यदि देश में लोगों से की आस्था पर सवाल किए जाएं तो इतने जवाब आएंगे कि कुछ सवाल ही नहीं सूझेंगे, चूंकि सीधा प्रमाण है कि हम सबसे प्राचीन और पवित्र सभ्यता से है। हनुमान जी इंसानों में पूजे जाने वाले वह ईश्वरीय अंश हैं “जिनमें आस्था रखने वाला सुख ही पाता है” यकीन के साथ कहता मिल जाएगा। देश में बजरंग बली के लाखों मंदिर हैं, इनमें से हर मंदिर की अपनी एक विशेषता है।
कोई मंदिर अपनी प्राचीनता की लिये फेमस है तो कोइ मंदिर अपनी भव्यता के लिए।जबकि कई मंदिर अपनी अनोखी हनुमान मूर्त्तियों के लिए जैसे कि इलहाबाद में लेटे हुए प्रतिमा है, इंदौर में रिवर्स आकारी मंदिर रतनपुर के गिरिजाबंध हनुमान मंदिर में स्त्री रुप आदि।
1. हनुमानगढ़ी, अयोध्या
अयोध्या भगवान श्रीराम की जन्मस्थली है। अयोध्या भगवान श्रीराम की जन्मस्थली है। यहां का प्रमुख श्रीहनुमान मंदिर हनुमानगढ़ी के नाम से प्रसिद्ध है। यह मंदिर राजद्वार के सामने ऊंचे टीले पर स्थित है, जिसमें 60 सीढिय़ां चढऩे के बाद बजरंग बली की प्रतिमा आती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इस मंदिर की स्थापना लगभग 300 साल पहले स्वामी अभयारामदासजी ने की थी। इतना ही नहीं, इस विशाल टेम्पल के चारों ओर निवास योग्य स्थान बने हैं, जिनमें साधु-संत रहते हैं। और यहां हनुमानगढ़ी के दक्षिण में सुग्रीव टीला व अंगद टीला नामक पूजनीय स्थान भी हैं। कन्फ्यूजन न हो इसलिए यह और बता देते हैं कि अयोध्या यूपी में आज के फैजाबाद जिले में स्थित है।
2. महावीर हनुमंत द्वार, गोवर्धन
ब्रज में हनुमान जी के करीब ढाई सौ सुंदर मंदिर हैं लेकिन गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा में पडने वाले टेम्पल अलग ही दिखते हैं। कम उूंची पहाडी, पेडों के झुरमुठ और बाजार से दूर शांत वातावरण अगर आप कहीं पाएंगे तो यह जगह ही बेहतर मिलेगी प्यारो! यहां इसके अलावा और भी मंदिर ऐसे हैं जिन्हें पूजने के लिए रोजाना सैंकडों नहीं हजारों भक्त आते हैं। क्या है कि यह वही सत्य है जब हनुमान जी ने भगवान् लक्ष्मण के लिए संजीवनी बूंटी लाकर वापिस हिमालय के टुकडे़ को हिमालय न छोडकर यहां स्थापित किया था। तबसे यह गिरराज की ही भूमि कही जाती है, बाद में कृष्ण अवतार में उतरे साक्षात् ईश्वर ने इस पहाडी का उपयोग ब्रजवासियों की इंद्र से रक्षा के लिए किया था और इसे पूज स्थल घोषित किया। प्लीज आप पूर्णमा या अमावस को यहां आस्था में विश्वास के लिए जरूर जाएं।
3. श्री संकटमोचन मंदिर, बनारस
यह वाराणसी शहर में स्थित है। जिसे धार्मिक रूप से बनारस भी कहते हैं। इस मंदिर के चारों ओर एक छोटा सा वन है। यहां का वातावरण एकांत, शांत एवं उपासकों के लिए दिव्य साधना स्थली के योग्य है। मंदिर के प्रांगण में श्रीहनुमानजी की दिव्य प्रतिमा स्थापित है। श्री संकटमोचन हनुमान मंदिर के समीप ही भगवान श्रीनृसिंह का मंदिर भी स्थापित है। ऐसी मान्यता है कि हनुमानजी की यह मूर्ति गोस्वामी तुलसीदासजी के तप एवं पुण्य से प्रकट हुई स्वयंभू मूर्ति है।
ऐसी है प्रतिमा
इतना ही नहीं, इस मूर्ति में हनुमानजी दाएं हाथ में भक्तों को अभयदान कर रहे हैं एवं बायां हाथ उनके ह्रदय पर स्थित है। प्रत्येक कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को हनुमानजी की सूर्योदय के समय विशेष आरती एवं पूजन समारोह होता है। उसी प्रकार चैत्र पूर्णिमा के दिन यहां श्रीहनुमान जयंती महोत्सव होता है। इस अवसर पर श्रीहनुमानजी की बैठक की झांकी होती है और चार दिन तक रामायण सम्मेलन महोत्सव एवं संगीत सम्मेलन होता है।
4. इलहाबाद में हनुमान मंदिर
यूपी में जनसंख्या के लिहाज से सबसे बडे डिस्टिक इलाहबाद में किले से सटा बजरंग बली का टेम्पल छोटा लेकिन अतिप्राचीन उदाहरण है। यह मंदिर लेटे हुए हनुमान जी की प्रतिमा के कारण् भारत का केवल एकमात्र मंदिर है जिसमें हनुमान जी लेटी हुई मुद्रा में हैं। यहां पर स्थापित हनुमान जी की प्रतिमा 20 फीट लम्बी है। जब वर्षा के दिनों में बाढ़ आती है और यह सारा स्थान जलमग्न हो जाता है, तब हनुमानजी की इस मूर्ति को कहीं ओर ले जाकर सुरक्षित रखा जाता है। उपयुक्त समय आने पर इस प्रतिमा को पुन: यहीं लाया जाता है।
यह है मान्यता
ऐसा विश्वास है कि संगम का पूरा पुण्य हनुमान जी के इस दर्शन के बाद ही पूरा होता है। मान्यता के पीछे रामभक्त हनुमान के पुनर्जन्म की कथा जुड़ी हुई है। लंका विजय के बाद बजरंग बलि जब अपार कष्ट से पीड़ित होकर मरणा सन्न अवस्था मे पहुँच गए थे। तो माँ जानकी ने इसी जगह पर उन्हे अपना सिन्दूर देकर नया जीवन और हमेशा आरोअग्य व चिरायु रहने का आशीर्वाद देते हुए कहा कि जो भी इस त्रिवेणी तट पर संगम स्नान पर आयेंगा उस को संगम स्नान का असली फल तभी मिलेगा जब वह हनुमान जी के दर्शन करेगा।
लेटे हुए हैं हनुमान
यहां स्थापित हनुमान की अनूठी प्रतिमा को प्रयाग का कोतवाल होने का दर्जा भी हासिल है। आम तौर पर जहां दूसरे मंदिरों मे प्रतिमाएँ सीधी खड़ी होती हैं। वही इस मन्दिर मे लेटे हुए बजरंग बली की पूजा होती है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक लंका विजय के बाद भगवान् राम जब संगम स्नान कर भारद्वाज ऋषि से आशीर्वाद लेने प्रयाग आए तो उनके सबसे प्रिया भक्त हनुमान इसी जगह पर शारीरिक कष्ट से पीड़ित होकर मूर्छित हो गए।
इलाहाबाद के लेटे हनुमानपवन पुत्र को मरणासन्न देख माँ जानकी ने उन्हें अपनी सुहाग के प्रतिक सिन्दूर से नई जिंदगी दी और हमेश स्वस्थ एवं आरोअग्य रहने का आशीर्वाद प्रदान किया। माँ जानकी द्वारा सिन्दूर से जीवन देने की वजह से ही बजरंग बली को सिन्दूर चढाये जाने की परम्परा है।
औरंगजेब ने किया था हमला
हनुमान जी की इस प्रतिमा के बारे मे कहा जाता है कि 1400 इसवी में जब भारत में औरंगजेब का शासन काल था तब उसने इस प्रतिमा को यहां से हटाने का प्रयास किया था। करीब 100 सैनिकों को इस प्रतिमा को यहां स्तिथ किले के पास के मन्दिर से हटाने के काम मे लगा दिया था। कई दिनों तक प्रयास करने के बाद भी प्रतिमा टस से मस न हो सकी। सैनिक गंभीर बिमारी से ग्रस्त हो गये। मज़बूरी में औरंगजेब को प्रतिमा को वहीं छोड़ दिया।
महानविभूति झुका चुकी हैं सिर
संगम आने वाल हर एक श्रद्धालु यहां सिंदूर चढ़ाने और हनुमान जी के दर्शन को जरुर पहुंचता है। बजरंग बली के लेटे हुए मन्दिर मे पूजा-अर्चना के लिए यूं तो हर रोज़ ही देश के कोने-कोने से हजारों भक्त आते हैं लेकिन मंदिर के महंत आनंद गिरी महाराज के अनुसार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ साथ पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सरदार बल्लब भाई पटेल और चन्द्र शेखर आज़ाद जैसे तमाम विभूतियों ने अपने सर को यहां झुकाया, पूजन किया और अपने लिए और अपने देश के लिए मनोकामन मांगी। यह कहा जाता है कि यहां मांगी गई मनोकामना अक्सर पूरी होती है।
निकलता था जुलूस
आरोग्य व अन्य कामनाओं के पूरा होने पर हर मंगलवार और शनिवार को यहां मन्नत पूरी होने का झंडा निशान चढ़ने के लिए लोग जुलूस की शक्ल मे गाजे-बाजे के साथ आते हैं। मन्दिर में कदम रखते ही श्रद्धालुओं को अजीब सी सुखद अनुभूति होती है। भक्तों का मानना है कि ऐसे प्रतिमा पूरे विश्व मे कहीं मौजूद नहीं है।
5. सालासर बालाजी मंदिर
राजस्थान के गांव सालासर में बालाजी का मंदिर दूर-दूर तलक विख्यात है। मंदिर में हनुमानजी की दाड़ी व मूंछ से सुशोभित है प्रतिमा है, इसे सालासर वाले बालाजी का मंदिर कहकर पुकारते हैं भक्त। चारों ओर यात्रियों के ठहरने के लिए धर्मशालाएं बनी हुई हैं। दूर-दूर से श्रद्धालु यहां अपने मन व कर्म साफ करने का संकल्प ले यहां आते हैं, इतना ही नहीं चुरू जिले में होने के कारण परिवहन व्यवस्था भी ठीक है।
यह है मान्यता
कहा जाता है इस मंदिर को बनाने वाले मोहनदासजी बचपन से बजरंगी बाबा में अगाध श्रद्धा रखते थे और उन्हें प्रतिमा एक किसान को जमीन जोतते समय मिली थी। जिसे इन्होने सोने के सिंहासन पर विराजमान किया था। सालासर में हर साल भाद्रपद, आश्विन, चैत्र एवं वैशाख की पूर्णिमा के दिन विशाल मेला लगता है।
6. हनुमान धारा, चित्रकूट, यूपी
सीतापुर से दो कोस दूरी पर पर्वतमाला के मध्यभाग में स्थित हनुमानजी की एक विशाल मूर्ति वाले इस मंदिर की खूबसूरती पहाडी पर होने की वजह से दोगुनी हो जाती है। मंदिर के ठीक सिर पर दो जल के कुंड हैं, जो हमेशा जल से भरे रहते हैं और उनमें से निरंतर पानी बहता रहता है। जो हनुमानजी को स्पर्श करता हुआ पर्वत में विलीन हो जाता है। प्रतिमा से होकर इस जलधारा के बहने के कारण् इसे हनुमान धारा कहते हैं।
यह है मान्यता
पहाड़ में से निकलते हुए यह जलधारा बाद में प्रभाती नदी या पातालगंगा का रूप ले लेती है। इस स्थान के बारे में एक कथा इस प्रकार प्रसिद्ध है- श्रीराम के अयोध्या में राज्याभिषेक होने के बाद एक दिन हनुमानजी ने भगवान श्रीरामचंद्र से कहा- हे भगवन। मुझे कोई ऐसा स्थान बतलाइए, जहां लंका दहन से उत्पन्न मेरे शरीर का ताप मिट सके। तब भगवान श्रीराम ने हनुमानजी को यह स्थान बताया था।
7. बेट द्वारिका मंदिर, गुजरात
गुजरात में बेट द्वारका से चार मील की दूरी पर मकर ध्वज के साथ में हनुमानजी की मूर्ति स्थापित है। कहते हैं कि पहले मकरध्वज की मूर्ति छोटी थी परंतु अब दोनों मूर्तियां एक सी ऊंची हो गई हैं। अहिरावण ने भगवान श्रीराम लक्ष्मण को इसी स्थान पर छिपा कर रखा था। जब हनुमानजी श्रीराम-लक्ष्मण को लेने के लिए आए, तब उनका मकरध्वज के साथ घोर युद्ध हुआ। अंत में हनुमानजी ने उसे परास्त कर उसी की पूंछ से उसे बांध दिया। उनकी स्मृति में यह मूर्ति स्थापित है। कुछ धर्म ग्रंथों में मकरध्वज को हनुमानजी का पुत्र बताया गया है, जिसका जन्म हनुमानजी के पसीने द्वारा एक मछली से हुआ था। यहां भी भक्त खूब आते हैं
8. मेहंदीपुर बालाजी मंदिर, राजस्थान
दौसा जिले के पास दो पहाडिय़ों के बीच बसे हुए मेहंदीपुर स्थान पर जयपुर-बांदीकुई-बस मार्ग पर राजधानी से 66 किमी दूर यह मंदिर स्थित है। घाटी में स्थित होने के कारण इसे घाटा मेहंदीपुर भी कहते हैं। इतना ही नहीं, यहां ऊपरी बाधाओं के निवारण के लिए आने वालों का तांता लगा रहता है। मंदिर की सीमा में प्रवेश करते ही ऊपरी हवा से पीडि़त व्यक्ति स्वयं ही झूमने लगते हैं और लोहे की सांकलों से स्वयं को ही मारने लगते हैं। मार से तंग आकर भूत प्रेतादि स्वत: ही बालाजी के चरणों में आत्मसमर्पण कर देते हैं।
इतना पुराना है यह मंदिर
जी हां यहां के लोगों की मानें तो यहां पर एक बहुत विशाल चट्टान में हनुमान जी की आकृति स्वयं ही उभर आई थी। इसे ही श्री हनुमान जी का स्वरूप माना जाता है। इनके चरणों में छोटी सी कुण्डी है, जिसका जल कभी समाप्त नहीं होता। मंदिर में पूजा को बेहद प्रभावी एवं चमत्कारिक माना जाता है। इसकी पुष्टि तब हुई थी जब मुगल साम्राज्य में इस मंदिर को तोडऩे के अनेक प्रयास हुए परंतु मंदिर को कोई नुकसान नहीं हुआ। काफी उूंचार्इ पर दिखने वाला यह टेम्पल पूरे देश में प्रसिद्घ है।
9. डुल्या मारुति, पूना, महाराष्ट्र
पूना के गणेशपेठ में स्थित करीब साढे तीन सौ साल पुराने श्रीडुल्या मारुति का मंदिर पूर्णतः पत्थर निर्मित है। मूल रूप से डुल्या मारुति की मूर्ति एक काले पत्थर पर अंकित होने के कारण यह बहुत आकर्षक और भव्य है। प्रतिमा पांच फुट ऊंची तथा ढाई से तीन फुट चौड़ी एवं पश्चिम मुख है। हनुमानजी की इस मूर्ति की दाईं ओर श्रीगणेश भगवान की एक छोटी सी मूर्ति स्थापित है। जिसका निर्माण श्रीसमर्थ रामदास स्वामी ने किया था। इतना ही नहीं सभा मंडप में द्वार के ठीक सामने छत से टंगा एक पीतल का घंटा है, इसके ऊपर शक संवत् 1700 अंकित है।
10. उल्टी प्रतिमा वाला टेम्पल,इंदौर
मध्य प्रदेश में उज्जैन से 30 किमी दूर सांवरे नामक स्थान पर स्थित एक मंदिर जहाँ हनुमान जी की उल्टे रूप में पूजा की जाती है। यह प्रथा पिछले कई शताब्दीयों से चलते बताई गई है। मंदिर में वीर हनुमान की उलटे मुख वाली सिंदूर से सजी मूर्ति विराजमान है। खास बात यह है कि यह स्थान ऐसे भक्त का रूप है जो भक्त से भक्ति योग्य हो गया।
यह है मंदिर की पुरानी कहानी
महावीर हनुमान के सभी मंदिरों में से अलग यह मंदिर अपनी विशेषता के कारण ही सभी का ध्यान अपनी ओर खींचता है। इंदौर के इस मंदिर के विषय में एक कथा बहुत लोकप्रिय है। कहा जाता है कि जब रामायण काल में भगवान श्री राम व रावण का युद्ध हो रहा था, तब अहिरावण ने एक चाल चली थी। उसने रूप बदल कर अपने को राम की सेना में शामिल कर लिया और जब रात्रि समय सभी लोग सो रहे थे, तब अहिरावण ने अपनी जादुई शक्ति से श्री राम एवं लक्ष्मण जी को मूर्छित कर उनका अपहरण कर लिया। वह उन्हें अपने साथ पाताल लोक में ले जाता है। जब वानर सेना को इस बात का पता चलता है तो चारों ओर हडकंप मच जाता है। सभी इस बात से विचलित हो जाते हैं। इस पर हनुमान जी भगवान राम व लक्ष्मण जी की खोज में पाताल लोक पहुँच जाते हैं और वहां पर अहिरावण से युद्ध करके उसका वध कर देते हैं तथा श्री राम एवं लक्ष्मण जी के प्राँणों की रक्षा करते हैं। उन्हें पाताल से निकाल कर सुरक्षित बाहर ले आते हैं। मान्यता है की यही वह स्थान था जहाँ से हनुमान जी पाताल लोक गए थे। उस समय हनुमान जी के पाँव आकाश की ओर तथा सर धरती की ओर था जिस कारण उनके उल्टे रूप की पूजा की जाती है।
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