क्रीं- : इसमें चार स्वर-व्यंजन शामिल हैं –
क = काली
र = ब्रह्म
ईकार = महामाया
अनुस्वार = दुःखहरण
इस प्रकार ” क्रीं ” बीज का अर्थ हुआ- ब्रह्म- शक्ति- सम्पन्न महामाया काली मेरे दुःखों का हरण करें।
???? श्रीं -: इसमें चार स्वर-व्यंजन शामिल हैं-
श = महालक्षमी
र = धन-एश्वर्य
ई = तुष्टि
अनुस्वार = दुःखहरण
नाद का तात्पर्य विश्वमाता।
इस प्रकार ” श्रीं ” बीज का अर्थ हैं- धन-एश्वर्य-सम्पति, तुष्टि-पुष्टि की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी मेरे दुःखों का नाश करें।
???? ह्रौ-: यह प्रसाद बीज है। इसका तात्पर्य है-
ह्र = शिव
औं = सदाशिव
अनुस्वार = दुःखहरण
इस प्रकार “ह्रौं” बीज का अर्थ हुआ- शिव- सदाशिव कृपा कर मेरे दुःखों का हरण करें।
???? दूं-:
द = दुर्गा
ऊ = रक्षा
अनुस्वार = करना
तात्पर्य- माँ दुर्गे! मेरी रक्षा करो । यह दुर्गा बीज है।
???? ह्रीं- :
यह शक्ति बीज अथवा माया बीज है।
ह = शिव
र = प्रकृति
ई = महामाया
नाद = विश्वमाता
बिन्दु = दुःखहर्ता
इस प्रकार इस माया बीज का तात्पर्य हुआ- शिवयुक्त! विश्वमाता मेरे दुःखों का हरण करें।
???? ऐं- :
यह सरस्वती बीज है-
ऐ = सरस्वती
अनुस्वार = दुःखहरण
इस बीज का तात्पर्य हुआ- हे माँ सरस्वती! मेरे दुःखों का अर्थात अविद्या का नाश करें ।
???? गं- :
यह गणपति बीज है-
ग = गणेश
अनुस्वार = दुःखहर्ता
इसका तात्पर्य हुआ, श्री गणेश मेरे विघ्नों को, दुःखों को दूर करें।
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