सामान्यतः यदि लग्न कुंडली में कोई गृह अपनी नीच राशि में स्थित हो तो उसे अशुभ मान लिया जाता है। ऐसी धारणा बन जाती है की ये गृह अपनी महादशा अथवा अन्तर्दशा में विभिन्न प्रकार की समस्याएं जरूर उत्पन्न करेगा, जातक को प्रताड़ित करेगा और सम्बंधित भाव के लिए नुकसानदायक होगा। यदि आपकी या आपके किसी परिवारजन की या किसी मित्र की जन्मकुंडली में ऐसा कोई गृह अथवा एक से अधिक ऐसे गृह हैं तो यकीन मानिये आपको घबराने की कतई आवश्यकता नहीं है। नीच राशि में स्थित बग्रह हमेशा खराब फल ही दें ऐसा नहीं है।
आपको बता दें की अधिकतर कुंडलियों में नीच राशिस्थ गृह की नीचता भांग हो चुकी होती है, जिसे नीच भंग राजयोग कहा जाता है, बस आवश्यकता होती है तो कुंडली का सही प्रकार से विश्लेषण करने की। नीच भांग राजयोग का अर्थ ही है की गृह की नीचता भंग है और अब वह शुभ फल प्रदान करने के लिए तैयार है। यहाँ एक और बात आपसे सांझा करते चलें की ऐसा भी देखने में आया है की नीच भंग राज योगों का फल सामान्य राज योगों से कहीं अधिक मिलता है। ऐसे जातक को जीवन में संघर्षरत रहना पड़ता है किंतु यदि कुण्डली में दो या दो से अधिक नीच भंग राजयोग निर्मित होते हों तो वह अवश्य ही बहुत उन्नति करता है और समाज में ऊंचा स्थान प्राप्त करता है।
नीच राशिस्थ गृह के लिए जो स्थितियां नीच भंग राजयोग का सृजन करके महान फलदायक बन जाती हैं इस प्रकार हैं
1. जन्म कुण्डली की जिस राशि में ग्रह नीच राशिस्थ हो उस राशि का स्वामी उस पर दृष्टिडाल रहा हो या फिर जिस राशि में ग्रह नीच होकर बैठा हो उस राशि का स्वामी स्वगृही होकर युति संबंध बना रहा हो तो नीच भंग राजयोग का सृजन हुआ माना जाता है। ऐसे स्थिति नीच राशिस्थ गृह के शुभत्व में वृद्धि हो जाती है।
2. जिस राशि में ग्रह नीच होकर बैठा हो उस राशि का स्वामी अपनी उच्च राशि में बैठा होतो भी नीच भंग राजयोग का निर्माण होता है।
3. नीच का गृह नवमांश कुंडली में उच्च राशिस्थ हो तो नीच भंग राजयोग निर्मित होता है।
4. नीच राशिस्थ ग्रह अगर अपने से सातवें भाव में बैठे नीच ग्रह को देख रहा हो तो दोनों ग्रहों का नीच भंग हो जाता है, यानी दो नीच गृह परस्पर सातवीं दृष्टि से एक दुसरे को देखते हों तो दोनों का नीच भंग हुआ कहा जाएगा। ये महान योगकारक स्थिति का द्योतक है।
5. जिस राशि में ग्रह नीच का होकर बैठा हो उस राशि का स्वामी जन्म राशि से केन्द्र में मौज़ूद हो एवं जिस राशि में नीच ग्रह उच्च का होता है उस राशि का स्वामी भी केन्द्र में बैठा हो तो निश्चित ही नीच भंगराजयोग का सृजन होता है।
6. जिस राशि में ग्रह नीच का होकर बैठा हो उस राशि का स्वामी एवं जिस राशि में नीच ग्रह उच्च का होता है उसका स्वामी लग्न से कहीं भी केन्द्र में स्थित हों तो ऐसी अवस्था में भी नीच भंग राजयोग का निर्माण हुआ माना जाता है।ध्यान देने योग्य है की कोई भी गृह एक निश्चित डिग्री तक ही उच्च या नीच का होता है।
Post Credit : राधावल्लभ ज्योतिष केंद्र गाजियाबाद
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