जीवन में चार प्रकार के ऋण होते हैं। ये ऋण चुकाना प्रत्येक व्यक्ति के लिये अनिवार्य है।
1… पितृऋण – माता पिता अपना सारा जीवन अपनी संतान के पालन पोषण हेतु समर्पित कर देते हैं, कष्ट सहते हैं और इस ऋण को चुकाने हेतु संतान को माता पिता की सेवा करना अनिवार्य है।
2… ब्रम्हऋण – उस ईश्वर के प्रति जिसके कारण ये जीवन संभव हुआ और इस ऋण को चुकाने के लिये ईश्वर केवल यही चाहते हैं कि जिस पवित्र रूप में उन्होंने इस आत्मा को जीवन दिया उसी पवित्र रूप में वह उनके पास लौट आये।
3… देवऋण – उन सभी देवताओं के प्रति जिनके आशीर्वाद से सबके जीवन का भरण पोषण हुआ है, उनका ये ऋण चुकाने हेतु ये महत्वपूर्ण है कि हम अपनी आवश्यक्ता से अधिक कुछ भी संचय न करें और उन में वितरित कर दें जिन्हें उसकी आवश्यक्ता हम से अधिक है।
4… गुरूऋण – इस ऋण को चुकाना तभी संभव है जब गुरू से प्राप्त हुए ज्ञान को हम अपने तक ही सीमित न रखकर हम अन्य व्यक्तियों तक पहुँचायें, ज्ञान का परिपालन करें।
इन चारों ऋणों को उतारने के पश्चात् ही जीवन को ऋणमुक्त करना संभव है।
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