वैदिक नववर्ष, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रमी संवत् 2075 (18 मार्च, 2018)” की आप सभी को अग्रिम शुभकामनाएँ। इसी दिन 1,96,08,53,119 वर्ष पूर्व इस पृथिवी के तिब्बत – हिमालय क्षेत्र में युवावस्था में मनुष्यों की उत्पत्ति हुई, इस कारण यह मानव उत्पत्ति संवत् है। मनुष्योत्पत्ति के दिन ही अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा नामक चार महर्षियों ने ब्रह्माण्ड में अनेक प्रकार के Vibrations के रूप में व्याप्त वैदिक ऋचाओं (मंत्रों) को अपने योग बल से ग्रहण करके सृष्टि के रचयिता निराकार सर्वज्ञ ब्रह्म रूप चेतन तत्व की प्रेरणा से उनका अर्थ भी जाना, जो ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद के रूप में सृष्टि में विख्यात हुआ। इन्हीं चार ऋषियों ने महर्षि ब्रह्मा (आद्य) को सर्वप्रथम चारों वेदों का ज्ञान दिया। इस कारण यह वेद संवत् भी है। यह संवत् संसार के सभी धार्मिक पवित्र मानवों के लिए है-
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का ऐतिहासिक महत्व :
1.:-इसी दिन आज से तथा सृष्टि संवत 1,96,08,53,119 वर्ष पुर्व सूर्योदय के साथ ईश्वर ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की।
2:-प्रभु श्री राम के राज्याभिषेक का दिन यही है। वाल्मीकीय रामायण के अनुसार इसी दिन वेद-वेदांग-विज्ञान के महान् ज्ञाता मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्रीराम ने आततायी महाबली रावण का वध किया। ध्यातव्य है कि श्रीराम व रावण का अन्तिम युद्ध चैत्र की अमावस्या को प्रारम्भ हुआ और दो दिन चला। प्रचलित दशहरे (विजयादशमी) का रावण वध से कोई सम्बन्ध नहीं है।
महाभारत के अनुसार इसी दिन धर्मराज युधिष्ठिर की अधर्म की प्रतिमूर्ति दुर्योधन पर विजय हुई। दुर्योधन की मृत्यु के समय योगेश्वर महामानव भगवान् श्रीकृष्ण जी ने कहा था- ‘प्राप्तं कलियुगं विद्धि’, इस कारण यह दिन किसी भी युग का प्रारम्भिक दिन भी होने से युग संवत् भी है। युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ था इसलिए यह युधिष्ठिर संवत है ।
3:-समस्त भारतीयों के लिए यह दिन इस कारण महनीय है क्योंकि इसी भारत भूमि पर मनुष्य, वेद, भगवान् श्रीराम, धर्मराज युधिष्ठिर सभी उत्पन्न हुए तथा इसी का सम्बन्ध सम्राट् विक्रमादित्य से भी है, जिनके नाम से इस दिन को विक्रम संवत् का प्रारम्भ भी मानते हैं। यह 2075 वां वि.सं. है। सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन राज्य स्थापित किया। इन्हीं के नाम पर विक्रमी संवत् का पहला दिन प्रारंभ होता है।
4:-विक्रमादित्य की भांति शालिवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना।
वैदिक नववर्ष का प्राकृतिक महत्व :
1. वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरी होती है।
2. फसल पकने का प्रारंभ यानि किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है।
वैदिक नववर्ष कैसे मनाएँ :
1. हम परस्पर एक दुसरे को नववर्ष की शुभकामनाएँ दें।
2. आपने परिचित मित्रों, रिश्तेदारों को नववर्ष के शुभ संदेश भेजें।
3 . इस मांगलिक अवसर पर अपने-अपने घरों में हवन यज्ञ करे और वेद आदि शास्त्रो के स्वधयाय का संकल्प ले।
4. घरों एवं धार्मिक स्थलों में हवन यज्ञ के प्रोग्राम का आयोजन जरूर करें ।
5. इस अवसर पर होने वाले धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लें अथवा कार्यक्रमों का आयोजन करें।
आप सभी से विनम्र निवेदन है कि “वैदिक नववर्ष” हर्षोउल्लास के साथ मनाने के लिए “ज्यादा से ज्यादा सज्जनों को प्रेरित” करें।
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