जय राजस्थान, आज हम राजस्थान के जैसलमेर शहर से 18 किमी दूर स्थित कुलधरा गाँव के बारे में चर्चा करेंगे यह बात आज से 500 साल पहले, 600 घरो और 85 गांवों का पालीवाल ब्रह्मिनो का ऐसा राज्य था जिसकी आप सपने में भी कल्पना नहीं कर सकते है, रेगिस्तान की बंजर धरा पर इन्होने जो अपना चमत्कार किया वो अत्यंत दुर्लभ और सराहनिए था…
इस राज्य के ब्राह्मण न सिर्फ मेहनती बल्कि वैज्ञानिक तौर पर भी सशक्त थे क्योंकि कुलधरा के अवशेषों से यह स्पष्ट अंकित होता है कि कुलधरा के मकानों को वैज्ञानिक आधार से बनाया गया था ! ये गाँव इतने वैज्ञानिक तरीकों से बसाए गये थे कि यहाँ इतनी गर्मी में भी, इनके घर ठन्डे ही रहते थे ! इन लोगों को हमारे वेद और शास्त्रों का भरपूर ज्ञान था ! इसी ज्ञान से इन्होनें अपने लिए इतना कुछ बना लिया था ! जैसलमेर में सबसे ज्यादा लगान यही लोग देते थे ! वास्तुशास्त्र का इनकों पूरा ज्ञान था !
जहाँ रेगिस्तान के बंजर धोरो में पानी नहीं मिलता वहीँ पालीवाल ब्राह्मणों ने उस समय ऐसा चमत्कार किया जो इंसानी दिमाग से बहुत परे था ! पालीवाल ब्राह्मणों ने जमीन पर उपलब्ध पानी का प्रयोग नहीं किया, न बारिश के पानी को संग्रहित किया बल्कि रेगिस्तान के मिटटी में मोजूद पानी के कण को खोजा और अपना गाँव जिप्सम की सतह के ऊपर बनाया, उन्होंने उस समय जिप्सम की जमीन खोजी ताकि बारिश का पानी जमीन सोखे नहीं ! गांव के तमाम घर झरोखों के ज़रिए आपस में जुड़े थे इसलिए एक सिरे वाले घर से दूसरे सिरे तक अपनी बात आसानी से पहुंचाई जा सकती थी ! घरों के भीतर पानी के कुंड, ताक और सीढि़यां कमाल के हैं ! पालीवाल ब्राह्मणों ने इस गाँव को इस तरीके से बसाया की दूर से अगर दुश्मन आये तो उसकी आवाज उससे 4 गुना पहले गाँव के भीतर आ जाती थी ! हर घर के बीच में आवाज का ऐसा मेल था जेसे आज के समय में टेलीफोन होते हे !
हैरत की बात ये है कि पाली से कुलधरा आने के बाद पालीवालों ने रेगिस्तापनी सरज़मीं के बीचों बीच इस गांव को बसाते हुए खेती पर केंद्रित समाज की परिकल्पलना की थी ! रेगिस्ता़न में खेती पालीवालों के समृद्धि का रहस्य था ! जिप्सरम की परत वाली ज़मीन को पहचानना और वहां पर बस जाना ! पालीवाल अपनी वैज्ञानिक सोच, प्रयोगों और आधुनिकता की वजह से उस समय में भी इतनी तरक्की कर पाए थे ! जैसलमेर के दीवान और राजा को ये बात हजम नहीं हुई की ब्राह्मण इतने आधुनिक तरीके से खेती करके अपना जीवन यापन कर सकते हे तो उन्होंने खेती पर कर लगा दिया पर पालीवाल ब्राह्मणों ने कर देने से मना कर दिया ! उसके बाद दीवान सलीम सिंह को गाँव के मुखिया की बेटी पसंद आ गयी तो उसने कह दिया या तो बेटी दीवान को दे दो या सजा भुगतने के लिए तयार रहे ! पालीवाल ब्राह्मणों को अपने आत्मसम्मान से समझोता बिलकुल बर्दास्त नहीं था इसलिए रातो रात 85 गाँवों की एक महापंचायत बेठी और निर्णय हुआ की रातो रात कुलधरा खाली करके वो चले जायेंगे !
जब पालीवाल ब्राह्मण रात में गाँवों को छोड़ रहे थे, तब दीवान को खबर ना लग जाने के डर से, इन्होनें सुरंगों का प्रयोग किया था ! कहते हैं कि जिन सुरंगों का उपयोग पालीवाल ब्राह्मणों ने गाँव छोड़ने हेतु किया इन 100 सुरंगों में आज भी उनके पूर्वजों धन छुपा हुआ है ! यही कारण है कि कुलधरा को 100 सुरंगों का एक शहर भी कहा जाता है ! ऐसा मानना है कि इन गुफानुमा सुरंगों में आज तक जो भी गया है वह वापस नहीं आया है ! ये सुरंगे उत्तर में अफगानिस्तान तक जाती हैं और दक्षिण में हैदराबाद तक !
कुलधरा से जाते-जाते पालीवाल ब्राह्मण इस गांव को श्राप दे गए कि इस स्थान पर कोई भी नहीं बस पाएगा, जो भी यहां आएगा वह बरबाद हो जाएगा ! आज भी जैसलमेर में जो तापमान रहता हे गर्मी हो या सर्दी,कुलधरा गाव में आते ही तापमान में 4 डिग्री की बढ़ोतरी हो जाती है ! वैज्ञानिकों की टीम जब कुलधरा पहुची तो उनके मशीनो में आवाज और तरगो की रिकॉर्डिंग हुई जिससे ये पता चलता हे की कुलधरा में आज भी कुछ शक्तिया मौजूद हे जो इस गाँव में किसी को रहने नहीं देती ! मशीनो में रिकॉर्ड तरंग ये बताती हे की वहा मौजूद शक्तिया कुछ संकेत देती हे !
आज भी कुलधरा गाँव की सीमा में आते है मोबाइल नेटवर्क और रेडियो काम करना बंद कर देते है पर जैसे ही गाँव की सीमा से बाहर आते है मोबाइल और रेडियो शुरू हो जाते है ! आज भी कुलधरा शाम होते ही खाली हो जाता हे और कोई इन्सान वहा जाने की हिम्मत नहीं करता !
उजड़ने के बाद भी कुलधरा एक अदद पर्यटक स्थल बना हुआ है ! लेकिन जो भी पर्यटक यहां आते हैं उन्हें यहां कुछ अजीबोगरीब अहसास होने लगते हैं ! किसी को आसपास चूड़ियों और महिलाओं के खिलखिलाने की आवाज आती है तो किसी को लगता है जैसे कोई उनके पास से गुजरा है ! कुलधरा से जुड़ी कहानियां भटकती आत्माओं के श्राप के बारे में बहुत कुछ कहती हैं लेकिन वास्तुशास्त्री इस विषय पर अपनी अलग ही राय रखते हैं ! वास्तुशास्त्र के ज्ञाताओं का कहना है कि कुलधरा के नैऋत्य कोण में पूरे साल बारिश होने की वजह से लगातार नमी रहती है और काई भी जमी हुई है, साथ ही कुलधरा का पूर्व आग्नेय बढ़ने से ईशान कोण घट गया है ! वास्तुशास्त्र के अनुसार ऐसे स्थान जिनका नैऋत्य कोण नीचा, नमी से ओतप्रोत और पानी का जमाव रहता हो, काई जमी हो हुई हो, नैऋत्य कोण के दक्षिण या पश्चिम भाग में बढ़ाव हो जिस कारण यहां हवा का प्रवाह बाधित हो, ऐसे स्थान पर अत्याधिक नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न हो जाती है !
नैऋत्य कोण के वास्तु दोषों के साथ यदि ईशान कोण में भी वास्तु दोष हो यानि ईशान कोण में भी कमी हो, जैसे की ईशान कोण का दबा, कटा या घटा होना इत्यादि तो नैऋत्य के इस वास्तुदोष में और ज्यादा वृद्धि होती है ! इन सभी कमियों की वजह से वहां उत्पन्न हुई नकारात्मक ऊर्जा को कभी-कभार भूत-प्रेत या बुरी आत्माओं का नाम दे दिया जाता है !
कौन थे पालीवाल ब्राह्मण ?
पालीवाल ब्राह्मण महाराज हरिदास के वंशज हैं ! यही लोग महारानी रुक्मणी के पुरोहित थे ! इन्होंने ही श्रीकृष्ण के पास रुक्मणी की प्रेमपांती पहुंचाई थी ! वे उच्चश्रेणी के सच्चे ब्राह्मण थे ! आज पालीवाल लोग दो गुटों में बँट चुके हैं ! कुछ लोग राजपूतों में शामिल हो गये हैं, कुछ अपनी बदहाली और बदकिस्मती पर रो रहे हैं ! आज आज़ाद भारत में भी इनको इनका हक़ नहीं मिल पाया है !
आज पालीवाल तो इन गाँवों में दिखते नहीं हैं लेकिन ये सुरंगें, इनके स्वाभिमान की कहानी आज भी गा रही हैं ! जो भी खजाना खोजने यहाँ आया है, वह फिर दुबारा किसी को नहीं दिख पाया है ! खुद सरकार भी यह काम नहीं कर पा रही है ! अपनी एक बेटी को बचाने के लिए, क्या कोई इतना बड़ा बलिदान दे सकता है ? इतिहास को यह बलिदान याद रखना होगा और इनके आत्म-सम्मान की वापसी के लिए भी प्रयास करने होंगे !
Post & Image Credit : Krantid00t.in
Post Published by : Pundit Shri Pradeep Upmanyu Ji.
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