । नवरात्र के समय इस उम्र की कन्या के पूजन से क्रूर से क्रूर शत्रु का नाश होता है । कर्म की साधना व पर-लोक में सुख प्राप्ति के रास्ते खुलते है।
9. जब कन्या 10वें वर्ष में प्रवेश करती है तो “ सुभद्रा ” नाम की कन्या के नाम से जानी जाती है । नवरात्र के समय इस उम्र की कन्या की पूजन से भक्त को मनोनुकूल धन धान्य की बृद्धि होती है।
अपनी मनोरथ की सिद्धि के लिए भक्त को “सुभद्रा” नामक कन्या की पूजा करना श्रेष्ठकर होता है।
कन्या पूजन की विधि
कन्या पूजन अष्टमी या नवमी के दिन किया जाता है । घर में कन्याओ के आने पर पूरे परिवार के साथ फूल से उनका स्वागत करें ।
पुनः इन कन्याओं को निर्धारित स्वच्छ आसन पर बिठाकर सभी के पैरों को जल अथवा दूध से भरे थाल या थाली में रखकर अपने हाथों से उनके पैर धोने चाहिए । उसके बाद पैर पोछना भी चाहिए तत्पश्चात पैर छूकर सभी कन्याओ का आशीर्वाद लेना चाहिए। उसके बाद माथे पर अक्षत, फूल और कुंकुम लगाना चाहिए। फिर मां भगवती का ध्यान करके देवी रूपी कन्याओं को अपने सामर्थ्यानुसार भोजन कराना चाहिए। इसके बाद सभी कन्याओ को पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेना चाहिए ।
प्रस्तुति – आचार्य मनोज कुमार शुक्ला
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