अध्यात्म

जानिये क्योँ लंका को जलाकर बहुत पछताए थे श्री हनुमान जी

Written by Bhakti Pravah

महावीर हनुमान जी के बारे में और उनके बल के बारे में कौन नहीं जानता, हनुमान जी ही है जो सबके दुखों को हरते  है और तकलीफें दूर करते है, आज हम चर्चा करेंगे की जानिये क्योँ लंका को जलाकर बहुत पछताए थे श्री हनुमान जी,  महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण में उल्लेख मिलता है ‘हनुमानजी ने जब रावण की लंका जलाई तो उन्हें बहुत पश्चाताप हुआ, क्योंकि हनुमानजी एकादश रुद्र के अवतार हैं।

रावण ने अपने दस सिरों को काटकर महामृत्युंजय की आराधना की थी। लेकिन ग्यारहवां रुद्र हमेशा असंतुष्ट ही रहा और यही रुद्र त्रेता युग में हनुमान के रूप में अवतरित हुआ। हनुमानजी का अवतार ही दरअसल रावण के विनाश के लिए भगवान श्रीराम के सहायक के रूप में हुआ था।

जब हनुमानजी ने रावण की लंका जला दी तो उनका मन कई उलझनों में था। वे अपने किए पर कभी पश्चाताप कर रहे थे।

वाल्मीकि रामायण में श्लोक है यदि दग्धात्वियं सर्वानूनमार्यापि जानकी। दग्धा तेन मया भर्तुहतमकार्यजानता।’ अर्थात सारी लंका जल गई तो निश्चित रूप से जानकी भी उसमें जल गई होंगी। ऐसा करके मैंने निश्चित रूप से अपने स्वामी का बहुत बड़ा अहित कर दिया है। भगवान राम ने तो मुझे लंका इसलिए भेजा था कि मैं सीता का पता लगाकर लौटूंगा, लेकिन मैंने तो यहां कुछ और ही कर दिया।

जब सीता ही नहीं रहीं तो राम भला कैसे जी पाएंगे। फिर सुग्रीव-राम की मैत्री के मायने क्या रह जाएंगे। हनुमान जी यह भी भूल गए कि जिसने थोड़ी देर पूर्व उन्हें अजर-अमर होने का आशीर्वाद दिया था, वे जनकनंदनी भला आग की भेंट कैसे चढ़ सकती हैं?

अजर- अमर गुण निधि सुत होहू, करहिं सदा रघुनायक छोहू’ यही वजह थी कि जवालामुखी से घिरे होने के बावजूद हनुमानजी की सेहत पर अग्नि का कोई प्रभाव नहीं था। माता जानकी का आशीर्वाद उनके लिए अग्निशामक मंत्र का काम कर रहा था। सत्पुरुषों की कृपालुता आम आदमी के समझ के बाहर की वस्तु होती है। फिर एक सेवक होने के नाते हनुमान उसके अपवाद कैसे हो सकते हैं?

तुम पावक महं करहुं निवासा।’ यह अलग बात है कि भगवान श्रीराम ने इस लीला की शुरुआत की तो लक्ष्मण को भी इस रहस्य का पता न चला। हनुमान तो बहुत बाद में राम के परिचय के केंद्र में आए थे। अगर यह कहा जाए कि हनुमान के प्राणों की रक्षा अग्नि में समाई वही ममतामयी सीता कर रही थीं तो शायद अतिश्योक्ति नहीं होगी। हनुमानजी को आग की लपटों में देख, सीता जी ने भगवान शिव से प्रश्न किया किया कि अग्नि का हनुमानजी पर प्रभाव क्यों नही पढ़ रहा?

तब भगवान शिव बोले कि हनुमान रुद्र के अवतार हैं। ‘ताकर दूत अनल जेहि सिरजा, जरा न सो तेहि कारन गिरजा‘ रामायण में कथा आती है कि हनुमानजी ने लंका के सभी घर जला दिए लेकिन विभीषण का घर नहीं जलाया। ‘जारा नगर निमिष इक माहिं,एक विभीषण कर गृह नाहिं। इसी तरह तुलसीदास द्वारा रचित भगवान श्रीराम के जीवन पर आधारित महाकाव्य श्रीरामचरितमानस में ही एक और चौपाई आती है जिसमें कहा गया है कि ‘उलट-पलट कपि लंका जारी’

ज्योतिषाचार्य- श्री राजेश शाश्त्री जी (फूप जिला-भिंड (म. प्र.)

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