शिशु के जन्म समय का निर्धारण कैसे किये जाए, इनमें से कुछ मत निम्नलिखित हैं :-
1. पहला मत : जब शिशु का कोई भी अंग बाहर दिखे तो उस समय को जन्म समय मानना चाहिए |
2. दूसरा मत : जब शिशु पूर्ण रूप से बाहर आ जाए तो उस समय को जन्म समय मानना चाहिए |
3. तीसरा मत : जब शिशु बाहर आ कर रोना आरम्भ आकर दे या किसी प्रकार की आवाज करे तो उस समय को जन्म समय मानना चाहिए |
4. चौथा मत : जब शिशु की नाल काटकर शिशु को अपनी माँ से पूर्णतया अलग कर दिया जाता है तो उस समय को जन्म समय मानना चाहिए |
उपरोक्त चारों विकल्पों में से किसी भी के विकल्प को मान लेने से सही जन्म समय को जानने से भ्रम की स्थिति तो फिर भी बनी रहेगी | बहुत से विद्वान शिशु के रोने या आवाज किये जाने को शिशु का जन्म समय मानते हैं | यदि किसी कारणवश शिशु जन्म के उपरांत रोने की कोई आवाज उत्पन्न न करे तो नाल काटने के समय को जन्म समय मान लेना चाहिए | इसका मतलब तो ये हुआ कि शिशु के रोने की आवाज या शिशु के नाल काटने के समय में से जो भी पहले हो उस समय को जन्म समय मान लेना चाहिए | इस प्रकार इस मत को मान लेने से भी भ्रम की स्थिति पैदा होती है | क्योंकि समय तो एक ही होना चाहिए व वो समय सभी को मान्य होना चाहिए |
उपरोक्त दोनों तथ्यों का मनन करने पर पता चलता है कि सबसे उपयुक्त व तर्कसंगत जन्म समय वो ही मानना चहिये जब शिशु को नाल से काट कर अलग किया जाता है | नाम से काटने के पश्चात् ही शिशु का स्वतंत्र अस्तित्व शुरू होता है | यही समय ही शिशु का जन्म समय हो सकता है | ज्यादातर विद्वान भी इसी मत पर सहमत हैं व इसी मत को मानते हैं व इस समय को जन्म समय मानते हुए कुंडली निर्मित करते हैं |
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