अध्यात्म

क्योँ कर्ण से करना चाहती थी द्रौपदी विवाह

Written by Bhakti Pravah

द्रौपदी और कर्ण की पहली मुलाकात केवल स्वयंवर के दौरान हुई. जब कर्ण ने प्रतियोगिता में भाग लेने की कोशिश की तो द्रौपदी ने उसका पक्ष नहीं लिया. द्रौपदी के जुड़वाँ भाई दृष्टदयुम्न ने श्रीकृष्ण के कहने पर कर्ण को सूत-पुत्र कहते हुए भाग लेने से मना कर दिया था, और द्रौपदी ने कोई विरोध नहीं किया न ही कर्ण के प्रति उस समय या कभी बाद में प्रेम या आकर्षण का प्रदर्शन किया.

गरीब ब्राहमण से विवाह और द्रौपदी का समर्पण – जब अर्जुन ने स्वयंवर में लक्ष्य को भेदा तो द्रौपदी ने बिना किसी दबाव के अर्जुन को अपना जीवन साथी चुना और अपनी ख़ुशी से अर्जुन के साथ चल पड़ी, यह जानते हुए भी कि वह एक गरीब ब्राहमण की जीवन संगिनी बन चुकी है. स्वयंवर जीतने के बाद कर्ण और दूसरे क्षत्रियों ने अर्जुन को युद्ध के लिया ललकारा और अर्जुन उसमे भी विजयी हुए. इतना सब होने के बाद भी द्रौपदी अर्जुन के प्रति समर्पित रही और उनके साथ डटी रहीं.

अर्जुन की असलियत जानने के बाद – जब द्रौपदी को पता चला कि अर्जुन एक गरीब ब्राहमण नहीं बल्कि कुरु वंश के भावी सम्राट हैं तो उनके लिए इससे अधिक ख़ुशी कोई नहीं हो सकती थी. यह न केवल उनके जन्म के उद्देश्य (कुरुवंश का विनाश) के अनुरूप था बल्कि वह एक सम्राज्ञी बनने जा रही थी इसलिए उनके मन में अपने पतियों के इलावा किसी और के प्रति प्रेम रखने का कोई औचित्य नहीं था. महाभारत में कहीं भी द्रौपदी और उनके पतियों के बीच टकराव या मनमुटाव का कोई भी प्रसंग नहीं है.

द्यूत सभा में अपमान के बाद – कपोल कल्पना करने वालों का एक तर्क यह है कि द्यूत सभा में उनके पतियों की उसको विफलता के बाद द्रौपदी के मन में आया कि शायद कर्ण उनकी बेहतर रक्षा करने में समर्थ था. लेकिन यह फ़ालतू तर्क तब दम तोड़ देता है जब उन्हें बताया जाए कि कर्ण ही वह शख्स था जिसने दुर्योधन को द्रौपदी को भरी सभा में लाकर उसे बेइज्जत करने का आइडिया दिया था. कर्ण ही था जिसने द्रौपदी को पांच पतियों से विवाह करने के कारण एक वेश्या होने का ताना दिया था. यदि द्रौपदी के मन में कर्ण के लिया कोई सहानुभूति थी भी तो यह कर्ण के इस कुकर्म के कारण नष्ट हो गयी.

रक्षक की भूमिका – यदि मान भी लिया जाए कि द्रौपदी समझती थी कि कर्ण उसे बचा सकता था, तो वह जरुर अपने “तथाकथित प्रेम” से अपनी इज्ज़त को बचाने के लिए गुहार लगाती. कोई भी समझदार स्त्री अपने मान-सम्मान को बचाने के लिए अपनी इगो या आत्म-ग्लानि को जरुर त्याग देगी. इसलिए यह कहना कि “आत्मग्लानि के कारण द्रौपदी ने कर्ण से सहायता नहीं मांगी. वहीं कर्ण भी स्वयंवर में अपने अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए मौन रहे” अपने आप में हास्यकर है.” बचकाने लेखक का यह कहना कि प्रतिशोध के लिए कर्ण चुप रहा, तो फिर प्रेम कहाँ गया?

ट्रैक रिकॉर्ड बताता है कि अर्जुन कर्ण से बेहतर धनुर्धर थे. गुरु द्रोणाचार्य ने गुरुदक्षिणा में कौरवों और पांडवों को पांचाल देश पर चढ़ाई करने को कहा. पहले कौरवों ने पांचाल पर आक्रमण किया और वह कर्ण के होते हुए पांचालों से हार गये. बाद में अर्जुन के नेतृत्व में पांडव सेना ने पांचालों को हराया.

वफ़ादारी और सतीत्व – यदि बचकाने लेखक सतीत्व के अर्थ को समझ पायें तो इसका मतलब यह होता था, कि हर हाल में पति के साथ खड़े रहना, चाहे पति गलत राह भटक रहा हो, उसका साथ न छोड़ते हुए बेहतर राह की उम्मीद करना. महाभारत की द्यूत-सभा में भी कुछ ऐसा ही हुआ था. दुर्योधन ने द्रौपदी के सामने विकल्प रखा कि यदि वह सबके सामने युधिष्ठिर के कृत्य को अधर्म के रूप में स्वीकार करे तो वह पांडवों और द्रौपदी को मुक्त कर देगा. चूंकि युधिष्ठिर ने जुए में खुद को हारने के बाद द्रौपदी को दांव पर लगाया था, और या एक अधर्म ही था, फिर भी द्रौपदी ने युधिष्ठिर के इस कदम की निंदा नहीं की और उनके साथ खड़ी रहीं. यह पतिव्रता धर्म और त्याग की ऐसी मिसाल थी जिसकी बराबरी करना दुर्लभ है. हालाँकि अकेले में द्रौपदी ने युधिष्ठिर की इस मजबूरी और निष्ठुरता की जम कर आलोचना की थी.

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