अर्जुन एवं सुभद्रा का पुत्र अभिमन्यु महाभारत महाकाव्य का अद्भुत पात्र है। भगवान श्रीकृष्ण का यह भानजा अर्जुन के समान ही श्रेष्ठ धनुर्धन था। यह वीर्य में युधिष्ठिर के समान, आचार में श्रीकृष्ण के समान, भयंकर कर्म करने वालों में भीम के समान, विद्या- पराक्रम में अर्जुन के समान था। अभिमन्यु का विवाह महाराज विराट की पुत्री उत्तरा के साथ हुआ था।
महाभारत के युद्ध में भीष्म के बाद द्रोणाचार्य कौरव- सेना के सेनापति बनाये गये। दुर्योधन के उकसाने पर उन्होंने अर्जुन की अनुपस्थिति में चक्रव्यूह का निर्माण कर डाला, जिसे अर्जुन के अतिरिक्त कोई तोड़ नहीं सकता था। महाराज युधिष्ठिर इस आसन्न संकट को देखकर निराश और दु:खी होकर बैठे थे। अपने पक्ष के लोगों को हताशा देखकर सुभद्रा कुमार अभिमन्यु ने कहा- महाराज आप चिंता ना करें। आचार्य ने सोचा होगा कि अर्जुन आज दूर है, चक्रव्यूह रचाकर पाण्डवों पर विजय पायें, किंतु मेरे रहते उनकी यह मनोकामना कभी पूर्ण नहीं होगी। मै कल अकेला ही इस व्यूह का भेदन करके कौरवों का मान-मर्दन करूंगा।
युधिष्ठिर ने पूछा- बेटा, पहले यह बताओ कि तुम चक्रव्यूह- भेदन की क्रिया जानते हो। अर्जुन की यह दिव्य विद्या तुम्हारे हाथ कैसे आयी? अभिमन्यु ने बताया- बात उस समय की है, जब मै माता के गर्भ में था। एक बार उन्हें निद्रा नहीं आ रही थी और उनकी तबियत भी ठीक नहीं थी पिताजी उनका मन बहलाने के लिए उन्हे चक्रव्यूह- भेदन की कला बतलाने लगे। उन्होंने चक्रव्यूह के छ: द्वार तोड़ने तक की बात बतायी थी, किंतु आगे माताजी को नींद आ गयी और पिताजी ने सुनाना बंद कर दिया। अत: मैं चक्रव्यूह में प्रवेश करके उसके छ: द्वार तोड़ सकता हूं किंतु सातवां द्वार तोड़कर निकलने की विद्या मुझे नहीं आती। इसपर भीमसेन ने कहा कि सातवां द्वार तो मैं अपनी गदासे ही तोड़ दूंगा।
दूसरे दिन प्रात: काल युद्ध आरम्भ हुआ। चक्रव्यूह के मुख्य द्वारा रक्षक जयद्रथ था। जयद्रथ ने अर्जुन के अतिरिक्त शेष पाण्डवों को जीतने का भगवान शंकर से वरदान प्राप्त किया था। अभिमन्यु ने अपनी बाण-वर्षा से जयद्रथ को मूर्छित कर दिया और व्यूह के भीतर चला गया, किंतु भगवान शंकर के वरदान से भीमसेन आदि अन्य योद्धाओं को जयद्रथ ने रोक दिया। इसलिए भीमसेन आदि अभिमन्यु की सहायता के लिए भीतर ना जा सके।
अपने रथ पर बैठकर अकेले अभिमन्यु ने बाणों की वर्षा से से शत्रुओं को व्याकुल कर दिया। कौरव सेना के हाथी, घोड़े और सैनिक कट-कटकर गिरने लगे। चारों ओर हाहाकर मच गया। द्रोणाचार्य, कर्ण,अश्वत्थामा, शकुनी, शल्य, दुर्योधन आदि महारथी अभिमन्यु के हाथों बार-बार परास्त हुए। अकेले अभिमन्यु प्रलय बनकर भयंकर संहार करते रहे। उस समय उन्हें रोकने का साहस किसी के पास नहीं था। द्रोणाचार्य ने स्पष्ट कह दिया- इस बालक के हाथ में धनुष-बाण रहते, इसे जीतना असंभव है। अंत में कर्णादि छ: महारथियों ने अभिमन्यु पर अन्यायपूर्वक आक्रमण किया। उन लोगों ने अभिमन्यु के रथ के घोड़ों और सारथि को मार दिया, उसके रथ का पहिया उठाकर ही शत्रुओं को मारना शुरू कर दिया। उसी समय दु:शासन के पुत्र ने पीछे से उनके सिर में गदा का प्रहार किया, जिससे महाभारत का महान योद्धा वीरगति को प्राप्त हुआ।
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