जेसा कि नाम से ही स्पष्ट है , पित्रों के द्वारा बनाया गया दोष पितृ दोष होता है । कुण्डली में सूर्य के साथ राहु हो या सूर्य के उपर शनि कि दृष्टि हो , नवम भाव, लग्न- लग्नेश राहु केतु से पीडित हो तब पितृ दोष का निर्माण कुण्डली में होता है । अधिकांशतः ज्योतिषज्ञ इसे केवल मात्र सूर्य चन्द्र के साथ राहु केतु से ही मानते है किन्तु पितृ दोष प्रत्येक ग्रह से बनता है – पितृ का मतलब केवल मात्र पिता से नहीं है , पितृ का मतलब पूर्वजों से है यदि आपने पूर्व जन्म में आपके माता- पिता, मामा – भुवा, गुरू या किसी भी पूर्वज का अपमान किया हो या उन्हे किसी भी प्रकार से कष्ट दिया हो तो आपको पित्रों का श्राप लग जाता है जिसके फल स्वरूप आपको संतान प्राप्ति में बाधा आती है , परिवार में शान्ति नहीं रहती है, धन कि कमी रहती है, संतान हो भी जाती है तो जीवन भर आपको कष्ट देती है, या बीमार संतान होती है , जिसकि सेवा माता पिता को करनी पडती है । भाग्य साथ नहीं देता है । तथा थोडे थोडे समय के अंतराल में बुरी घटनायें परिवार में घटती रहती है । यह जरूरी नहीं कि पितृ दोष पूर्व जन्म से ही बनेगा , पितृ दोष इस जन्म में भी बन सकता है , जब हम पित्रों का पिण्डदान ठीक से नहीं करते है , मरते समय उनकि कोइ इच्छा अधुरी रह जाये, या आपने
उनकि सेवा नहीं करके उन्हे कष्ट दिया हो । तो इन सारी स्थितियों का सामना करना पड सकता है । पित्रों का हम पर बहुत बडा ऋण होता है उन्ही कि बदोलत हम इस दुनिया को देख पाते है, इस संसार के भोग भोगते है तथा उनके जाने के बाद उनकि संपत्ति पर अधिकार भी जताते है । इतना सब मिलने के बाद भी जब आप थोडा सा धन खर्च करके उनका पिण्डदान नहीं करवाते हो, उनके निमित्त ब्राह्मण भोजन ओर ब्राह्मण को दान नहीं देते हो संपत्ति के मद में चूर होकर उन्हे भूल जाते हो तो सीधी सी बात है उनको क्रोध आयेगा ओर तब पित्र अनेक प्रकार से आपको कष्ट देकर स्वयं कि याद दिलायेंगे ।
किसी कि भी परिस्थिति जानने के लिये स्वयं को उसके स्थान पर रख कर सोचो आपको स्वतः ही ज्ञान हो जायेगा । आज के समय में आपके पूर्वज पित्र है तो कल के समय मेंआप भी पितृ बन सकते हो , ओर जब आपके पुत्र प्रपोत्र आपके साथ एसा व्यवहार करेंगे तब क्या आपको दुःख नहीं होगा ? आपको क्रोध नहीं आयेगा ? 100% आयेगा ओर आप भी आपके पुत्र प्रपोत्रों कि कुण्डली में पितृ दोष का निर्माण कर दोगे ।
इसलिये घर में जो बडे बुजुर्ग हो उनकि सेवा करो, आपके जो पूर्वज इस संसार को छोडकर जा चुके हो उनका किसी तीर्थ स्थान में जाकर पिण्डदान करवओ, हर अमावस्या को उनके निमित्त ब्राह्मण भोजन करवाओ तथा ब्राह्मग को सफेद वस्त्र दान करो । ओर सबसे बडी बात प्रतिदिन उन्हे याद करके उन्हे प्रणाम करो । उन्हे धन्यवाद दो कि जो कुछ भी मुझे मिला है वो आप ही कि बदोलत मिला है , फिर देखिये केसे प्रणाम से परिणाम बदलते है
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