अध्यात्म ज्योतिष

बीज मन्त्रार्थ जानकारी

Written by Bhakti Pravah

 क्रीं- : इसमें चार स्वर-व्यंजन शामिल हैं –

क = काली
र = ब्रह्म
ईकार = महामाया
अनुस्वार = दुःखहरण

इस प्रकार ” क्रीं ” बीज का अर्थ हुआ- ब्रह्म- शक्ति- सम्पन्न महामाया काली मेरे दुःखों का हरण करें।

???? श्रीं -: इसमें चार स्वर-व्यंजन शामिल हैं-
श = महालक्षमी
र = धन-एश्वर्य
ई = तुष्टि
अनुस्वार = दुःखहरण
नाद का तात्पर्य विश्वमाता।

इस प्रकार ” श्रीं ” बीज का अर्थ हैं- धन-एश्वर्य-सम्पति, तुष्टि-पुष्टि की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी मेरे दुःखों का नाश करें।

???? ह्रौ-: यह प्रसाद बीज है। इसका तात्पर्य है-
ह्र = शिव
औं = सदाशिव
अनुस्वार = दुःखहरण

इस प्रकार “ह्रौं” बीज का अर्थ हुआ- शिव- सदाशिव कृपा कर मेरे दुःखों का हरण करें।

???? दूं-:
द = दुर्गा
ऊ = रक्षा
अनुस्वार = करना

तात्पर्य- माँ दुर्गे! मेरी रक्षा करो । यह दुर्गा बीज है।

???? ह्रीं- :

यह शक्ति बीज अथवा माया बीज है।
ह = शिव
र = प्रकृति
ई = महामाया
नाद = विश्वमाता
बिन्दु = दुःखहर्ता

इस प्रकार इस माया बीज का तात्पर्य हुआ- शिवयुक्त! विश्वमाता मेरे दुःखों का हरण करें।

???? ऐं- :

यह सरस्वती बीज है-
ऐ = सरस्वती
अनुस्वार = दुःखहरण

इस बीज का तात्पर्य हुआ- हे माँ सरस्वती! मेरे दुःखों का अर्थात अविद्या का नाश करें ।

???? गं- :

यह गणपति बीज है-
ग = गणेश
अनुस्वार = दुःखहर्ता

इसका तात्पर्य हुआ, श्री गणेश मेरे विघ्नों को, दुःखों को दूर करें।

Leave a Comment