अध्यात्म

जानिये जब भगवान ने बनाई स्त्री

Written by Bhakti Pravah

जब भगवान स्त्री की रचना कर रहे थे तब उन्हें काफी समय लग गया। छठा दिन था और स्त्री की रचना अभी अधूरी थी।

इसलिए देवदूत ने पूछा– भगवान, आप इसमें इतना समय क्यों ले रहे हो?

भगवान ने जवाब दिया– क्या तुमने इसके सारे गुणधर्म देखे हैं, जो इसकी रचना के लिए जरूरी हैं।

यह हर प्रकार की परिस्थितियों को संभाल सकती है। यह एकसाथ अपने सभी बच्चों को संभाल सकती है एवं खुश रख सकती है। यह अपने प्यार से घुटनों की खरोंच से लेकर टूटे दिल के घाव भी भर सकती है। यह सब सिर्फ अपने दो हाथों से कर सकती है। इसमें सबसे बड़ा गुणधर्म यह है कि बीमार होने पर अपना ख्याल खुद रख सकती है एवं 18 घंटे काम भी कर सकती है।

देवदूत चकित रह गया और आश्चर्य से पूछा कि भगवान क्या यह सब दो हाथों से कर पाना संभव है?

भगवान ने कहा- यह मेरी अद्भुत रचना है।

देवदूत ने नजदीक जाकर स्त्री को हाथ लगाया और कहा- भगवान यह तो बहुत नाजुक है।

भगवान ने कहा- हां, यह बाहर से बहुत ही नाजुक है, मगर इसे अंदर से बहुत मजबूत बनाया है। इसमें हर परिस्थितियों का संभालने की ताकत है। यह कोमल है पर कमजोर नहीं है।

देवदूत ने पूछा- क्या यह सोच भी सकती है?

भगवान ने कहा- यह सोच भी सकती है और मजबूत होकर मुकाबला भी कर सकती है।

देवदूत ने नजदीक जाकर स्त्री के गालों को हाथ लगाया और बोला- भगवान ये तो गीले हैं। लगता है इसमें से कुछ बह रहा है।

भगवान बोले- यह इसके आंसू हैं।

देवदूत- आंसू किसलिए?

भगवान बोले- यह भी इसकी ताकत है। आंसू इसको फरियाद करने, प्यार जताने एवं अपना अकेलापन दूर करने का तरीका है।

देवदूत- भगवान आपकी रचना अद्भुत है। आपने सब कुछ सोचकर बनाया है। आप महान हैं।

भगवान बोले- यह स्त्रीरूपी रचना अद्भुत है। यही हर पुरुष की ताकत है, जो उसे प्रोत्साहित करती है। वे सभी को खुश देखकर खुश रहती हैं, हर परिस्थिति में हंसती रहती हैं। उसे जो चाहिए, वह लड़कर भी ले सकती है। उसके प्यार में कोई शर्त नहीं है। उसका दिल टूट जाता है, जब अपने ही उसे धोखा दे देते हैं, मगर हर परिस्थितियों से समझौता करना भी जानती है।

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