उत्तर प्रदेश की औद्योगिक नगरी कहे जाने वाले शहर कानपुर में एक ऐसा मंदिर है, जिसके द्वार साल में केवल तीन दिनों के लिए खोले जाते हैं। देवी माता को समर्पित इस मंदिर के पट सिर्फ चैत्र नवरात्रि में सप्तमी, अष्टमी और नवमी तिथि के दिन खोले जाते हैं।
कानपुर के कोतवाली क्षेत्र के निकट शिवाला में स्थापित यह मंदिर साल के बाकी 362 दिन बंद रहता है। श्रद्धालु मंदिर के गर्भगृह के बाहर से ही देवी की आराधना करते हैं, क्योंकि मुख्य द्वार ताला लटका रहता है।
इस मंदिर में देवी शक्ति के एक विशेष रूप माता छिन्नमस्तिका की पूजा की जाती है। मंदिर के गर्भगृह में देवी की धड़विहीन प्रतिमा स्थापित है, जिससे रक्त की तीन धाराएं निकलती हैं, उसे उनकी दो सहचरियां पीती हुई दिखती हैं। देवी के इस रूप को कलयुग की देवी का रूप भी कहा जाता है।
परंपरा के अनुसार इस देवी के मंदिर में चैत्र नवरात्रि की सप्तमी तिथि के सुबह में बकरे की बलि दी जाती है और बकरे के कटे हुए सिराग्र पर कपूर रख कर देवी की आरती की जाती है। यहां की परंपरा और मान्यताओं के अनुसार, अष्टमी और नवमी तिथि को विधि-विधान से पूजा के बाद मंदिर के द्वार भलीभांति बंद कर दिए जाते हैं।
हज़ारों साल पहले राक्षसों एवं दैत्यों से मानव एवं देवता आतंकित थे। उसी समय मानव मां शक्ति को याद करने लगे। तब पार्वती (शक्ति) का ‘छिन्नमस्तिका’ के रूप में अवतरण हुआ। छिन्नमस्तिका का दूसरा नाम ‘प्रचण्ड चण्डिका’ भी है। फिर मां छिन्नमस्तिका खड़ग से राक्षसों-दैत्यों का संहार करने लगीं। यहां तक कि भूख-प्यास का भी ख्याल नहीं रहा, सिर्फ पापियों का नाश करना चाहती थीं। रक्त की नदियां बहने लगीं। पृथ्वी में हाहाकार मच गया। मां अपना प्रचण्ड रूप धारण कर कर चुकी थीं।
पापियों के अलावा निर्दोषों का भी वध करने लगीं। तब सभी देवता प्रचण्ड शक्ति से घबड़ाकर भगवान शिव के पास गये और शिव से प्रार्थना करने लगे कि मां छिन्नमस्तिका का प्रचण्ड रूप को रोकें, नहीं तो पृथ्वी पर उथल-पुथल हो जायेगी।देवताओं की प्रार्थना सुनकर भगवान शिव मां छिन्नमस्तिका के पास पहुंचे।
मां छिन्नमस्तिका भगवान शिव को देखकर बोली- “हे नाथ! मुझे भूख सता रही है। अपनी भूख कैसे मिटाऊं?” भगवान शिव ने कहा कि- “आप पूरे ब्रह्माण्ड की देवी हैं। आप तो खुद एक शक्ति हैं। तब भगवान शिव ने उपाय बताया कि आप अपनी गर्दन को खड़ग से काटकर निकलते हुए ‘शोनित’ (रक्त) को पान करें तो आपकी भूख मिट जायेगी।” तब मां छिन्नमस्तिका ने शिव की बात सुनकर तुरंत अपनी गर्दन को खड़ग से काटकर सिर को बाएं हाथ में ले लिया। गर्दन और सिर अलग हो जाने से गर्दन से खून की तीन धाराएं निकलीं, जो बाएं-दाएं ‘डाकिनी’-‘शाकिनी’ थीं। दो धाराएं उन दोनों की मुख में चली गयीं तथा बीच में तीसरी धारा मां के मुख में चली गयी, जिससे मां तृप्त हो गयीं।
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