आज का युग काफी उन्नति की ओर जा रहा है। युवा वर्ग व बच्चों के लिए बेहतर भविष्य बनाने हेतु अनेक विकल्प खुले हैं। पहले जहाँ पढ़ाई में ज्यादा पैसा बाधा बनता था, आज वह भी दूर हो गया है, शिक्षा में मिलने वाला लोन लेने से। आने वाले कल में सरकार ऋण मुक्त शिक्षा लोन देने पर मुहर लगाने जा रही है। तो देर किस बात की, अपने भविष्य को उज्ज्वल बनाने की। इस लेख में काफी अध्ययन कर और सफल छात्रों की कुंडलियों को जानकर ग्रहों के माध्यम से बताएँगे कि आप किस क्षेत्र में सफल हो सकते हैं। फिर भी छात्रों और लेख पड़ने वालों से निवेदन है कि ये सिर्फ मार्गदर्शन देता है। कुछ आपकी सोच और कुछ हमारे द्वारा बताए ग्रहों के अनुसार विषय सफलता के चार चाँद लगा देंगे।
सबसे पहले मन में दृढ़ संकल्प कर लें कि हमें क्या बनना है। किसी के कहने पर सफलता नहीं मिलती। फिर जानें कि हमने किन विषयों में सर्वाधिक अंक अर्जित किए हैं व उससे संबंधित कोर्स क्या है। बस उसी में अपना भविष्य चुनें, निश्चित ही सफलता आपके कदम चूमेगी।
अपने भविष्य को उज्ज्वल बनाने की। इस लेख में काफी अध्ययन कर और सफल छात्रों की कुंडलियों को जानकर ग्रहों के माध्यम से बताएँगे कि आप किस क्षेत्र में सफल हो सकते हैं। फिर भी छात्रों और लेख पड़ने वालों से निवेदन है कि ये सिर्फ मार्गदर्शन देता है।
हमें ग्रहों से जानने हेतु सर्वप्रथम लग्न जो स्वयं को दर्शाता है, लग्नेश की स्थिति लग्न में बैठे ग्रह लग्न को देखने वाले ग्रह फिर द्वितीय वाणी धन की बचत कुटुम्ब भाव व वक्ता भाव को देखना होगा। धन है, कुटुम्ब का सहयोग है, अच्छी वाणी है तो सफलता आसान हो जाती है। फिर तृतीय भाव पराक्रम, मित्र, साझेदारी, भाई, शत्रु भाव को जानना होगा। उसके बाद पंचम भाव विद्या भाव व नवम भाव भाग्य के बाद दशम भाव राज्य पिता भाव का भी सपोर्ट होना चाहिए।
* लग्नेश उच्च का हो या स्वराशिस्थ हो या मित्र राशि का होकर लग्न द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, पंचम, नवम, दशम, एकादश भाव में शुभ रहेगा। षष्ठ व अष्टम द्वादश में न हो तो अच्छा है।
* द्वितीयेश द्वितीय में राशिस्थ हो या उच्च का हो या स्वराशिस्थ हो या मित्र राशि का हो तो उस जातक को धन-कुटुम्ब का सहयोग व अपनी वाणी द्वारा सफलता का कारक बनता है।
* तृतीय पराक्रम, भाई, मित्र का स्वामी स्वराशिस्थ उच्च या मित्र का होकर केंद्र या त्रिकोण में हो तो उसे भाइयों, मित्रों का सहयोग मिलने से उसकी पढ़ाई के क्षेत्र में आसानी हो जाती है।
* चतुर्थ भाव का स्वामी स्वराशि का होकर चतुर्थ में हो या मित्र का होकर लग्न, नवम में हो या एकादश आय भाव में हो या पंचम में हो तो उसे माता भाग्य, पिता, धन का लाभ मिलकर विद्या में उन्नति होती है।
* पंचम भाव का स्वामी पंचम में हो या स्वराशिस्थ होकर बैठा हो या उच्च का हो या मित्र क्षैत्री होना चाहिए। पंचमेश नवम में, दशम में या एकादश में या लग्न में हो तो विद्या में अच्छी सफलता पाता है।
* नवम भाव का स्वामी नवम भाव में हो या लग्न, पंचम, तृतीय, चतुर्थ, दशम में स्वराशि या मित्र राशि या उच्च का हो तो भाग्य का बल अच्छा होने से भाग्य का साथ मिलता है व उसकी उन्नति में सहायक होता है।
* दशम भाव का स्वामी दशम में होकर लग्नेश या पंचमेश के साथ हो तो पिता, राज्य से सहयोग मिलता है।
* एकादश भाव में पंचमेश हो या उस भाव से शुभ दृष्टि पंचम पर पड़ती हो तो विद्या में अच्छी सफलता मिलती है।
* पंचम भाव में शुक्र स्वराशि या शनि के मकर कुंभ राशि में हो तो कम्प्यूटर इंजीनियर में या आई स्पेशलिस्ट में अच्छी सफलता मिल सकती है।
* पंचम भाव में गुरु, बुध, शुक्र कोई भी एक स्वराशि के हों तो उसे आई.टी. के क्षेत्र में सफलता मिलती है या उपरोक्त ग्रह नवम लग्न में होने पर भी सफल होते हैं।
·* शुक्र लग्न को देखता हो तो कम्प्यूटर के क्षेत्र में सफल होता है।
* पंचम भाव में गुरु मंगल हो तो सी.ए. या सी.एस. में अच्छी सफलता पाने वाला होता है या पंचमेश के साथ पंचम में, नवम में या लग्न में हो तो भी सफल होता है।
* तृतीयेश लग्न में हो तो लग्नेश पंचम में पंचमेश नवम में हो तो ऐसा जातक प्रत्येक क्षेत्र में सफल होता है।
* गुरु लग्न में स्वराशि का हो या चतुर्थ भाव को देखता हो तो एम.बी.ए. में सफल होता है।
* जब मंगल स्वराशि में पंचम को देखता हो व लग्नेश की पंचम पर या चतुर्थ पर या नवम पर दृष्टि पड़ती हो तब भी एम.बी.ए. में सफलता पाता है।
* पंचम भाव में मंगल शुक्र के साथ हो व मकर या कुंभ का हो तो आटोमोबाइल में सफलता पाता है। इसी प्रकार इन ग्रहों का संबंध पंचमेश से हो तब भी अच्छी सफलता पाता है।
* लग्नेश बली हो व दशम में पंचमेश हो य पंचमेश दशम में हो तब प्रशासनिक सेवाओं में सफलता मिलती है।
* एकाउंट्स में गुरु, चंद्र की स्थिति महत्वपूर्ण स्थान रखती है। गुरु पंचम में हो तो या पंचमेश होकर चंद्र के दृष्टि हो व वह लग्नेश की स्थिति पंचक में हो या नवम में हो या तृतीय भाव में हो तो भी सफल होता है।
* वकालत में गुरु, मंगल, सूर्य का बली होना उत्तम सफलता का कारक होता है। इनमें से कोई दो या तीनों ग्रह लग्न, पंचम, नवम, चतुर्थ भाव में पंचमेश के साथ हो या दृष्टि संबंध हो तो भी सफल होता है।
* मंगल आई.पी.एस. में सफलता का कारक होता है। मेष लग्न हो मंगल पंचम में होकर गुरु से दृष्ट हो या पंचमेश सूर्य लग्न में मंगल के साथ गुरु की दृष्टि में हो या दशम में मंगल उच्च का हो तो अच्छी सफलता का कारक होता है।
* आई.ए.एस. के लिए सूर्य, गुरु का बली होना आवश्यक है। जब मेष, सिंह, धनु लग्न हो व सूर्य मेष सिंह या धनु राशि पर होकर पंचमेश के साथ हो तो इस क्षेत्र में अच्छी सफलता मिलती है।
* कोई भी भाव जो विद्या आदि के लिए महत्वपूर्ण है वह अष्टम षष्ठ में न हो, ना ही इन भावों के स्वामी के साथ हो। हाँ पंचमेश द्वादश में हो तो विद्या में अच्छी सफलता मिलती है। नहीं तो काफी संघर्ष के बाद सफल होता है।
* पंचमेश अपने से द्वादश में न हो, ना ही लग्नेश नवमेश तृतीयेश हो नहीं तो सफलता के मार्ग में अनेक बाधाएँ डालता है।
* पंचमेश, भाग्येश, लग्नेश, तृतीयेश, दशमेश, चतुर्थेश शनि-मंगल की युतियाँ दृष्टि संबंध नहीं होना चाहिए। सूर्य-चंद्र भी साथ न हो तो असफलता नहीं मिलेगी फिर ग्रह षष्ठ व अष्टम को छोड़कर कहीं भी हो।
इस प्रकार हम अपनी कुंडली देखकर अच्छी सफलता पा सकते हैं। किसी जातक के षष्ठ या अष्टम में हो तो निराश नहीं हों, मेहनत अधिक करें व उन ग्रहों से संबंधित वस्तु अपने पास रखें या उस रंग के कपड़े में उससे संबंधित अनाज छत पर रखें, तो वे भी सफल होंगे।
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