धन प्राप्त करने के लिये जो नियम है उनके अनुसार वह ग्रह जो केन्द्र तथा त्रिकोण का स्वामी हो अथवा अन्य शुभ भावों का स्वामी हो तो वह धन पदवी आदि वांछित पदार्थों की उपलब्धि करवाता है। किसी कुन्डली के धनेश की दशा में कोई भी बात कहने से पहले यह पता कर लेनी चाहिए कि कुन्डली का स्तर क्या है,यह बात शुभ धन दायक ग्रहों के योगों के द्वारा पता लगेगी। इन योगों की संख्या जितनी अधिक होती है उतना ही अधिक धन मिलता है। धन प्राप्ति के अन्य योग इस प्रकार हैं –
जो भाव पापी है,और उनके स्वामी यदि केवल पाप प्रभाव में हों तो पापत्व के नाश के द्वारा धन की सृष्टि करते हैं।
लगन दूसरे भाव, नवम भाव और एकादस भाव के बलवान स्वामियों की परस्पर युति अथवा द्रिष्टि द्वारा हो,नवम दसम के स्वामियों का सम्बन्ध,चौथे और पांचवें भाव के स्वामियों का सम्बन्ध शुभ सप्तमेश तथा नवमेश का संबन्ध पंचमेश और सप्तमेश का शुभ सम्बन्ध भी धन का कारक बनता है।
3, 6, 8 और 12 भावों के स्वामी अगर अपनी राशियों से बुरे भावों में बैठें और बुरे ही ग्रहों द्वारा देखे जावें तो भी धन की सृष्टि होती है।
तीनो लगनों के स्वामी आपस में युति कर लेते है तो भी धन दायक योग बन जाता है।
शुक्र गुरु से बारहवें भाव में बैठ जावे तो भी धन दायक हो जाता है.
चार या चार से अधिक भावों का अपने स्वामियों से द्र्ष्ट होने पर भी धनदायक योग बन जाता है।
किसी ग्रह का तीनों लगनों से शुभ बन जाना भी धनदायक योग बना देता है.
सूर्य या चन्द्र का नीच भंग हो जाना भी धनदायक बन जाता है।
कोई उच्च का ग्रह शुभ स्थान में चला जाये,और जिस स्थान में वह उच्च का ग्रह गया उसका स्वामी भी उच्च में चला जाये तो भी धनदायक योग बन जाता है।
शुभ भाव का स्वामी अगर बक्री हो जाये तो भी धनदायक योग बन जाता है.
नोट – यदि यह सब कारण तीनों लगनों में आ जाये तो शुभता कई गुनी बढ जाती है।
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