गरुण पुराण में इसका अच्छा विस्तार है। उसमें से कुछ का संक्षेप में परिचय इस प्रकार है- गंधलिंग दो भाग कस्तूरी, चार भाग चंदन और तीन भाग कुंकुम से बनाए जाते हैं। शिवसायुज्यार्थ इसकी अर्चना की जाती है। पुष्पलिंग विविध सौरमय फूलों से बनाकर पृथ्वी के आधिपत्य लाभ के लिए पूजे जाते हैं। गोशकृल्लिंग, स्वच्छ कपिल वर्ण की गाय के गोबर से बनाकर पूजने से ऐश्वर्य मिलता है। अशुद्ध स्थान पर गिरे गोबर का व्यवहार वर्जित है। बालुकामयलिंग, बालू से बनाकर पूजने वाला विद्याधरत्व और फिर शिवसायुज्य प्राप्त करता है। यवगोधूमशालिजलिंग, जौ, गेहूं, चावल के आटे का बनाकर श्रीपुष्टि और पुत्रलाभ के लिए पूजते हैं। सिताखण्डमयलिंग मिस्त्री से बनता है, इसके पूजन से आरोग्य लाभ होता है। लवणजलिंग हरताल, त्रिकटु को लवण में मिलाकर बनता है। इससे उत्तम प्रकार का वशीकरण होता है। तिलपिष्टोत्थलिंग तिल को पीसकर उसके चूर्ण से बनाया जाता है। भस्मयलिंग सर्वफलप्रद है, गुडोत्थलिंग प्रीति बढ़ाने वाला है और शर्करामयलिंग सुखप्रद है।
वंशांकुरमय (बांस के अंकुर से निर्मित) लिंग वंशकर है।
पिष्टमय विद्याप्रद और दधिदुग्धोद्भवलिंग कीर्ति, लक्ष्मी और सुख देता है।
धान्यज धान्यप्रद
फलोत्थ फलप्रद
धात्रीफलजात मुक्तिप्रद
नवनीतज कीर्ति और सौभाग्य देता है।
दूर्वाकाण्डज अपमृत्युनाशक, कर्पूरज मुक्तिप्रद
अयस्कांतमणिज सिद्घिप्रद, मौक्तिक सौभाग्यकर
स्वर्णनिर्मित महामुक्तिप्रद, राजत भूतिवर्धक है
पित्तलज और कांस्यज मुक्तिद, त्रपुज, आयस और सीसकज शत्रुनाशक होते हैं।
अष्टधातुज सर्वसिद्घिप्रद
अष्टलौहजात कुष्ठनाशक
वैदूर्यज शत्रुदर्पनाशक और स्फटिकलिंग सर्वकामप्रद हैं।
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