अध्यात्म

किन कारणों से भैरव देव बने काशी विश्वनाथ के कोतवाल

Written by Bhakti Pravah

जब सभी साधु संतो और देवताओ के समक्ष ब्रह्माजी का पांचवा शीश शिव के बारे में गलत शब्द बोल रहा था तब एक दिव्य शिवलिंग से एक बालक भैरव का जन्म हुआ जिसका उद्देश्य ब्रह्माजी के झूठे अहंकार को ख़त्म करना था

जब भैरव ने अपने नाखुनो से ब्रह्मा का पांचवा शीश काट कर अपने हाथ में धारण कर लिया तब शिवजी प्रकट हुए | उन्होंने भैरव को बताया की तुम बह्र्म हत्या पाप के भागी हो | और इस पाप ले लिए तुम्हे भी आम व्यक्ति की तरह दुःख भोगना पड़ेगा

अत: इस पाप से मुक्ति के लिए तुम्हे त्रैलोक्य का भ्रमण करना पड़ेगा | जिस स्थान पर यह शीश तुम्हारे हाथ से स्वत: ही छुट जायेगा वही पर तुम इस पाप से मुक्त हो जाओगे |

यह कह कर भगवान शिव ने एक अत्यंत तेजस्वी और विकराल रुपी कन्या को प्रकट किया जो अपने लम्बी लाल जीभ से रक्त का पान कर रही थी | उसके हाथ में खप्पर में खून भरा था और दुसरे हाथ में अति तीक्ष्ण तलवार थी | यह कन्या बरह्म हत्या ही थी जिसे शिव ने भैरव के पीछे छोड़ दिया था | जो इन्हे कही भी सुख पूर्वक बेठने नहीं देगी |

भैरव शिव आदेश अनुसार और अपने पापो की मुक्ति के लिए तीनो लोको की यात्रा पर निकल पड़े | अनंत काल तक यह यात्रा चलती रही और बह्र्म हत्या नामक वह कन्या उनका पीछा करती रही | एक दिन भैरव जी काशी नगरी में प्रवेश कर गये | उस नगरी में उस कन्या का प्रवेश करना शिव आदेश के अनुसार मना था |

और इस तरह उस कन्या से इनका पीछा छुट गया | काशी मे गंगा तट पर एक स्थान पर भैरव से ब्रह्माजी का शीश छुट गया और वे हमेशा के लिए इस पाप से मुक्त हो गये | यह स्थान कपाल मोचन के नाम से प्रसिद्ध हुआ |

भगवान शिव ने अपने परम धाम काशी में ही भैरव को कोतवाल का पद प्रदान कर दिया | काशी में आज भी भैरव का वास है | इसके अलावा उज्जैन नगरी में काल भैरव का प्रसिद्ध मंदिर है |

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