गुंजा एक फली का बीज है। इसको धुंघची, रत्ती आदि नामों से जाना जाता है। इसकी बेल काफी कुछ मटर की तरह ही लगती है। इसे अब भी कहीं कहीं आप सुनारों की दुकानों पर देख सकते हैं। कुछ वर्ष पहले तक सुनार इसे सोना तोलने के काम में लेते थे क्योंकि इनके प्रत्येक दाने का वजन लगभग बराबर होता है करीब 120 मिलीग्राम।
यह तंत्र शास्त्र में जितनी मशहूर है उतनी ही आयुर्वेद में भी। आयुर्वेद में श्वेत गूंजा का ही अधिक प्रयोग होता है औषध रूप में साथ ही इसके मूल का भी जो मुलैठी के समान ही स्वाद और गुण वाली होती है। इसीकारण कई लोग मुलैठी के साथ इसके मूल की भी मिलावट कर देते हैं।
वहीं रक्त गूंजा बेहद विषैली होती है और उसे खाने से उलटी दस्त पेट में मरोड़ और मृत्यु तक सम्भव है। आदिवासी क्षेत्रों में पशु पक्षी मारने और जंगम विष निर्माण में अब भी इसका प्रयोग होता है।
गुंजा की तीन प्रजातियां मिलती हैं:-
1. रक्त गुंजा: – लाल काले रंग की ये प्रजाति भी तीन तरह की मिलती है जिसमे लाल और काले रंगों का अनुपात 10%, 25% और 50% तक भी मिलता है।
ये मुख्यतः तंत्र में ही प्रयोग होती है।
2. श्वेत गुंजा: – श्वेत गुंजा में भी एक सिरे पर कुछ कालिमा रहती है। यह आयुर्वेद और तंत्र दोनों में ही सामान रूप से प्रयुक्त होती है। ये लाल की अपेक्षा दुर्लभ होती है।
3. काली गुंजा: – काली गुंजा दुर्लभ होती है, आयुर्वेद में भी इसके प्रयोग लगभग नहीं हैं हाँ किन्तु तंत्र प्रयोगों में ये बेहद महत्वपूर्ण है।
इन तीन के अलावा एक अन्य प्रकार की गुंजा पायी जाती है पीली गुंजा ये दुर्लभतम है क्योंकि ये कोई विशिष्ट प्रजाति नहीं है किन्तु लाल और सफ़ेद प्रजातियों में कुछ आनुवंशिक विकृति होने पर उनके बीज पीले हो जाते हैं। इस कारण पीली गूंजा कभी पूर्ण पीली तो कभी कभी लालिमा या कालिमा मिश्रित पीली भी मिलती है।
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