अध्यात्म

जानें कैसे किया शनि देव ने श्री कृष्ण के दर्शन

Written by Bhakti Pravah
पौराणिक कथाओं के अनुसार द्वापर युग में जब श्रीकृष्ण रास रचाते थे तो देवी-देवता विचलित हो जाते थे। उनकी इच्छा होती थी कि वे भी आनन्द कन्द भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला में शामिल हों कर दर्शन और प्रेम का आनंद लू। इसके लिए उन्हें सीधे तो मौका नहीं मिलता था लेकिन वे किसी न किसी सहारे छिप कर गोपियाें का नृत्य देखते थे। ऐसे ही जिज्ञासु शनिदेव थे जिन्होने भगवान् कृष्ण की रास क्रीडा देखने की सोची। बताते हैं कि वे ब्रज की एक जगह जिसे कोकिलावन कहते है , वंहा  एक पेड़ पर कोयल बन कर बैठ गए और तब दर्शन सफल हुए। कहते हैं उनके रूप की वजह से कोयल के नाम पर कोकिलावन कहलाने लगा । ब्रज वासियों के लिए  मंदिरों में स्थापत्य भी करना पडा़। तब से ही शनिदेव की प्रतिमा यहां बनी र्है।
ब्रज में यूं तो कर्इ जगह ऐसी हैं जहां गए श्रद्घालु उन स्थलों से जुड जाते हैं। मनोकामनाएं पूर्ण हो जाने की अवधि तक वहीं रहते हैं। लेकिन मात्र दो घास के तिनकों को बांध देने से यदि किसी की विपदाएं टल जाएं ऐसी मान्यता आपने शायद ही सुनी होगी। हम जिस स्थल के बारे में बात कर रहे हैं वह न के केवल श्रीकृष्ण द्वारा शनिदेव को दर्शन देने वाले वाकए से जुड़ा है बल्कि वो जगह आज भी है जहां तहे दिल से आने वाले लोगों को शनिदेव से किसी भी पीडा का डर नहीं रहता। हर शनिवार यहां हजारों की संख्या में श्रद्घालु आते हैं और सवा कोस की परिक्रमा लगाते हैं। खत्म करने के दौरान कच्ची पगडडिंयों में पडने वाली दूर्वा घास-फूंस की गांठ लगार्इ जाती है। मान्यता हैं कि मनोकामनाएं पूरी होने या पडने वाली विपदाओं के दूर होने तक यह प्रक्रिया ही भक्तों को सहयोग प्रदान करती है।
Post Credit – आचार्य भूपेन्द्र शर्मा , उज्जैन 
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