महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र के मैदान में लड़ा गया था। कौरवों ने पांडवों को हराने के लिए साम, दाम, दंड, भेद का इस्तेमाल किया। भीष्म पितामह भले ही कौरवों के सेनापति थे, लेकिन दुर्योधन को उन पर पूर्ण विश्वास नहीं था। वह मन ही मन सोचता था कि तात श्री पांडवों से स्नेह रखते हैं, इसलिए वह कभी उन पर बाण नहीं चलाएंगे…
पितामह से जाकर दुर्योधन बोला, ‘पितामह आप एक अच्छे योद्धा हैं, मगर मैं आप से खुश नहीं हूं। आप दुनिया के महान योद्धा और एवं परशुराम के शिष्य हैं और अभी तक एक भी पांडव को मार नहीं पाए हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि आप गुप्त रूप से पांडवों की तरफ से लड़ रहे हों।’ यह सुनकर भीष्म पितामह को बहुत दुख हुआ। वह दुर्योधन से बोले, ‘तुम मुझ पर ऐसे गंभीर आरोप कैसे लगा सकते हो। सारा संसार जानता है कि मैं अपने वचन का कितना पक्का हूं।’
खुद की सच्चाई साबित करने के लिए पितामह ने दुर्योधन के सामने अपने तूणीर में से 5 बाण निकाले और बोले, ‘मैंने इन 5 बाणों में अपना सारा बल और शक्ति डाल दी है। अगर मैंने इन 5 बाणों का अपने युद्ध में प्रयोग किया तो पांडव बच नहीं सकते।’
दुर्योधन को पितामह पर भरोसा नहीं था, इसलिए उसने ये 5 बाण उनसे लेकर अपने पास रख लिए। अर्जुन के सारथी और पांडवों के रणनीतिज्ञ भगवान कृष्ण को अपने गुप्तचरों के माध्यम से इस बात की जानकारी मिल चुकी थी।
भगवान कृष्ण ने अर्जुन को दुर्योधन का दिया वचन याद दिलाया। एक बार वन में अर्जुन ने युधिष्ठिर के कहने पर गंधर्वों से दुर्योधन की जान बचाई थी। इसके बदले में दुर्योधन ने अर्जुन को वचन दिया था, ‘तुमने मेरी जान बचाई है।
इसके बदले में तुम मुझसे कुछ भी मांग सकते हो। मैं अपना वचन अवश्य निभाऊंगा।’ अर्जुन ने दुर्योधन से कहा था कि वह भविष्य में आवश्यकता पड़ने पर मांग लेंगे। कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि अब वह वक्त आ गया है कि तुम दुर्योधन से अपने वर में ये 5 बाण मांग लो, जो वह पांडवों को मारने के लिए पितामह से लाया है।
अर्जुन उसी रात दुर्योधन के खेमे में गया। जब दुर्योधन ने दुश्मन खेमे में आने का कारण पूछा तो अर्जुन ने उसको वह वचन याद दिलाया। अर्जुन ने उससे वचन में वे 5 बाण मांग लिए जो वह पांडवों को मारने के लिए पितामह से लेकर आया था। वचन की जंजीर में जकड़े दुर्योधन को बड़े ही भारी मन के साथ वे बाण अर्जुन को देने पड़े।
अगली सुबह जब युद्ध में जाने के लिए पितामह ने वे बाण से दुर्योधन से मांगे तो उसका सिर लज्जा से झुक गया। बड़े ही लज्जित भाव से उसने पितामह को बताया, ‘वे बाण मुझे अर्जुन को देने पड़े। क्या आप वैसे ही बाण और तैयार कर सकते हैं।’
दोबारा वैसे ही बाण तैयार करने के प्रश्न पर पितामह ने उत्तर दिया, ‘क्षमा करना दुर्योधन अब ये संभव नहीं है। यदि वे बाण मेरे पास होते तो मैं उन्हें कभी पांडवों को न देता। तुमने तो स्वयं अपने हाथ से ही अपनी विजय शत्रुओं को सौंप दी।’
भागवताचार्य एवं ज्योतिषाचार्य- श्री राजेश शाश्त्री जी (फूप जिला-भिंड (म. प्र.)
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