अक्सर छोटी छोटी बातों पर गुस्सा करना मनुष्य की प्रवृति है। और गुस्से में किसी को डाँट देना, अपशब्द कहना या कुछ ऐसा कह देना जो हमें नहीं कहना चाहिए, ये भी स्वाभाविक है। लेकिन जब गुस्सा शाँत होता है तब हमें एहसास होता है कि हमने क्या सही किया और क्या गलत किया। कभी कभी हम गुस्से में हम अपने मित्रो से, अपने परिजनों से या दूसरे लोगो से इतनी कड़वी बात कह देते हैं कि हमारे मित्र हमसे नाराज हो जाते हैं, बसे बसाये घर उजड़ जाते हैं, बेवजह हम दूसरे लोगो से दुश्मनी मोल ले लेते हैं। हमारे द्वारा कहे गए शब्दों का दूसरों पर क्या असर पड़ता है आइये इस कहानी से समझते हैं।
एक गाँव में एक किसान रहता था। उसकी अपने पड़ोसी से मित्रता थी। एक बार किसी बात के लेकर किसान का अपने मित्र से झगड़ा हो गया। उसने अपने पडोसी को भला बुरा कह दिया, जिससे उसका पड़ोसी नाराज हो गया और उनकी मित्रता टूट गयी। बाद में जब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह अपने आप पर बहुत शर्मिंदा हुआ पर अब क्या हो सकता था। शर्म के कारण वह अपने मित्र से माफ़ी भी नहीं माँग सका। परेशान होकर वह एक संत के पास गया। उसने संत से अपने शब्द वापस लेने का उपाय पूछा।
संत ने किसान से कहा कि, ”तुम एक थैला भर कर पंख इकठ्ठा कर के लाओ।” किसान ने पंख इकठ्ठे किये और फिर संत के पास पहुंच गया। अब संत ने कहा कि छत पर जाकर इन पंखो को हवा में उड़ा दो।
किसान ने ऐसा ही किया, थैले से निकाल कर सारे पंख हवा में उड़ गए। अब संत ने फिर कहा कि– अब इन सारे पंखो को दोबारा इकठ्ठा करके लाओ।
किसान वापस गया पर तब तक सारे पंख हवा से इधर-उधर उड़ चुके थे, और किसान खाली हाथ संत के पास पहुंचा। और अपनी असमर्थता जताते हुए बोला कि सारे पंख हवा में उड़ गए हैं, वह अब उन्हें दोबारा थैले में इकठ्ठा नहीं कर सकता।
तब संत ने उससे कहा कि ठीक ऐसा ही तुम्हारे द्वारा कहे गए शब्दों के साथ होता है, तुम आसानी से इन्हें अपने मुँह से निकाल तो सकते हो पर चाह कर भी वापस नहीं ले सकते।
दोस्तों, हमारे साथ भी ऐसा ही होता है। हम गुस्से या झुंझलाहट में कभी कभी ऐसे शब्द कह जाते हैं जिनसे सामने वाला हमसे हमेशा के लिए नाराज हो जाता है। अगर हम उससे माफ़ी माँग भी लें और वो हमें माफ़ कर भी दे तब उसके कानो में वे कड़वे शब्द हमेशा गूंजते रहते हैं और वो चाहकर भी हमारे साथ पहले जैसा व्यव्हार नहीं कर पाता।
तो दोस्तों आज ही ये बात गाँठ बाँध लीजिये कि किसी को कुछ भी कहने से पहले एक बार जरूर सोचें कि हमारे शब्द क्या हैं चाहे हम किसी से गुस्से में बोल रहे हैं या बिना गुस्से के। ये सोचे कि जो हम बोल रहे हैं हानि अगर वही हमारे लिए बोला जाये तो हमें कैसा महसूस होगा। इसलिए जो कुछ भी बोले अच्छी तरह से सोच समझकर बोलें। अन्यथा बोलें ही नहीं, चुप रहना ही बेहतर है।
पोस्ट क्रेडिट : पंडित श्री दीनदयाल जी महाराज
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