क्षमा न मांगने या न करने का बोझ अनंत जन्म-जन्मांतर तक रहता है, अगर हमारे शब्दों या कर्मों ने किसी को आहत किया है या हम किसी के शब्दों या कर्मों से आहत हुए हैं तो हमें क्षमा मांगने या क्षमा करने में देरी नहीं करनी चाहिये, क्योंकि यदि हम मन पर उस बोझ को ज्यादा दिन रखेंगे तो वह हमारे मन को पंगू बना देगा !
मन पर लगा यह घाव समय के साथ-साथ नासूर बन जाएगा और अगर उसी स्थिति में हमारी देह छूट गई तो अगले ना जाने कितने जन्मों तक उस आत्मा के साथ यह हिसाब-किताब चलता रहेगा, इसलिए समय रहते क्षमा करें या क्षमा मांग लें, इसी मे क्षमा करने या मांगने वाले का कल्याण है.
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