1. जिन्दगी का अर्थ : जिस जिन्दगी को हम जी रहे हैं, क्या बस यही जिन्दगी हमारी अपनी है? जन्म लेने से पहले हम किन हालातों में रहे होंगे, क्या कर रहे होंगे? मृत्यु के पश्चात हमारे शरीर का तो अंतिम संस्कार कर दिया जाएगा लेकिन हमारी आत्मा का क्या होगा? यह कुछ सवाल अक्सर मेरे मस्तिष्क को कचोटते रहते हैं। बहुत हद तक संभव है कि ये सवाल एक कॉमन सोच भी हो सकती है जो सामान्य मस्तिष्क में उथल-पुथल का कारण बन जाए।
2. आत्मा का सफर : इन्हीं सवालों को हल करने के लिए वह एक ऐसे जवाब तक जा पहुंची जो वाकई किसी को भी हैरान कर सकती है। हम आध्यात्मिक गुरुओं के पास जाते हैं क्योंकि हम अपने जीवन का उद्देश्य और मृत्यु के बाद के हालातों को समझना चाहते हैं। आइए जानते हैं मृत्यु के पश्चात और पुनर्जन्म से पहले आत्मा को किन चरणों से होकर गुजरना पड़ता है या फिर कह लीजिए किन हालातों का सामना करना पड़ता है।
3. अच्छे-बुरे कर्म : जीवित अवस्था में, नश्वर शरीर में रहते हुए हमारी आत्मा जो भी पुण्य या पाप कृत्य करती है, अच्छे-बुरे जो भी कर्म करती है, मृत्यु के पश्चात हमारी आत्मा को उन्हीं के आधार पर ट्रीट किया जाता है। हमें अपने कर्मों के आधार पर अलग-अलग लोकों में तब तक रहना होता है, जब तक कि हम पुनर्जन्म लेकर धरती पर दोबारा ना आ जाएं।
4. स्वर्गलोक : सबसे ऊपरी लोक होता है स्वर्गलोक। जानकारों का कहना है कि आज के हालातों में 100 में से मात्र 2 लोग ही ऐसे होते हैं जिनकी आत्मा मृत्यु के पश्चात स्वर्गलोक या महरलोक के दर्शन करती है, वहां के सुख भोग पाती है। अन्य आत्माएं तो सिर्फ पाताल या भुवरलोक में जाकर फंस जाती हैं।
5. पाताल लोक के स्तर : पाताल लोक के भी सात स्तर होते हैं। कर्मों के हिसाब से आत्माएं पाताल के विभिन्न स्तरों पर भेजी जाती हैं। सबसे निचले स्तर पर उन्हें पिशाचों के साथ रहना होता है जहां अत्यंत गर्मी और बहुत बुरे हालात होते हैं।
6. भुवरलोक में क्या होता है आत्मा के साथ : भुवरलोक में आत्मा स्वेच्छा के साथ नहीं रह सकती। जिस तरह धरती पर व्यक्ति अपनी मनमानी करता है, भुवरलोक में यह सब संभव नहीं है। यहां जितनी भी आत्माएं पहुंचती हैं, उन्हें स्वर्गलोक में रहने वाली पुण्य आत्माओं की निगरानी में रहना होता है। स्वर्ग लोक वो पहुंचता है जो अपने जीवनकाल में अध्यात्म के चरम तक जा पहुंचता है।
7. प्रेत आत्माओं का नियंत्रण : भुवरलोक में पहुंचने वाली आत्माएं अगर अपनी आध्यात्मिक मजबूती खो दें तो वह बहुत जल्दी पिशाचों, बुरी आत्माओं और प्रेतों के नियंत्रण आ जाती हैं। वो अपने ऊपर किसी बाहरी नियंत्रण को महसूस भी कर सकती हैं।
8. पाताल लोक में हालात : धरती पर इंसान चाहे कितने ही कष्ट या बुरी परिस्थितियों में हो सकता है, लेकिन वह हालात, पाताल के हालातों से बहुत बेहतर हैं। पाताल लोक में शत-प्रतिशत आत्माएं नकारात्मक शक्तियों के नियंत्रण में रहती हैं, जो उनसे कहीं ज्यादा ताकतवर होते हैं।
9. निचले स्तर पर बुरी ताकतें : पाताल लोक के जितने ज्यादा निचले स्तर पर जाते जाएंगे, दुख-तकलीफों और नकारात्मक हालातों की घुटन और ज्यादा बढ़ती जाएगी। हमें निचले स्तर पर दोबारा जन्म लेने से करीब 400-500 वर्ष पहले तक रहना पड़ सकता है।
10. पाताल की प्रताड़ना: पाताल लोक और निचले लोक की प्रताड़ना से व्यक्ति को मात्र एक ही चीज बचा सकती है और वो है उसका आध्यात्मिक विकास। यहां तक स्वर्ग में बिताए जाने वाले समय को भी आध्यात्मिक झुकाव द्वारा बढ़ाया जा सकता है। यहां तक कि मृत्यु के पश्चात हमारी आत्मा कितना ज्यादा आध्यात्मिक झुकाव रखती है, वह भी हमारे पुण्य कर्मों को बढ़ाकर जल्द से जल्द हमें धरती पर वापस आने का अवसर देता है।
11. ताकतवर आत्माएं : हालांकि यह इतना आसान नहीं होता क्योंकि शक्तिशाली और बुरी आत्माएं हमें किसी भी प्रकार के आध्यात्मिक कृत्य करने से रोकती हैं। वे इतनी ताकतवर होती हैं कि उनके सामने हम पूरी तरह निष्क्रिय साबित हो सकते हैं।
12. स्वर्ग की सुविधाएं : जहां एक ओर पाताल लोक की बुरी शक्तियां हमें अध्यात्म की ओर बढ़ने नहीं देतीं, वहीं स्वर्ग लोक की सुख-सुविधाओं में खोकर आत्मा अपना पहला कर्म, जो कि ईश्वर को याद करना है, को भूल जाती है। दोनों ही हालातों में नुकसान भुगतना पड़ता है।
13. पूर्वजन्म को जानना : इंसान केवल अपना पिछला जन्म ही जान सकता है। यूं तो आत्मा धरती पर ना जाने कितनी बार जन्म लेती है परंतु जब तक कि उसके अन्य जन्मों में कुछ खास ना घटित हुआ हो, वह केवल अपने पिछले जन्म के विषय में ही जान सकता है।
14. पूर्वजन्म की यादें : जब बच्चे का जन्म होता है, उसे पूर्वजन्म की हर बात याद रहती है, लेकिन जैसे-जैसे वो दुनियावी चीजों में मशगूल हो जाता है, धीरे-धीरे कर वह सारी बातें अपने दिमाग से निकालने लगता है।
15. धरती पर जन्म लेने का एकमात्र उद्देश्य होता है, कर्म करना। दुनियावी लेन-देन ना तो पाताल लोक में संभव है और ना ही किसी और लोक में, इसलिए आत्मा को दोबारा धरती पर आना ही पड़ता है। दूसरा, आध्यात्मिक कार्य करना भी एक जरूरी प्रक्रिया है जो धरती पर जन्म लेने वाली हर आत्मा को करनी ही चाहिए। जो ये नहीं करते, उनकी आत्मा बाद में कष्ट भोगती है।
16. अध्यात्म का महत्व : चलिए उपरोक्त विश्लेषण से एक बात तो स्पष्ट है कि ईश्वर के प्रति आस्था और अध्यात्म की ओर झुकाव, बड़ी से बड़ी मुश्किल से भी व्यक्ति को बचा सकती है, चाहे वे मुसीबत जीवित अवस्था में सामने आएं या फिर मरने के पश्चात।
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