श्री गणेश और उनकी महिमा के बारे में शायद ही कोई व्यक्ति होगा जो नहीं जानता होगा, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में बुद्धि में सर्व श्रेस्ट श्री गणेश जी को मूषक ही क्यो वाहन बनाना पड़ा आज हम इस बारे में चर्चा करेंगे,
पौराणिक की बात है, जैसा की गणेश संहिता के अनुसार एक बहुत ही भयंकर असुरों का राजा था जिसका नाम था गजमुख। वह बहुत ही शक्तिशाली और धनवान बनना चाहता था। वह साथ ही सभी देवी-देवताओं को अपने वश में करना चाहता था इसलिए हमेशा भगवान् शिव से वरदान के लिए तपस्या करता था। शिव जी से वरदान पाने के लिए वह अपना राज्य छोड़ कर जंगल में जा कर रहने लगा और शिवजी से वरदान प्राप्त करने के लिए, बिना पानी और भोजन के वो रातदिन तपस्या करने लगा।
कुछ साल बीत गए, शिवजी उसके अपार तप को देखकर प्रभावित हो गए और शिवजी उसके सामने प्रकट हुए। शिवजी नें खुश हो कर उसे दैविक शक्तियाँ प्रदान किया जिससे वह बहुत शक्तिशाली बन गया। सबसे बड़ी ताकत जो शिवजी नें उसे प्रदान किया वह यह था की उसे किसी भी शस्त्र से नहीं मारा जा सकता। असुर गजमुख को अपनी शक्तियों पर गर्व हो गया और वह अपने शक्तियों का दुर्पयोग करने लगा और देवी-देवताओं पर आक्रमण करने लगा। मात्र शिव, विष्णु, ब्रह्मा और गणेश ही उसके आतंक से बचे हुए थे।
गजमुख चाहता था की हर कोई देवता उसकी पूजा करे। सभी देवता शिव, विष्णु और ब्रह्मा जी के शरण में पहुंचे और अपनी जीवन की रक्षा के लिए गुहार करने लगे। यह सब देख कर शिवजी नें गणेश को असुर गजमुख को यह सब करने से रोकने के लिए भेजा। गणेश जी नें गजमुख के साथ युद्ध किया और असुर गजमुख को बुरी तरह से घायल कर दिया। लेकिन तब भी वह नहीं माना। तो भगवान श्री गणेश ने अपना एक दांत तोड़कर उसको मरने के लिए फेंका तो उस राक्षक नें स्वयं को एक मूषक के रूप में बदल लिया और गणेश जी की और आक्रमण करने के लिए दौड़ा। जैसे ही वह गणेश जी के पास पहुंचा गणेश जी कूद कर उसके ऊपर बैठ गए, जब भगवान् के भार को असुर सहन नहीं कर पाया तो प्राण की भिक्षा मांगते हुए, उसने भगवान् से प्रार्थना की और गणेश जी ने गजमुख को जीवन भर के लिए मूषक में बदल दिया और अपने वाहन के रूप में रख लिया। बाद में गजमुख भी अपने इस रूप से खुश हुआ और गणेश जी का प्रिय मित्र भी बन गया।
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