ज्योतिष

जानिये अंगारक योग की वैदिक ज्योतिष में

Written by Bhakti Pravah

अंगारक योग की वैदिक ज्योतिष में प्रचलित परिभाषा के अनुसार यदि किसी कुंडली में मंगल का राहु अथवा केतु में से किसी के साथ स्थान अथवा दृष्टि से संबंध स्थापित हो जाए तो ऐसी कुंडली में अंगारक योग का निर्माण हो जाता है जिसके कारण जातक का स्वभाव आक्रामक, हिंसक तथा नकारात्मक हो जाता है तथा इस योग के प्रभाव में आने वाले जातकों के अपने भाईयों, मित्रों तथा अन्य रिश्तेदारों के साथ संबंध भी खराब हो जाते हैं। कुछ वैदिक ज्योतिषी यह मानते हैं कि किसी कुंडली में अंगारक योग बन जाने पर ऐसा जातक अपराधी बन जाता है तथा उसे अपने अवैध कार्यों के चलते लंबे समय तक जेल अथवा कारावास में भी रहना पड़ सकता है।

किन्तु यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि वास्तविकता में किसी जातक को अंगारक योग के साथ जोड़े जाने वाले अशुभ फल तभी प्राप्त होते हैं जब कुंडली में अंगारक योग बनाने वाले मंगल, तथा राहु अथवा केतु दोनों ही अशुभ हों तथा कुंडली में मंगल तथा राहु केतु में से किसी के शुभ होने की स्थिति में जातक को अधिक अशुभ फल प्राप्त नहीं होते और कुडली में मंगल तथा राहु केतु दोनों के शुभ होने की स्थिति में इन ग्रहों का संबंध अशुभ फल देने वाला अंगारक योग न बना कर शुभ फल देने वाला अंगारक योग बनाता है। उदाहरण के लिए किसी कुंडली के तीसरे घर में अशुभ मंगल का अशुभ राहु अथवा अशुभ केतु के साथ संबंध हो जाने की स्थिति में ऐसी कुंडली में निश्चय ही अशुभ फल प्रदान करने वाले अंगारक योग का निर्माण हो जाता है जिसके चलते इस योग के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातक अधिक आक्रामक तथा हिंसक होते हैं तथा कुंडली में कुछ अन्य विशेष प्रकार के अशुभ प्रभाव होने पर ऐसे जातक भयंकर अपराधी जैसे कि पेशेवर हत्यारे तथा आतंकवादी आदि बन सकते हैं। दूसरी ओर किसी कुंडली के तीसरे घर में शुभ मंगल का शुभ राहु अथवा शुभ केतु के साथ संबंध हो जाने से कुंडली में बनने वाला अंगारक योग शुभ फलदायी होगा जिसके प्रभाव में आने वाले जातक उच्च पुलिस अधिकारी, सेना अधिकारी, कुशल योद्धा आदि बन सकते हैं जो अपनी आक्रमकता तथा पराक्रम का प्रयोग केवल मानवता की रक्षा करने के लिए और अपराधियों को दंडित करने के लिए करते हैं।

मैने ऐसी बहुत सी कुंडलियों का अध्ययन किया है जिनमें अंगारक योग बनता है तथा यह पाया है कि इस योग के प्रभाव में आने वाले विभिन्न जातकों को इस योग के शुभ अशुभ भिन्न भिन्न प्रकार के फल मिलते हैं जो मुख्य रूप से इन जातकों की कुंडलियों में अंगारक योग बनाने वाले मंगल तथा राहु अथवा केतु के स्वभाव, बल तथा स्थिति आदि पर निर्भर करते हैं। कुंडली में अशुभ मंगल तथा अशुभ राहु अथवा केतु के संयोग से बनने वाला अंगारक योग सबसे अधिक अशुभ फलदायी होता है जबकि इन दोनों ग्रहों में से किसी एक के शुभ हो जाने की स्थिति में यह योग उतना अधिक अशुभ फलदायी नहीं रह जाता। उदाहरण के लिए किसी कुंडली के छठे घर में अशुभ मंगल तथा शुभ राहु के स्थित हो जाने से बनने वाला अंगारक योग सामान्यतया जातक को हिंसक अपराधी नहीं बनाता तथा ऐसा जातक सामान्यतया किसी न किसी प्रकार के रोग से पीड़ित रहता है तथा ऐसे जातक की आर्थिक स्थिति भी खराब हो सकती है। इसी प्रकार कुंडली में शुभ मंगल तथा शुभ राहु अथवा केतु के संबंध से बनने वाला अंगारक योग अशुभ फलदायी न होकर शुभ फलदायी होता है जिसके शुभ प्रभाव में आने वाले जातक अपने साहस, पराक्रम तथा युद्ध नीति के चलते संसार भर में ख्याति प्राप्त कर सकते हैं तथा ऐसे जातक अपने साहस और पराक्रम का प्रयोग केवल नैतिक कार्यों के लिए ही करते हैं। इसलिए विभिन्न कुंडलियों में बनने वाला अंगारक योग जातकों को भिन्न भिन्न प्रकार के शुभ अशुभ फल प्रदान कर सकता है तथा इन फलों का निर्धारण मुख्य रूप से कुंडली में मंगल, राहु तथा केतु के स्वभाव, बल तथा स्थिति के आधार पर किया जाता है। उदाहरण के लिए किसी कुंडली में शुभ मंगल तथा अशुभ राहु के वृश्चिक राशि में स्थित होने से बनने वाले अंगारक योग का अशुभ प्रभाव अपेक्षाकृत कम रहेगा क्योंकि वृश्चिक राशि में मंगल बलवान हो जाते हैं जबकि इस राशि में स्थित होने पर राहु का बल बहुत कम हो जाता है जिसके कारण ऐसा बलहीन राहु बलवान मंगल पर बहुत अधिक अशुभ प्रभाव नहीं डाल पाता।

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