सनातन धर्म में महाशिवरात्रि का विशेष महत्व प्रतिपादित है। भगवान शिव की आराधना का यह विशेष पर्व माना जाता है। पौराणिक तथ्यानुसार आज ही के दिन भगवान शिव की लिंग रूप में उत्पत्ति हुई थी। प्रमाणान्तर से इसी दिन भगवान शिव का देवी पार्वती से विवाह हुआ था ।
इस वर्ष कुछ विद्वानों द्वारा इस पर्व की तिथि को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है। हमारी सनातन व्यवस्था में इसका ठीक-ठीक निर्धारण ज्योतिष एवं धर्मशास्त्र के सामञ्जस्य से ही सम्भव है।
फाल्गुन कृष्णपक्ष की चतुर्दशी शिवरात्रि होती है। परन्तु इसके निर्णय के प्रसंग में कुछ आचार्य प्रदोष व्यापिनी चतुर्दशी तो कुछ निशीथ व्यापिनी चतुर्दशी में महाशिवरात्रि मानते है। वे आचार्य जिन्होने प्रदोष काल व्यापिनी को स्वीकार किया है वहाॅं उन्होने प्रदोष का अर्थ ‘अत्र प्रदोषो रात्रिः’ कहते हुए रात्रिकाल का निर्धारण किया है। ईशान संहिता में स्पष्ट वर्णित है कि
‘‘ फाल्गुन कृष्णचतुर्दश्याम् आदि देवो महानिशि। शिवलिंग तयोद्भूतः कोटि सूर्यसमप्रभः।। तत्कालव्यापिनी ग्राहृा शिवरात्रिव्रते तिथिः।।’
धर्मशास्त्रीय उक्त वचनों के अनुसार इस वर्ष 13 फरवरी की रात 10:36 से चतुर्दशी तिथि लगेगी जो कि 14 फरवरी की रात 12:47 तक रहेगी, 13 फरवरी को मंगलवार, जया योग और त्रयोदशी युक्त चतुर्दशी का उत्तम संयोग है । तथा 14 फरवरी को सिद्धि योग, रसकेशरी योग और नौ पंचम योग के साथ चतुर्दशी तिथि का उत्तम संयोग बन रहा है। अतः जया योग रहने और त्रयोदशी के साथ चतुर्दशी युक्त संयोग रहने के कारण 13 फरवरी 2018 को ही महाशिवरात्रि मनाना उत्तम रहेगा ।
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