भगवान गणेश बुद्धिमान होने के साथ ही बचपन से ही बड़े नटखट थे। इन्हें बड़े भाई को सताना और उनके साथ खेलना बड़ा ही अच्छा लगता था। लेकिन इनका यही नटखटपन इनके लिए मुसीबत बन गया। कुमार कार्तिक स्त्री पुरूष के अंग लक्षणों पर ग्रंथ समुन्द्रशास्त्र (पामिस्ट्री) लिख रहे थे। कार्तिक ने अभी सिर्फ पुरूषों के अंग लक्षणों को ही लिखा था कि गणेश जी आकर लेखन में विघ्न डालने लगे। कुमार कार्तिक ने गणेश जी को काफी समझाया लेकिन गणेश जी ने बड़े भाई की बात नहीं मानी। क्रोधित होकर कार्तिक ने गणेश जी की एक दांत तोड़ दी। इसके बाद तो गणेश जी भागे पिता महादेव के पास।
महादेव ने जब गणेश जी की एक टूटी हुई दांत देखी तो कार्तिक से इसका कारण पूछा। कार्तिक ने बताया कि वह अंग लक्षणों पर पुस्तक लिख रहे थे। गणेश जी के कारण स्त्रियों के अंग लक्षण वह नहीं लिख पाए, इसलिए गणेश जी का दांत तोड़ दिया। शिव जी ने कार्तिक से पूछा कि तुम पुरुषों के अंग लक्षणों के बारे में लिख चुके हो, तो बताओ मेरे अंग लक्षण क्या कहते हैं। कार्तिक ने भगवान शिव से कहा – कि “आपके अंग लक्षण बताते हैं कि संसार आपको कपाली के रूप में जानेगा।”
शिव जी इस बात से क्रोधित हो गए और कार्तिक द्वारा लिखे गए ग्रंथ को समुद्र में फेंक दिया। बाद में जब शिव जी का क्रोध शांत हुआ तब समुद्र से स्त्रियों के अंगल लक्षणों को लिखने के लिए कहा इसलिए पामिस्ट्री को शास्त्रों में समुद्रशास्त्र कहा जाता है। इसके बाद भगवान शिव ने कार्तिक से कहा – कि तुम गणेश जी के दांत वापस कर दो। कार्तिक ने गणेश जी को दांत वापस कर दिए लेकिन यह भी कहा कि यह दांत हमेशा अपने हाथों में रखना होगा। अगर दांत को अपने से अलग करेंगे तो खुद ही भष्म हो जाएंगे। इस घटना के बाद से गणेश जी हमेशा अपने पास दांत रखने लगे यही कारण है कि गणेश जी कई मूर्तियों और तस्वीरों में उन्हें हाथ में दांत लिए दिखाया जाता है।
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