रोग कारक ग्रह जब गोचर में जन्मकालीन स्थिति में आते हैं और अंतर-प्रत्यंतर दशा में इनका समय चलता है तो उसी समय रोग उत्पन्न होता है।
यदि षष्ठेश, अष्टमेश एवं द्वादशेश तथा रोग कारक ग्रह अशुभ तारा नक्षत्रों में स्थित होते हैं तो रोग की चिकित्सा निष्फल रहती है।
यदि षष्ठेश चर राशि में तथा चर नवांश में स्थित होते हैं तो रोग की अवधि छोटी होती है। द्विस्वभाव में स्थित होने पर सामान्य अवधि होती है।स्थिर राशि में होने पर रोग दीर्घकालीन होते हैं ।
मेष राशि
1.मेष: – सर मस्तिष्क, मुख, सम्बंधित हड्डिया
2.वृषभ: – गर्दन, गाल .दाया नेञ
3.मिथुन: – कन्धा, हाथ, श्वासनली .दोनों बाहू
4 कर्क: – ह्रदय, छाती, स्तन, फेफड़ा .पाचनतंत्र, उदर
5.सिंह: – ह्रदय, उदर, नाडी, स्पाईनल, पीठ की हड्डिया
6.कन्या: – कमर, आंत, लिवर, पित्ताशय, गुर्दे और अंडकोष
7 तुला: -वस्ति नितम्ब, मूत्राशय, गुर्दा
8.वृश्चिक: – गुप्तेंद्रिया, अंडकोष, गुप्तस्थान
9.धनु: – दोनों जंघे, नितम्ब
10.मकर: – दोनों घुटने, हड्डियों का जोड़
11.कुम्भ: – दोनों पिंडालिया, टाँगे
12.मीन: – दोनों पैर .तलुए राशियों के भांति ग्रह नक्षत्र में भी स्थायी गुन दोष हैजिनके आधार पर रोगों के परिक्षण में सरलता आ जाता है।
दो ग्रहों की युक्ति
चन्द्र-राहु की युति हो
तो पागलपन या निमोनिया रोग से कष्ट होगा।
गुरु-राहु की युति हो
तो दमा, तपेदिक या श्वास रोग से कष्ट होगा।
मंगल-राहु या केतु-मंगल की युति हो तो शरीर में टयूमर या कैंसर से कष्ट होगा।
चन्द्र-बुध या चन्द्र-मंगल की युति हो
तो ग्रन्थि रोग से कष्ट होगा।
गुरु-शुक्र की युति हो या ये आपस में दृष्टि संबंध बनाएं तो डॉयबिटीज के रोग से कष्ट होता है।
शुक्र-केतु की युति हो
तो स्वप्न दोष, पेशाब संबंधी रोग होते हैं।
गुरु-बुध की युति हो तो भी दमा या श्वास या तपेदिक रोग से कष्ट होगा।
शुक्र-राहु की युति हो तो जातक नामर्द या नपुंसक होता है।
मंगल-शनि की युति हो तो रक्त विकार, कोढ़ या जिस्म का फट जाना आदि रोग से कष्ट होगा अथवा दुर्घटना से चोट-चपेट लगने के कारण कष्ट होता है।
सूर्य-शुक्र की युति हो तो भी दमा या तपेदिक या श्वास रोग से कष्ट होगा।
गुरु-मंगल या चन्द्र-मंगल की युति हो तो पीलिया रोग से कष्ट होता है।
जो ग्रह बलवान हॉता है वे दूसरे को बीमारी देता है।। या जिस ग्रह की डिग्री ज्यादा हो वह बीमारी देता है।
जैसे बुध गुरु की युति मे बुध कम डिग्री का है तो दमा स्व: दमा स्वाश की बीमारी वरना तपेदिक होगा: रोग निदान में भी ज्योतिष का बड़ा योगदान है।
दैनिक जीवन में हम देखते हैं कि जहां बड़े-बड़े चिकित्सक असफल हो जाते हैं। डॉक्टर थककर बीमारी व मरीज से निराश हो जाते हैं ।
वही मन्त्र-आशीर्वाद, प्रार्थनाएँ, यज्ञ हवन अनुष्ठान आदि काम कर जाते है !
साधारण व्यक्ति भी ज्योतिष शास्त्र के सम्यक ज्ञान से अनेक रोगों से बच सकता है।
क्योंकि अधिकांश रोग सूर्य और चंद्रमा के विशेष प्रभावों से उत्पन्न होते हैं। फायलेरिया रोग चंद्रमा के प्रभाव के कारण ही एकादशी व अमावस्या को बढ़ता है।
ज्योतिषियों का कहना है कि जिस प्रकार चंद्रमा समुद्र के जल में उथल-पुथल मचा सकता है, उसी प्रकार शरीर के रुधिर प्रवाह में भी अपना प्रभाव डालकर निर्बल मनुष्यों को रोगी बना देता है।
अतएव ज्योतिष द्वारा चंद्रमा के तत्वों को अवगत कर एकादशी और अमावस्या को वैसे तत्वों वाले पदार्थों के सेवन से बचने पर फायलेरिया पागलपन क्रोध मानसिक आदि जैसे रोग से छुटकारा मिल सकता है।
इस प्रकार निर्बल मनुष्य इन रोगों के आक्रमण से अपनी रक्षा कर सकता ह चिकित्सा ज्योतिष के लिए छठे भाव और इसके स्वामी पर विस्तार से विचार करना चाहिए। रोग का समय निर्धारण: प्राय: 6, 8, 12 भावों के स्वामियों की दशाओं का संयोजन और मूलरूप से लग्नेश की अंतर्दशा में रोग की उत्पत्ति होती है। मेष लग्न में मंगल की दशा में बुध की अंतर्दशा के अंतर्गत बीमारियां आती हैं। यद्यपि मंगल लग्नेश होते हैं और मंगल की मूल त्रिकोण राशि लग्न में ही होती है तथापि ये अष्टम भाव के स्वामी भी होते हैं तथा बुध छठे भाव के स्वामी हैं।
वृषभ लग्न में छठे भाव में शुक्र की मूल त्रिकोण राशि तुला स्थित होती है। शुक्र महादशा में बृहस्पति की अंतर्दशा अथवा बृहस्पति दशान्तर्गत शुक्र अंतर्दशा में कोई भारी रोग उत्पन्न होता है। बृहस्पति नैसर्गिक रूप से इस लग्न के लिए अशुभ एवं अनिष्टकारी होते हैं। इस लग्न में बृहस्पति एकादशेश होते हैं, जो छठे से छठा भाव होता है।
इसी प्रकार सभी लग्नों में 6, 8, 12 भावों के स्वामियों की दशाओं या अंतर्दशाओं के साथ-साथ लग्नेश की अंतर्दशा में रोग प्रकट होते हैं। 6, 8, 12 भावों में स्थित ग्रह भी उनकी महादशाओं या अंतर्दशाओं में बीमारियों को जन्म देते हैं। मृत्यु संबंधी मामलों में मारक ग्रहों की दशाओं में रोगों की प्रचंडता बढ़ जाती है। मारक भावों (2-7) और 8, 12 भावों में स्थित ग्रह अपनी दशा या अंतर्दशा में रोग कारक हो जाता है।
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