जैसा की हिन्दू परंपरा में कोई भी पूजा या अनुष्ठान करने से पहले सभी मूर्तियों और प्रतिमाओं को पंचामृत के भोग से स्नान कराया जाता है, शिवजी को चढ़ने वाले पंचामृत में भी एक गूढ़ संदेश है. पंचामृत का अर्थ है ‘पांच अमृत’। दूध, दही, घी, शहद, शकर को मिलाकर पंचामृत बनाया जाता है। इसी से भगवान का अभिषेक किया जाता है। पांचों प्रकार के मिश्रण से बनने वाला पंचामृत कई रोगों में लाभदायक और मन को शांति प्रदान करने वाला होता है.
दूधः दूध अत्यंत शुभता का प्रतिक है और शांति का प्रतिक है, दूध मतलब सफ़ेद बिना दाग वाला, अर्थात हमारा जीवन दूध की तरह निष्कलंक होना चाहिए साथ ही दूध मोह का भी प्रतीक है॥
शहदः मधुमक्खी कण-कण भरने के लिए शहद संग्रह करती है. इसे लोभ का प्रतीक माना गया है॥
दहीः इसका तासीर गर्म होता है. क्रोध का प्रतीक है॥
घीः यह समृद्धि के साथ आने वाला है, अहंकार का प्रतीक॥
गंगाजलः मुक्ति का प्रतीक है. गंगाजल मोह, लोभ, क्रोध और अहंकार को समेटकर शांत करता है॥
पंचामृत से अर्चना का अर्थ हुआ हम मोह, लोभ, क्रोध और अहंकार को समेटकर शिवजी को अर्पित करके उनके श्री चरणों में शरणागत हों।
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