अध्यात्म

जानकार दांग रह जायेंगे पूर्णिमा ओर अमावस्या के बारे में

Written by Bhakti Pravah

जैसा की हम सब जानते है महीने में १५ दिन के बाद अमावस्या एवं १५ दिन के बाद पूर्णिमा आती है कुछ तो विशेष पर्व भी इन्ही थिथियो पर आते है जो की बहुत ही शुभ होते है मगर ज्यादातर लोगों का यह मानना है कि आम दिनों के अलावा पूर्णिमा और अमावस्या के दिन ही ज्यादातर अकस्मात् होने वाली घटनाएं सामने आती है, पूर्णिमा के दिन मोहक दिखने वाला और अमावस्या पर रात में छुप जाने वाला चांद अनिष्टकारी होता है। हादसों और प्राकृतिक प्रकोप का भी अक्सर यही समय होता है। चांद के कारण समुद्र में उठने वाली लहरें इसी बात को पुष्ट करती हैं। और हादसों के आंकड़े भी इस बात को काफी हद तक प्रमाणित करते हैं।

मानव शरीर में 80 प्रतिशत जल होने से मन व मस्तिष्क पर चंद्रमा का असर ज्यादा होता है। यह प्रभाव खासतौर पर पूर्णिमा व अमावस्या के दिन अधिक दिखाई देता है। जबकि चंद्र सबसे कमजोर ग्रह माना जाता है। इसकी गति धीमी होती है और यह ढाई दिन में राशि परिवर्तन करता है। चंद्रमा मनुष्य को तनाव देने के साथ ही अप्रिय घटनाओं को भी अंजाम देता है।

चंद्र ग्रह मनुष्य को मानसिक तनाव देने के साथ ही कई बार आपराधिक कृत्य के लिए भी प्रेरित करता है। इसके प्रकोप से जहां प्राकृतिक आपदाएं जैसी स्थितियां निर्मित होती हैं, वहीं आपराधिक घटनाओं की संख्या में भी वृद्धि होती है। जब आत्माएं ज्यादा सक्रिय रहती हैं, तब मनुष्यों में भी दानवी प्रवृत्ति का असर बढ़ जाता है इसीलिए उक्त दिनों के महत्वपूर्ण दिन में व्यक्ति के मन-मस्तिष्क को धर्म की ओर मोड़ दिया जाता है। अमावस्या के दिन भूत-प्रेत, पितृ, पिशाच, निशाचर जीव-जंतु व दैत्य ज्यादा सक्रिय और उन्मुक्त रहते हैं।

तो इस प्रकार ऐसे दिन की प्रकृति को जानकर विशेष सावधानियाँ बरतनी चाहिए।

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