एक साधू किसी नदी के पनघट पर गया और पानी पीकर पत्थर पर सिर रखकर सो गया। पनघट पर पनिहारिन आती-जाती रहती हैं तो तीन-चार पनिहारिनें पानी के लिए आईं तो एक पनिहारिन ने कहा- “आहा! साधु सो गया, फिर भी तकिए का मोह नहीं गया… पत्थर का ही सही, लेकिन तकिये का सहारा तो ले रखा है।”
पनिहारिन की बात साधु ने सुन ली… उसने तुरंत पत्थर फेंक दिया… दूसरी बोली, “साधु हुआ, लेकिन खीज (गुस्सा करने की आदत) नहीं गई.. अभी रोष नहीं गया, तकिया फेंक दिया।” तब साधु सोचने लगा, अब वह क्या करें?
तब तीसरी पनिहारिन बोली, “बाबा! यह तो पनघट है, यहां तो हमारी जैसी पनिहारिनें आती ही रहेंगी, बोलती ही रहेंगी, उनके कहने पर तुम बार-बार परिवर्तन करोगे तो साधना कब करोगे?”
लेकिन एक चौथी पनिहारिन ने बहुत ही सुन्दर और एक बड़ी अद्भुत बात कह दी- “साधु, क्षमा करना, लेकिन हमको लगता है, तूमने सब कुछ छोड़ा लेकिन अपना चित्त नहीं छोड़ा है, अभी तक वहीं का वहीं बने हुए है। दुनिया पाखण्डी कहे तो कहे, तूम जैसे भी हो, हरिनाम लेते रहो।” सच तो यही है, दुनिया का तो काम ही है कहना…
आप ऊपर देखकर चलोगे तो कहेंगे… “अभिमानी हो गए।”
नीचे देखकर चलोगे तो कहेंगे… “बस किसी के सामने देखते ही नहीं।”
आंखे बंद कर दोगे तो कहेंगे कि… “ध्यान का नाटक कर रहा है।”
चारो ओर देखोगे तो कहेंगे कि… “निगाह का ठिकाना नहीं। निगाह घूमती ही रहती है।”
और परेशान होकर आंख फोड़ लोगे तो यही दुनिया कहेगी कि… “किया हुआ भोगना ही पड़ता है।”
ईश्वर को राजी करना आसान है, लेकिन संसार को राजी करना असंभव है।
दुनिया क्या कहेगी, उस पर ध्यान दोगे तो आप अपना ध्यान नहीं लगा पाओगे…
Post Credit : Shri Santosh Chaturvedi ji
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