आप ने अपने आस पड़ोस में देखा होगा कि कुछ विवाहित जोड़े सदैव खुश तथा सुखी दिखाई देते हैं, तो कुछ दुखी। सुखी पति-पत्नी सदैव सुखी रहते हैं, चाहे शादी हुए एक लंबा समय ही क्यों न बीत गया हो और दुखी पति-पत्नी दुखी ही रहते हैं, चाहे शादी का पहला साल ही क्यों न हो।
ऐसा क्यों होता है? इस का उत्तर ढूंढ़ने के लिए मनोवैज्ञानिकों ने अनेक शोध, सर्वेक्षण तथा अध्ययन किए। इन अनुसंधानों, सर्वेक्षणों तथा अध्ययनों से प्राप्त सार को हम अपने पाठकों तक पहुंचा रहे हैं। हमारा उद्देश्य यही है कि हमारे पाठक सदैव सुखी वैवाहिक जीवन जीएं।
हम इस लेख में सुखी दंपती और दुखी दंपती दोनों का ही विश्लेषण प्रस्तुत कर रहे हैं :
सुखी जीवन जीने वाले दंपती विवाह को ‘आनंद’ के रूप में स्वीकार करते हैं। यह आनंद बातों द्वारा भी उठाया जा सकता है और किसी कार्य को साथसाथ कर के भी उठाया जा सकता है। दुखी दंपती इसे एक रिश्ते के रूप में देखते हैं। आपस में बातें करना उन्हें समय की बरबादी लगता है। यदि काम करना ही हो तो बस काम निबटाने की सोचते हैं। वे कर्म में आनंद महसूस नहीं करते।
अपनी पत्नी या पति को आनंद के स्रोत के रूप में देखें। यदि एक बार आप के मन में रसिक भाव जाग्रत हो गया तो बुढ़ापे तक यह रसिकता या जिंदादिली काम आती है और आप की पत्नी या पति सदैव आप के लिए आकर्षण का स्रोत बना रहता है। दुखी दंपती शुरू से ही एकदूसरे से ऊब जाते हैं तथा यह उबाऊपन जीवन भर उन का साथ नहीं छोड़ता है।
सुखी दंपती जिंदगी के अन्य मुद्दों, जैसे आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक, नातेरिश्तेदारों आदि को दूसरा स्थान देते हैं, जबकि दुखी दंपती इन्हें पहला स्थान देते हैं। समाजसेवा या दोस्तों में मशगूल रहने वाले वास्तव में दुखी पत्नी या पति ही अधिक होते हैं। अत: अपने साथी को ही मित्र बनाइए और जीवन को रंगीन बनाइए।
सुखी दंपती सैक्स को पूरा महत्त्व देते हैं, जबकि दुखी दंपती इसे सिर्फ शारीरिक मिलन से अधिक कुछ नहीं समझते। अत: सुखी दंपती सैक्स से ही आनंद प्राप्त करते हैं, जबकि दुखी दंपती इसे मात्र जैविक क्रिया मानते हैं व इस से दूर भागने का प्रयास करते हैं। सुखी दंपती अपने निजी संबंधों के लिए ही एकांत क्षणों की खोज में रहते हैं, परंतु दुखी दंपतियों को इन क्षणों की चाह ही नहीं होती है।
तर्कवितर्क सुखी दंपती में भी होते हैं व दुखी में भी लेकिन सुखी दंपती तर्क को तर्क से हल करते हैं, जबकि दुखी दंपती तर्क में कुतर्क कर लड़ाई की स्थिति पैदा कर लेते हैं।
झगड़ें मगर प्यार से
सुखी जीवन के लिए तर्क करें पर तर्क करने का तरीका संयत रखें। यह महत्त्वपूर्ण नहीं होता कि तर्क क्यों किया, बल्कि यह महत्त्वपूर्ण होता है कि तर्क कैसा किया अर्थात झगड़ें जरूर पर प्यार से।
सुखी जीवन के लिए ऊंचे स्वर में न बोलें। धीमे बोलें, प्यार से बोलें, मीठा बोलें। याद रखें कभी आप को अपने शब्दों को निगलना भी पड़ सकता है।
एकदूसरे के रिश्तेदारों को सम्मान दें
पतिपत्नी एकदूसरे के मित्रों के बारे में अपनी राय एक दूसरे पर न थोपें। इसे नितांत निजी मामला मान कर चुप रहें। दुखी दंपती आधा समय तो एकदूसरे के दोस्तों के बारे में ही अपनीअपनी राय दे कर झगड़ते रहते हैं।
सुखी पति-पत्नी बार-बार अपने प्रेम का इजहार करते हैं, प्रेम भरे बोल बोलते हैं, एकदूसरे की इच्छाओं, शौकों इत्यादि का ध्यान रखते हैं तथा जन्मदिन या विवाह की वर्षगांठ पर उत्सव मनाते हैं। इस से दोनों पक्षों में प्रेम और अधिक प्रगाढ़ होता है, जबकि दुखी पतिपत्नी इन सब को आडंबर मान कर कोई महत्त्व नहीं देते हैं। बार-बार यह कहने से कि मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं/करती हूं से प्यार सचमुच बढ़ता है। कभी-कभी उपहार लाने और नई खाने की चीज ला कर साथ-साथ खाने का भी अपना अलग ही आनंद होता है। अत: सुखी दंपती सदैव एक दूसरे के प्रति सजग व समर्पित होने के साथसाथ प्यार की अभिव्यक्ति में भी आगे रहते हैं।
भावनाओं को दें सम्मान
सुखी दंपती एकदूसरे के प्रति सम्मान दो व सम्मान लो की नीति अपनाते हैं। एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करते हैं व एकदूसरे की रुचियों में रुचि लेते हैं।
सुखी दंपती एकदूसरे की आय, उस के कार्य, उस की प्रतिष्ठा से संतुष्ट रहते हैं। यदि कोई पत्नी अपने कम पढ़े लिखे पति को यह कह दे कि तुम सचमुच विद्वान हो तो पति की खुशी का ठिकाना न रहेगा व वह विद्वान होने का प्रयास करेगा। इसी प्रकार पति अपनी रणचंडी जैसी पत्नी को बहुत ही शांत स्वभाव की कहे तो ऐसा कहना उन के बीच के विरोध को पाटने में सफल होगा। परंतु ध्यान रखें कि अतिशयोक्ति न हो। एक दूसरे की आय के प्रति सदैव संतुष्टि बनाए रखें. यही सुखी रहने का रहस्य है।
सुखी दंपती बच्चों के भविष्य के प्रति भिन्न विचारधारा नहीं रखते हैं। दोनों मिलजुल कर ऐसा रास्ता निकालते हैं, जिस से बच्चों का भविष्य भी न खराब हो और उन के अहं को भी चोट न पहुंचे। जबकि दुखी दंपती बच्चों के भविष्य के प्रति अडि़यल रुख अपना लेते हैं। इस से बच्चों का भविष्य तो खराब होता ही है, पतिपत्नी में भी मनमुटाव हो जाता है।
सुखी दंपती अपने साथी से कुछ भी नहीं छिपाते हैं। वे एक दूसरे को अपना सब से बड़ा हितैषी व मित्र मानते हैं।
सुखी दंपती एकदूसरे के प्रति अटूट विश्वास व निष्ठा रखते हैं, जबकि दुखी दंपती एकदूसरे से बहुत कुछ छिपाते हैं। एक दूसरे पर संदेह करते हैं तथा इन में निष्ठा का भी अभाव होता है। यदि आप सुखद वैवाहिक जीवन के लिए इन सूत्रों को अपनाते हैं, तो हमें पूरा विश्वास है कि आप का दांपत्य जीवन भी आनंद से भर उठेगा।