अध्यात्म

केवल ब्राह्मणों के लिए

Written by Bhakti Pravah

• ब्राह्मणों खासकर पूजा पाठी और अनुष्ठानी पण्डितों के लिए नीले-काले वस्त्र वर्जित हैं।

• पहले पण्डित धुलने लायक पवित्र झोले में आसन, पात्र, माला, पुस्तकें इत्यादि पूजन-सामग्री रख कर पूजन-अनुष्ठान में जाते थे। अब चमड़े या रैग्ज़िन के बैग का प्रयोग करने लगे हैं। ये बैग महीनों तक नहीं धूल पाते। इससे अपवित्रता और संक्रमण का खतरा हमेशा बना रहता है।

• साधना-अनुष्ठान में ईश्वर और अपने बीच कोई नहीं होना चाहिए। आजकल मोबाइल, यजमान और बहुत सारे लोग घुस आए हैं। इससे ईश्वर का अपमान होता है और इस प्रकार की साधना का कोई अर्थ नहीं।

• माईक ने पूजा-पाठी पण्डितों की राह आसान कर दी है। अन्यथा पहले सभी को समवेत स्वर में उच्चारण करने की विवशता रहा करती थी।

• दुर्गा पाठ और रूद्राभिषेक किसी भी मंत्र से संपुटित किए जाएं, ये सारे अनुष्ठान अब आधे-अधूर ही रहने लगे हैं। पाठ में पाठकर्ताओं के लिए श्रवण का कोई विधान नहीं है, सभी को बोलना चाहिए चाहे नवचण्डी-शतचण्डी हो या फिर लघुरूद्र-महारूद्र। पर अधिकांश चुप रहते हैं। ऊपर से तर्क ये कि सब श्रवण कर रहे हैं। यही कारण है कि हमारे अधिकांश अनुष्ठान विफल होते हैं और यजमान भी कर्म असिद्धि के कारण श्रद्धा खो देता है।

• पहले ब्राह्मणों की शुभ्र वेशभूषा हुआ करती थी और अनुष्ठानों तथा पूजा-पाठ में आने वालों का सामूहिक सात्विक परिधान आकर्षित भी करता था। अब ब्राह्मणोचित परिधानों की बजाय रंग-बिरंगे टी-शर्ट की पंरपरा बढ़ती जा रही है।

• सिले-सिलाये वस्त्र पूजा-पाठ और अनुष्ठान में वर्जित हैं लेकिन अब सिले-सिलाये पीताम्बरों का जमाना आ गया है। और कई विप्रवरों को पीताम्बरा या धोती पहनना भी नहीं आता है।

• ब्राह्मण के रूप में जन्म ले लेना ही काफी नहीं है, ब्रह्मत्व बिना ब्राह्मण का कोई मूल्य नहीं।

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