गोवर्धन पूजा पर भगवान श्रीकृष्ण को 56 भोग का अन्नकूट भी लगाया जाता है। वैष्णव जन इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। सवाल यह उठता है कि भगवान को 56 व्यंजनों का ही भोग क्यों लगता है? क्यों भगवान इससे कम या ज्यादा का भोग स्वीकार नहीं करते? 56 भोगों पर काफी कुछ लिखा गया है और लोग भी बड़ी श्रद्धा से इस परंपरा को निबाह रहे हैं।
56 भोग के पीछे सारे कारण बहुत ही दार्शनिक है। कुछ विद्वान यह मानते हैं कि यह संभव है कि जिस समय यह परंपरा शुरू हुई तो उस समय इतने ही पकवान बनते हों, इससे ज्यादा व्यंजन हो ही नहीं। लेकिन 56 के आंकड़े में कुछ खास बातें हैं। कहते हैं जिस कमल पर भगवान विष्णु विराजित हैं उसकी पंखुडिय़ों की संख्या 56 है, यह तीन चरणों में है, पहले में आठ, दूसरे में 16 और तीसरे में 32 पंखुडिय़ां होती हैं। इसी लिए भगवान को 56 भोग लगाए जाते हैं।
एक कारण ओर है। एक प्राणी की 84 लाख योनियां बताई गई हैं, जिसमें से श्रेष्ठ है मनुष्य योनि। अगर मनुष्य योनि को अलग कर दिया जाए तो 83,99,999 संख्या होती है। ये सारी योनियां पशु-पक्षी की होती है। इन सबको जोड़ दिया जाए तो (8+3+9+9+9+9+9=56) 56 ही योग आता है। विद्वानों का मानना है कि मनुष्य जन्म को छोड़कर शेष जन्मों से मुक्ति पाने के लिए ही हम 56 भोग का प्रसाद भगवान को लगाते हैं। यह मानकर कि हमने अपने शेष 83,99,999 जन्म भगवान को अर्पित कर दिए हैं।
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