अध्यात्म

जानिये कैसे रुद्राक्ष बदल सकता है आपके जीवन की दिशा

Written by Bhakti Pravah

रुद्राक्ष अमूल्यवान अमृत तुल्य फल है। यह भगवान शिव की अमूल्य देन है। माना जाता है कि भगवान शिव के उपासना द्वारा नेत्रों से गिरे आंसुओं की बूंदों से उत्पन्न रुद्राक्ष सर्व सुखमय मंगलकारियों के लिये अति लाभकारी सिध्द हुआ है। ऐसी मान्यता है कि रुद्राक्ष का धारण करने वाला साक्षात् रुद्र (शिव) को धारण करता है। रुद्राक्ष पर पड़ी धारियों के आधार पर ही इनके मुखों की गणना की जाती है। रुद्राक्ष एक मुखी से लेकर इक्कीस मुखी तक होते हैं, किन्तु प्रायः एक मुखी से लेकर चौदह मुखी तक ही प्राप्त होते हैं। चौदह मुखी से अधिक रुद्राक्ष प्रायः दुर्लभ वस्तु है। अतः हम यहां पर एक से लेकर चौदह मुखी तक के रुद्राक्षों का अलग-अलग महत्व व उनकी उपयोगिता का वर्णन कर रहे हैं

एकमुखी: साक्षात् भगवान शंकर का स्वरूप है जो कि सर्वश्रेष्ठ है। इससे भक्ति व मुक्ति दोनों की प्राप्ति होती है। धारक प्रतिदिन पवित्र व पापों से शुध्द होता है। जिन्होंने इसे पा लिया उसके बड़े भाग्य हैं। जहां यह होगा वहां लौकिक एवं आध्यात्मिक सुखों का वास होगा। इसको धारण करने से समस्त प्रकार के कष्टों व दुःखों का स्वतः ही नाश हो जाता है।

दो मुखी: शिव और शक्ति का स्वरूप है। इसे धारण करने वाले सम्पत्ति, धन-धान्य और सत्संगति से युक्त होकर शांत व पवित्र गृहस्थ जीवन व्यतीत करते हैं। वैवाहिक क्लेश व मनमुटाव आदि के निवारण हेतु धारण किया जाता है।

तीन मुखी:- साक्षात् अग्नि का विग्रह है। इसे धारण करने से सभी मानसिक रोग ठीक हो जाते हैं। साक्षात्कार में सफलता प्राप्त में सहायक है।

चारमुखी: ब्रह्मा का स्वरूप है। इसे धारण करने से सभी मानसिक रोग ठीक हो जाते हैं। इसका धारक महान धनाढ्य, आरोग्यवान व श्रेष्ठ माना जाता है।

पांचमुखी: पंचब्रह्म स्वरूप है। इसे पास रखने वाले प्राणी को कोई दुःख नही सताता व सब प्रकार के पाप मिट जाते हैं। रक्तचाप को नियंत्रित करने में सहायक होता है। प्रायः जप माला इसी को बनाई जाती है।

छह मुखी: स्कन्द के समान है। विद्या प्राप्ति के लिये श्रेष्ठ है। तीक्ष्ण बुध्दि व स्मरण शक्ति में वृध्दि करता है।

सातमुखी: लक्ष्मीजी का स्वरूप है। धन, सम्पत्ति, कीर्ति प्रदान करने वाला होता है। सातमुखी वाला बड़ी मुश्किल से प्राप्त होती है। इसे धारण करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं।

आठमुखी: गणेश जी का स्वरूप है। विजयश्री प्रदान करने वाला माना गया है। इसे धारण करने से विरोधियों की समाप्ति हो जाती है अर्थात् उनका मन बदल जाता है। मुकदमे आदि में सफलता प्रदान करता है। यह आयु बढ़ाने वाला है।

नौमुखी: धर्मराज का स्वरूप है। इसे धारण करने से सहनशीलता, वीरता, साहस, कर्मठता में वृध्दि होती है। संकल्प में दृढ़ता आती है वह यमराज का भय नहीं रहता। स्त्री रोग, गर्भपात व संतान प्राप्ति की बाधा दूर करने में सहायक होता है।

दसमुखी: भगवान विष्णु का स्वरूप है। इससे सर्वग्रह शांत होते हैं। ग्रह बाधा के कारण यदि भाग्य साथ न देता हो तो अवश्य धारण करें। भूत, पिशाच, सर्प आदि का भय नहीं रहता।

ग्यारहमुखी: ग्यारह रुद्रों की प्रतिमा होती है। भाग्यवृध्दि, धनवृध्दि व भगवान शंकर की कृपा पाने के लिये सर्वोत्तम है इसे धारण करने से सदा सुख की वृध्दि होती है। स्त्रियों के लिये यह रुद्राक्ष सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। पति की दीर्घायु, उनकी सुरक्षा व उन्नति तथा सौभाग्य प्राप्ति में यह रुद्राक्ष बहुत उपयोगी है।

बारहमुखी: आदित्य का स्वरूप माना गया है। इसे धारण करने से गौ हत्या, मनुष्य हत्या व रत्नों की चोरी जैसे पाप दूर होते हैं। इससे व्यक्ति कार्य करने में दक्ष हो जाता है। धारक अपनी भावनाओं तथा अपने कथन को सुंदर व व्यस्थित तरीके से व्यक्त करने में समर्थ होते हैं। अतः सामने वाले को चतुर वाणी से अपने पक्ष में कर लेने की क्षमता उत्पन्न होती है।

तेरहमुखी: स्वामी कार्तिकेय के समान है। राज्य में पद प्राप्त व्यक्तियों को सफलता दिलाकर सम्मान में वृध्दि करता है। सम्पूर्ण कामनाओं व सिध्दियों को देने वाला है। हर सांसारिक मनोकामना पूर्ति का एकमात्र साधन है। धन यश मान प्रतिष्ठा में वृध्दि करता है।

चौदहमुखी: यह हनुमानजी का स्वरूप है तथा अति दुर्लभ, परम प्रभावशाली व अल्प समय में ही शिवजी का सान्निध्य प्रदान करने वाला है। हानि, दुर्घटना, रोग व चिंता से मुक्त रखकर, साधक की सुरक्षा समृध्दि करना इसका विशेष गुण हैं। जो रोग ठीक नहीं होते यह उनको भी ठीक कर देता है। एक मुखी रुद्राक्ष के बाद यही रुद्राक्ष सबसे अधकि प्रभावशाली माना गया है।

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