इन पाँच गांवों की वजह से हुआ था महाभारत का युद्ध, अब ऐसा है उनका हाल, इनकी बदौलत टल सकता था युद्ध । लालच, स्त्री का अपमान, जैसी जैसी कई चीजों के परिणाम स्वरूप महाभारत का युद्ध हुआ। जमीन या राज्य का बंटवारा भी इन्हीं कारणों में से एक था। जमीन के लालच में कौरवों ने कई षड्यंत्र रचे। पांडवों को मारने का प्रयास भी किया और तो और भरी सभा में अपनी कुलवधू द्रोपदी का चीरहरण करके उन्हें अपमानित भी किया।
इस सब के बावजूद युधिष्ठिर युद्ध नहीं चाहते थे, क्योंकि वे जानते थे कि युद्ध से उनका पूरा वंश तबाह हो जाएगा। इसलिए उन्होंने मात्र 5 गांवों के बदले युद्ध ना करने का प्रस्ताव रखा था। अगर दुर्योधन उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेता तो इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध टल जाता।
आखिर क्या है पूरा किस्सा?
युधिष्ठिर के निवेदन पर स्वयं भगवान श्रीकृष्ण, पांडवों की ओर से शांतिदूत बनकर कौरवों के पास गए थे। हस्तिनापुर पहुंचने के बाद श्रीकृष्ण ने पांडवों का संदेश देते हुए कहा था कि अगर कौरव उन्हें मात्र 5 गांव प्रदान कर दें तो यह युद्ध नहीं होगा।
पांडवों का प्रस्ताव सुनने के बाद धृतराष्ट्र इसे स्वीकार करना चाहते थे, लेकिन दुर्योधन ने अपने पिता को भड़काते हुए कहा कि ये पांडवों की चाल है। वे जानते हैं कि हमारी विशाल सेना के आगे वे पलभर भी नहीं टिक पाएंगे इसलिए ये चाल चल रहे हैं।
श्रीकृष्ण ने दुर्योधन को फिर से समझाते हुए कहा था कि पांडव युद्ध से डरते नहीं हैं। वे बस कुल का नाश होते नहीं देखना चाहते। आगे श्रीकृष्ण ने कहा कि अगर वो पांडवों को आधा राज्य लौटा दें तो युद्ध तो टल ही जाएगा, साथ ही पांडव दुर्योधन को युवराज के रूप में भी स्वीकार कर लेंगे।
धृतराष्ट्र, भीष्म पितामह, गुरु द्रोण सभी ने दुर्योधन को समझाने की बहुत कोशिशें कीं। यहां तक कि गांधारी ने भी दुर्योधन से पांडवों का प्रस्ताव स्वीकार करने की विनती की, लेकिन हठी दुर्योधन ने किसी की बात नहीं मानी। परिणाम स्वरूप युद्ध में पूरे कौरव वंश का नाश हो गया।
ये था महाभारत का वो रोचक किस्सा, जिसमें पांच गांवों का जिक्र किया गया था। चलिए अब आपको बताते हैं कौन-से थे वे पांच गांव और आज कहां, किस नाम से मौजूद हैं।
पहला गांव- इंद्रप्रस्थ : – महाभारत में इंद्रप्रस्थ को कहीं-कहीं पर श्रीपत के नाम से भी पुकारा गया है। जब कौरवों और पांडवों के बीच मदभेद होने लगे थे, तब धृतराष्ट्र ने यमुना किनारे स्थित खांडवप्रस्थ क्षेत्र पांडवों को देकर, राज्य से अलग कर दिया था। इस जगह पर हर तरफ जंगल ही जंगल था। तभी पांडवों ने रावण के ससुर और महान शिल्पकार मायासुर से यहां महल बनाने की विनती की। पांडवों के कहने पर मयासुर ने यहां सुंदर नगरी बनाई और इस जगह का नाम इंद्रप्रस्थ रख दिया गया। आज की दिल्ली का दक्षिणी इलाका महाभारत काल का इंद्रप्रस्थ माना जाता है।
दूसरा गांव- व्याघ्रप्रस्थ : – व्याघ्रप्रस्थ यानी बाघों के रहने की जगह। महाभारत काल का व्याघ्रप्रस्थ आज बागपत कहा जाता है। मुगलकाल से इस जगह को बागपत के नाम से जाना जाने लगा था। आज ये जगह उत्तरप्रदेश में मौजूद है। कहा जाता है कि इसी जगह पर दुर्योधन ने पांडवों को मरवाने के लिए लाक्षागृह का निर्माण करवाया था।
तीसरा गांव- स्वर्णप्रस्थ : – स्वर्णप्रस्थ का मतलब है ‘सोने का शहर’। महाभारत का स्वर्णप्रस्थ आज सोनीपत के नाम से जाना जाता है। आज ये हरियाणा का एक प्रसिद्ध शहर है। समय के साथ इसका नाम पहले ‘सोनप्रस्थ’ हुआ और फिर सोनीपत।
चौथा गांव- पांडुप्रस्थ : – हरियाणा का पानीपत महाभारत के समय पांडुप्रस्थ कहा जाता था। कुरुक्षेत्र, जहां महाभारत का युद्ध लड़ा गया था, पानीपत के पास ही स्थित है। नई दिल्ली से लगभग 90 किलोमीटर दूर स्थिर इस जगह को ‘सिटी ऑफ वीबर’ यानी ‘बुनकरों का शहर’ भी कहा जाता है।
पांचवा गांव- तिलप्रस्थ : – महाभारत काल में तिलप्रस्थ के नाम से प्रसिद्ध ये जगह आज तिलपत बन चुकी है। यह हरियाणा के फरीदाबाद जिले में स्थित एक कस्बा है।
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