कार्तिक माह की कृष्ण चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी के दिन किया जाने वाला यह करक चतुर्थी व्रत अखंड सौभाग्य की कामना के लिए स्त्रियां करती हैं । करवा चौथ में सरगी का काफी महत्व है । सरगी (फेनी की खीर, कच्चा नारियल, मठ्ठियां और फल) सास की तरफ से अपनी बहू को दी जाने वाली आशीर्वाद रूपी अमूल्य भेंट होती है । सम्पूर्ण सामग्री को एक दिन पहले ही एकत्रित कर लें ।
व्रत वाले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नान कर स्वच्छ कपड़े पहन लें तथा शृंगार भी कर लें। इस अवसर पर करवा की पूजा-आराधना कर उसके साथ शिव-पार्वती की पूजा का विधान है क्योंकि माता पार्वती ने कठिन तपस्या करके शिवजी को प्राप्त कर अखंड सौभाग्य प्राप्त किया था इसलिए शिव-पार्वती की पूजा की जाती है । करवा चौथ के दिन चंद्रमा की पूजा का धार्मिक और ज्योतिष दोनों ही दृष्टि से महत्व है । व्रत के दिन प्रात: स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोल कर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें – मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये ।
करवाचौथ का व्रत पूरे दिन बिना कुछ खाए-पिए किया जाता है । दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें । इसे वर कहते हैं । चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है। उसके बाद आठ पूरियों की अठावरी, हलवा और पक्के पकवान बनाएं । उसके बाद पीली मिट्टी से गौरी बनाएं और उनकी गोद में गणेश जी बनाकर बिठाएं । ध्यान रहे गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएं । चौक बनाकर आसन को उस पर रखें । गौरी को चुनरी चढ़ाएं । बिंदी आदि सुहाग सामग्री से गौरी का श्रृंगार करें । उसके बाद जल से भरा हुआ लोटा रखें । बायना देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें । करवे में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें तथा उसके ऊपर दक्षिणा रखें । रोली से करवा पर स्वास्तिक बना लें, अब गौरी-गणेश और चित्रित करवा की परम्परानुसार पूजा करें तथा पति की दीर्घायु की कामना करें ।
शाम को ‘नम: शिवाय शर्वाण्य सौभाग्यं संतति शुभाम। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे ॥’ कहते हुए करवा पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवाचौथ की कथा कहें या सुनें । कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सास के पैर छू कर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें । तेरह दाने गेहूं के और पानी का लोटा या टोंटीदार करवा अलग रख लें । रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें । इसके बाद पति से आशीर्वाद लें । तत्पश्चात पति के हाथों से पानी पीकर अपना व्रत तोड़े और भोजन ग्रहण करें ।
Leave a Comment