ज्योतिष

चन्द्र के साथ राहु केतु या शनिदेव की युति

Written by Bhakti Pravah

अगर कुंडली में चन्द्र के साथ राहु केतु या शनिदेव की युति है या इनकी दृष्टि चन्द्र पर पड़ रही है तो आपका मन हमेशा अशांत रहेगा दो दिन अच्छे निकलते है तो दो दिन बुरे चन्द्रदेव जैसे जैसे राशि परिवर्तन करते है वैसे ही इनका प्रभाव इंसान पर पड़ता रहता है

ज्योतिष विज्ञान में चंद्र का स्थान दूसरा है। पंचांग भी चंद्र पर आधारित होता है। चंद्र के कारण ही धरती पर शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष होते हैं।

इसी के कारण ही समुद्र में ज्वारभाटा उत्पन्न होता है। वैज्ञानिक कहते हैं कि हमारे शरीर में 65 प्रतिशत जल की स्थिति है। तो सोचें, क्या हमारे शरीर में ज्वारभाटा उत्पन्न नहीं होता है? हमारा मन कृष्ण पक्ष के साथ घटता है और शुक्ल पक्ष के साथ बढ़ता है। स्त्रियों पर चंद्र का प्रभाव ज्यादा माना गया है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण : असल में चंद्र कोई ग्रह नहीं बल्कि धरती का उपग्रह माना गया है। पृथ्वी के मुकाबले यह एक चौथाई अंश के बराबर है। पृथ्वी से इसकी दूरी 406860 किलोमीटर मानी गई है। चंद्र पृथ्वी की परिक्रमा 27 दिन में पूर्ण कर लेता है। इतने ही समय में यह अपनी धुरी पर एक चक्कर लगा लेता है। 15 दिन तक इसकी कलाएँ क्षीण होती हैं तो 15 दिन यह बढ़ता रहता है। चंद्रमा सूर्य से प्रकाश लेकर धरती को प्रकाशित करता है।

पुराणों अनुसार : देव और दानवों द्वारा किए गए सागर मंथन से जो 14 रत्न निकले थे उनमें से एक चंद्रमा भी थे जिन्हें भगवान शंकर ने अपने सिर पर धारण कर लिया था। चंद्र देवता हिंदू धर्म के अनेक देवतओं मे से एक हैं। उन्हें जल
तत्व का देव कहा जाता है। चंद्रमा की महादशा दस वर्ष की होती है। चंद्रमा के अधिदेवता अप् और प्रत्यधिदेवता उमा देवी हैं।

श्रीमद् भागवत के अनुसार चंद्रदेव महर्षि अत्रि और अनुसूया के पुत्र हैं। इनको सर्वमय कहा गया है। ये सोलह कलाओं से युक्त हैं। इन्हें अन्नमय, मनोमय, अमृतमय पुरुषस्वरूप भगवान कहा जाता है। प्रजापितामह ब्रह्मा ने चंद्र देवता को बीज, औषधि, जल तथा ब्राह्मणों का राजा बनाया। चंद्रमा का विवाह राजा दक्ष की सत्ताईस कन्याओं से हुआ। ये कन्याएँ सत्ताईस नक्षत्रों के रूप में भी जानी जाती हैं, जैसे अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी आदि। चंद्रदेव की पत्नी रोहिणी से उनको एक पुत्र मिला जिनका नाम बुध है। चंद्र ग्रह ही सभी देवता, पितर, यक्ष, मनुष्य, भूत, पशु- पक्षी और वृक्ष आदि के प्राणों का आप्यायन करते हैं।

चन्द्र की युति और उसका फल नवग्रहों में चन्द्र को रानी का दर्जा प्राप्त है. सूर्य के समान इसकी भी एक राशि है कर्क राशि जो जल तत्व की राशि होती है. इसे मन और चंचलता का कारक माना जाता है. जहां तक इसकी प्रकृति की बात यह है तो यह शांत व सौम्य ग्रह होता है. इसका रंग सफेद होता है. चन्द्रमा जब कुण्डली में किसी अन्य ग्रह के साथ युति सम्बन्ध बनाता है तो कुछ ग्रहों के साथ इसके परिणाम शुभ फलदायी होते हैं तो कुछ ग्रहों के साथ इसकी शुभता में कमी आती है. आपकी कुण्डली में चन्द्रमा किसी ग्रह के साथ युति बनाकर बैठा है तो इसके परिणामों को आप इस प्रकार देख सकते हैं.

1. चन्द्र व सूर्य की युति:- अगर आपकी कुण्डली में चन्द्र के साथ सूर्य विराजमान है तो आप कुटनीतिज्ञ होंगे. इस युति के प्रभाव के कारण आपकी वाणी में नम्रता व कोमलता की कमी हो सकती है तथा आप अभिमानी हो सकते हैं जिससे लोगों के प्रति आपका व्यवहार रूखा हो सकता है. इन स्थितियों में सुधार के लिए आपको चन्द्र के उपाय करने चाहिए.

2.चन्द्र व मंगल की युति:- कुण्डली में मंगल के साथ चन्द्र का स्थित होना यह संकेत देता है कि परिणाम की चिंता किए बगैर आप अपने कार्य में जुट जाते हैं जो कभी-कभी आपके लिए परेशानियों का भी कारण बन जाता है. आपकी
कुण्डली में चन्द्र मंगल की युति है तो  वाणी पर नियंत्रण रखना आपके लिए बहुत ही आवश्यक होता है क्योंकि, बोल चाल में आप आक्रोशित होकर ऐसा कुछ बोल सकते हैं जिनसे लोग आपसे नाराज़ हो सकते हैं.

3. चन्द्र व बुध की युति :- चन्द्र के साथ बुध की युति शुभ फल देने वाली होती है. अगर आपकी कुण्डली में इन दोनों ग्रहों की युति बन रही है तो आप कूटनीतिज्ञ हो सकते हैं. अपनी वाणी से लोगों को आसानी से लोगों का दिल जितना आपको अच्छी तरह आता जिससे व्यावसायिक क्षेत्रों में आपको अच्छी सफलता मिलती है.

4. चन्द्र व गुरू की युति :- कुण्डली में चन्द्र के साथ गुरू की युति होना यह बताता है कि आप ज्ञानी होंगे. आपको शिक्षक एवं सलाहकार के रूप में अच्छी सफलता मिलेगी. लेकिन, आपको इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि मन में
अभिमान की भावना नहीं आये. इसके अलावा आपको यह भी ध्यान रखना होगा कि बिना मांगे किसी को सलाह न दें क्योंकि बिना मांगे दी गई सलाह के कारण लोग आपसे दूरियां बनाने की कोशिश करेंगे.

5.चन्द्र व शुक्र की युति :- ज्योतिषशास्त्र की मान्यता है कि जिस व्यक्ति की कुण्डली में चन्द्रमा शुक्र के साथ युति सम्बन्ध बनाता है वह सौन्दर्य प्रिय होते हैं. अगर आपकी कुण्डली में भी इन दोनों ग्रहों का युति सम्बन्ध बन रहा है तो हो सकता है कि आप अधिक सफाई पसंद व्यक्ति होंगे. कला के क्षेत्रों से आपका लगाव रहेगा. आप लेखन में भी रूचि ले सकते हैं. अत: अलस्य से दूर रहना चाहिए. दिखावे की प्रवृति से भी आपको बचन चाहिए. सुखों की चाहतों के कारण आप थोड़े आलसी हो सकते हैं

6.चन्द्र व शनि की युति :- चन्द्रमा के साथ बैठा शनि यह दर्शाता है कि व्यक्ति ईमानदार, न्यायप्रिय एवं मेहनती है. अगर आपकी कुण्डली में चन्द्र व शनि की यह स्थिति बन रही है तो आप भी परिश्रमी होंगे और मेहनत के दम पर
जीवन में कामयाबी की तरफ अग्रसर होंगे. न्यायप्रियता के कारण अन्याय के विरूद्ध आवाज उठाने से पीछे नहीं हटेंगे. इस युति के प्रभाव के कारण कभी-कभी आप निराशावादी हो सकते हैं जिससे मन दु:खी हो सकता है अत: आशावादी बने रहना चाहिए.

7. चन्द्र व राहु की युति :- इन दोनों ग्रहों की युति कुण्डली में होने पर व्यक्ति रहस्यमयी विद्याओं में रूचि रखते हैं. अगर आपकी कुण्डली में यह युति बन रही है तो शिक्षा प्राप्त कर आप वैज्ञानिक बन सकते हैं. शोध कार्यों में भी आपको अच्छी सफलता मिल सकती है.

8.चन्द्र व केतु की युति :- कुण्डली में चन्द्र के साथ केतु की युति होने पर व्यक्ति को समझ पाना कठिन होता है क्योंकि ऐसा व्यक्ति कब क्या कर बैठे यह समझना मुश्किल होता है. अगर आपकी कुण्डली में यह युति बन रही है तो
आपके लिए उचित होगा किसी भी कार्य को करने से पूर्व उस पर अच्छी तरह विचार करलें अन्यथा अपने कार्यों के कारण आपका मन दु:खी हो सकता है. वैसे, आपमें अच्छी बात यह है कि अपनी ग़लतियों से सबक लेंगे और अपने आस-पास की बुराईयों को दूर करने की कोशिश करेंगे.

किसी एक स्थान पर राहू एवं चंद्रमा की स्थिति हो तो चंद्र ग्रहण योग योगों से कई प्रकार की ग्रह स्थिति का परिणाम बदल जाता है। इनके प्रभाव अत्यंत प्रबल होने के साथ ही जीवन को बहुत प्रभावित करते हैं। इन्हीं योगों में ग्रहण योग बहुत साधारण होकर भी विशेष प्रकार से असरकारी है। जन्म पत्रिका में किसी एक स्थान पर राहू एवं चंद्रमा की स्थिति हो तो चंद्र ग्रहण योग बनता है। इसमें भी राहू एवं चंद्रमा के अंशों में नौ अंश से कम का अंतर हो तो ग्रहण योग बनता है, परंतु नौ अंश से अधिक के फासले पर यह योग प्रभावकारी नहीं होता है।

यदि दोनों ग्रहों की दूरी सात अंश से कम की हो तो इस योग का फल अधिक पड़ता है। राहू, चंद्रमा का अंतर डेढ़ अंश से कम होने पर यह योग पूर्ण प्रभावकारी रहता है। यह योग

1.प्रथम भाव में हो तो खर्च दोष, दाँत का देरी से आना एवं धन संचय का योग बनता है।

2.द्वितीय भाव में खुद के परिश्रम से धन प्राप्त करना, खाने के शौकीन होना एवं बचपन में कष्ट पाने का योग बनता है।

3.तृतीय स्थान में राहू-चंद्र की युति से शांत प्रकृति वाले, प्रसिद्धि पाने वाले एवं दाहिने कान में तकलीफ की संभावना आती है।

4.चतुर्थ स्थान में जन्मभूमि से दूर जाना पड़ता है, मेहनत से प्रगति करते हैं। दान की प्रवृत्ति अधिक होती है।

5.पंचम स्थान का ग्रहण जातक को बुद्धिमान, ईश्वर भक्त और कामी बनाता है।

6.छठे भाव में शरीर निरोगी रहता है। शत्रु बहुत उत्पन्न होते हैं, लेकिन जल्दी ही समाप्त हो जाते हैं। मातृपक्ष की चिंता होती है।

7,सप्तम भाव में ग्रहण योग दाम्पत्य जीवन को अच्छा करता है। व्यापार में हानि का योग बनता है, पलायनवादी दृष्टिकोण को जन्म देता है।

8.आठवें स्थान में राहू-चंद्र की युति से अल्पायु में प्रसिद्धि मिलती है, स्त्री से धन प्राप्त होता है, आर्थिक हानि उठाना पड़ती है।

9.नौवें घर में संतान की प्रगति होती है, लंबे प्रवास का योग बनता है, धार्मिक कार्य करते हैं और आलस्य आता है।

10.दशम भाव में योगी, हल्का व्यापार करने वाला एवं सामाजिक कार्य में संलग्नता का फल देता है।

11.ग्यारहवें स्थान में चंद्र-राहू की युति काम से प्रसिद्धि दिलाती है। अनैतिक तरीके से धन एकत्र करने पर परेशानी उठाना पड़ती है। आँख या कान के रोग उत्पन्न होते हैं।

12.बारहवें स्थान में इस योग का फल कुशल व्यवसायी के रूप में मिलनसारिता के रूप में एवं दाम्पत्य जीवन में तनाव की स्थिति उत्पन्न करता है।

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