अध्यात्म

हृदय को बनाएं वैकुंठ

Written by Bhakti Pravah

मनुष्य के हृदय के भीतर धर्म की मुख्य बात छिपी हुई है। हृदय को वैकुंठ बनाओ, क्योंकि वही है परमात्मा के लिए सबसे प्रिय जगह। मन को किसी प्रकार से संकोचमुक्त करो। मन को आखिर संकोचमुक्त कैसे किया जाय। मन को संकोचमुक्त करने का एकमात्र उपाय है साधना। तभी हम परमपुरुष को जान पाएंगे। मनुष्य जब आध्यात्मिक तरक्की करना चाहेगा तो वह दिशा-निर्देश प्राप्त करेगा किससे? व्यावहारिक मनुष्य से। जिन्होंने साधना की है और साधना से आगे बढ़े हैं, उनसे दिशा निर्देश प्राप्त करना होगा। वही है आप्तवाक्य। शास्त्र होने से ही आप्तवाक्य नहीं होता। जो आप्तवाक्य है, वही शास्त्र है। बाकी सब शास्त्र नहीं है- प्राप्तवाक्य है। मनुष्य को चलना है आप्तवाक्य के अनुसार।

आप्तवाक्य किसे कहते हैं? जो साधना के द्वारा अपने को परमात्मा में मिला देते हैं, उन्हीं को मालूम होता है कि परमात्मा क्या करना चाहते हैं, क्या करना नहीं चाहते। महाजनो येन गत: स पन्था:। महाजन यानी श्रेष्ठ व्यक्ति, जिनके द्वारा हम आप्तवाक्य पाते हैं, जिनके निर्देश के अनुसार मनुष्य को चलना है। पोथी में भगवान नहीं है। भगवान है वैकुंठ में। वैकुंठ है भक्त का हृदय। पंडित बनने से भगवान को कोई नहीं पाता। जो अनपढ़ है, वह भी भगवान को पा सकता है।

हर कर्म के लिए जिद की जरूरत होती है। अच्छे काम के लिए भी, खराब काम के लिए भी। खराब काम के लिए जिसके मन में जिद रहती है, वह दुनिया के लिए भयंकर बन जाता है। वैसे ही अच्छे काम के लिए जिसके मन में जिद रहती है, वह दुनिया के लिए महान बन जाता है। उसकी तरक्की कोई रोक नहीं सकता। परमार्थ की प्राप्ति के लिए इस तरह की जिद रहनी चाहिए कि मैं इसे पाकर रहूंगा। यह एक प्रकार की आध्यात्मिक जिद है। जीवन के किसी भी क्षेत्र में द्विविधा नहीं रहनी चाहिए। जहां द्विविधा आ गई, एक को रखो दूसरे का त्याग करो। यही है बहादुर मनुष्य बनने का लक्षण। कहा गया है मनुष्य के जीवन में एक ही व्रत है, वह व्रत है परमपुरुष को पाना। दूसरा व्रत कोई हो ही नहीं सकता।

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