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क्योँ दुर्लभ होते हैं 15 से 21 मुखी तक के रुद्राक्ष

Written by Bhakti Pravah

पन्द्रहमुखी से लेकर इक्कीसमुखी तक के रूद्राक्ष का मिलना दुर्लभ होते हैं। किन्तु इन रूद्राक्षों के बारे में जानकारी होना जरूरी है। इन रुद्राक्षों में से किसी को भी अगर आप धारण करते हैं, तो आपके जीवन में सुख समृद्धि चारों तरफ से आती है।

पन्द्रमुखी- यह रूद्राक्ष भगवान पशुपति का स्वरूप माना गया है। इसको धारण करने से जाने-अनजाने में किये गये पापों का नाश होता है, और धार्मिक कार्यो की ओर मन अग्रसर होता है,जिससे धन, पद, प्रतिष्ठा एंव परिवार में सुख व शान्ति का वातावरण बना रहता है।

सोलहमुखी- यह रूद्राक्ष भगवान हरिशंकर का साक्षात स्वरूप है। इस रूद्राक्ष को धारण करने से चोरी, शत्रुओं व नकारात्मक शक्तियों से रक्षा होती है तथा सुख व शान्ति बनी रहती है। जिस परिवार में सोलहमुखी रूद्राक्ष का नियमित पूजन व अर्चन होता है, उस घर में चोरी, डकैती, अपहरण, अकालमृत्यु, अग्निकाण्ड व बुरी नजर आदि का दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है।

सत्रहमुखी- यह रूद्राक्ष साक्षात सीता और राम का स्वरूप माना जाता है। इसे धारण करने वाले मनुष्य की आन्तरिक व अध्यात्मिक शक्ति में वृद्धि होती है। शरीर को निरोगी एंव शक्तिशाली बनाता है एंव जायदाद, वाहन व गुप्त धन की प्राप्ति होती है।

अठारहमुखी- यह रूद्राक्ष कालभैरव का स्वरूप माना जाता है। इस रूद्राक्ष को पहने से विभिन्न प्रकार के मानसिक रोगों से छुटकारा मिलता है। यह रूद्राक्ष स्त्रियों के लिए विशेष लाभकारी होता है। जैसे- स्त्री रोग, गर्भपात व सन्तान प्राप्ति में बाधा दूर करके सकारात्मक परिणाम दिलाता है।

उन्नीसमुखी- यह रूद्राक्ष भगवान नारायण का प्रतीक माना जाता है। इसे धारण करने से किसी भी प्रकार की व्यवसाय में आने वाली बाधा दूर होती है तथा व्यापार में प्रगतिशीलता परिलक्षित होती है। कोर्ट-कचहरी आदि से सम्बन्धित लम्बित मामलों में विजय प्राप्त होती है एंव घरेलू झगड़ों में कमी आती है।

बीसमुखी- यह रूद्राक्ष ब्रह्रमा का प्रतीक माना गया है। इस रूद्राक्ष को धारण करने से साधक वर्ग की कुण्डलनी जाग्रत होती है एंव धारक को घटना व परिघटना का पूर्वानुमान महसूस होने लगता है। नवग्रहों के सभी प्रकार के दुष्प्रभावों को नष्ट करने में बीसमुखी रूद्राक्ष सक्षम होता है।

इक्कीसमुखी- यह रूद्राक्ष साक्षात भगवान कुबेर का स्वरूप माना गया है, किन्तु इसका मिल-पाना अतिदुर्लभ है। यह भौतिक जगत के विभिन्न प्रकार के सुखों को प्रदान करने में सक्षम है। इसे धारण करने से साहस, बल, बुद्धि, विद्या, धन, प्रतिष्ठा, व्यवसाय, नौकरी आदि में सफलता मिलती है।

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