अध्यात्म

हिंदू परिवार का केंद्र स्त्री और धर्म.

Written by Bhakti Pravah

हिंदू सनातन धर्म ‘संयुक्त परिवार’ को श्रेष्ठ शिक्षण संस्थान मानता है। धर्मशास्त्र कहते हैं कि जो घर संयुक्त परिवार का पोषक नहीं है उसकी शांति और समृद्धि सिर्फ एक भ्रम है। घर है संयुक्त परिवार से। संयुक्त परिवार से घर में खुशहाली होती है।

संयुक्त परिवार की रक्षा होती है सम्मान, संयम और सहयोग से। संयुक्त परिवार से संयुक्त उर्जा का जन्म होता है। संयुक्त उर्जा दुखों को खत्म करती है। ग्रंथियों को खोलती है। संयुक्त परिवार से बढ़कर कुटुम्ब। कुटुम्ब की भावना से सब तरह का दुख मिटता है। यही पितृयज्ञ भी है। परिवार के भी नियम है।

कुल का सम्मान जरूरी : कलह से कुल का नाश होता है। कुलिनता से कुल की वृद्धि। संयुक्त हिंदू परिवार का आधार है- कुल, कुल की परंपरा, कुल देवता, कुल देवी, कुल धर्म और कुल स्थान।

परिवार का केंद्र है स्त्री और धर्म। जहां इनका सम्मान होता है वहां रोग और शोक नहीं होते। वर्तमान में हिन्दू परिवार में ‘अहंकार और ईर्ष्या’ का स्तर बढ़ गया है जिससे परिवारों का निरंतर पतन हो रहा है। अब ज्यादातर परिवार एकल परिवार हो गए हैं। इसके बहुत से कारण हैं।

पहले हिन्दुओं में एक कुटुंब व्यवस्था थी, परन्तु ईर्ष्या और पश्चमी सभ्यता की सेंध के कारण हिन्दुओं का ध्यान न्यूक्लियर फेमिली की ओर हो गया है, जोकि अनुचित है। संयुक्त परिवार में ही बच्चे का ठीक-ठीक मानसिक विकास होता है। एकल परिवार में बच्चे के मस्तिष्क की संरचना अलग होती है।

स्त्री का धर्म : शास्त्र अनुसार स्त्री परिवार और धर्म का केंद्र बिंदु है इसीलिए स्त्री को भी अपने धर्म का पालन करना चाहिए। शास्त्र कहते हैं कि स्त्री को पति और घर के बुजुर्ग की बातों का सम्मान और पालन करना चाहिए। पति से विरोध नहीं बल्कि अनुरोध करना चाहिए। पति को भी पत्नी को आदेश नहीं देना चाहिए बल्कि उससे अनुरोध करना चाहिए।

किसी विचार पर मतभेद होने पर भी संयमित रहकर पति का ही साथ देना चाहिए या पति से इस पर एकांत में ही चर्चा करना चाहिए। स्त्री को अपना चरित्र उत्तम बनाए रखना चाहिए। शास्त्र कहते हैं कि जब पति-पत्नी में आपसी कटुता या मतभेद न हो तो गृहस्थी धर्म, अर्थ व काम से सुख-समृद्ध हो जाती है।

संयुक्त परिवार के रिश्ते : संयुक्त परिवार में पिता के माता, पिता को दादी और दादा कहते हैं। पिता के छोटे भाई को काका (चाचा), बड़े भाई को ताऊ कहते हैं। पिता की बहन को बुआ कहते हैं। काका की पत्नी को काकी, बेटी को बहिन और बेटे को भाई कहते हैं। ताऊ की पत्नी को ताई, बेटी को बहिन और बेटे को भाई कहते हैं। इसी तरह मझौले काका की पत्नी को काकी, बेटी को बहिन और बेटे को भाई कहते हैं।

संयुक्त परिवार का महत्व : आज के बदलते सामाजिक परिदृश्य में संयुक्त परिवार तेजी से टूट रहे हैं और उनकी जगह एकल परिवार लेते जा रहे हैं, लेकिन बदलती जीवनशैली और प्रतिस्पर्धा के दौर में तनाव तथा अन्य मानसिक समस्याओं से निपटने में अपनों का साथ अहम भूमिका निभा सकता है। संयुक्त परिवारों में आस पास काफी लोगों की मौजूदगी एक सहारे का काम करती है।

संयुक्त परिवार में जहां बच्चों का लालन-पालन और मानसिक विकास अच्छे से होता है वहीं वृद्धजन का अंतिम समय भी शांति और खुशी से गुजरता है। वह अपनी सभी इच्छाओं की पूर्ति कर सकते हैं। हमारे बच्चे संयुक्त परिवार में दादा-दादी, काका-काकी, बुआ आदि के प्यार की छांव में खेलते-कूदते और संस्कारों को सीखते हुए बड़े हो। संयुक्त परिवार से ही संस्कारों का जन्म होता है।

हिंदुओं में सबसे ज्यादा संयुक्त परिवार टूट रहे हैं उसके कई कारण है उनमें से सबसे बड़ा कारण है गृह कलह, सास-बहु, पति-पत्नी के झगड़े, गरीबी और महत्वकांक्षा। इस सबके चलते जहां एकल परिवार बनते जा रहे हैं वहीं सबसे बड़ा ज्वलंत सवाल सामने आ रहा है- तलाक।

धर्म को जानें : दो इंसानों की सोच एक नहीं हो सकती है इस सोच को एक करने के लिए जिस माध्यम की सबसे बड़ी भूमिका होती है वह है धर्म। धर्म को समझने वाले में विनम्रता आती है तथा स्त्री का सम्मान बढ़ता है।

धर्म को जानने वाला जहां सभी के विचारों का सम्मान करना जानता है वहीं वह अपने रूठों को मनाना भी जान जाता है। ऐसे परिवार में पति रुठा तो भाभी ने मनाया, पत्नी रूठी तो ननद ने प्यार से समझा दिया। ज्यादा हुआ तो सभी ने मिल बैठ कर बीच का रास्ता निकाल दिया।

ऐसे जन्मता है परिवार में प्रेम :-

0.यदि आप घर के सदस्यों से प्रेम नहीं करते हैं तो आपसे धर्म, देश और समाज से प्रेम या सम्मान की अपेक्षा नहीं की जा सकती।

1.धर्म से सदा जुड़े रहने से संयुक्त परिवार में प्रेम पनपता है। धर्म से जुड़े रहना का तरीका है- एक ही ईष्ट बनाकर नित्य प्रतिदिन ‘संध्यावदन’ करना। सत्संग से धर्म को जानना।

2.घर के सभी सदस्य मिलकर सप्ताह में एक बार परमेश्वर की प्रार्थना करें या ध्यान करें।

3.घर के सभी सदस्य एक साथ बैठकर ही भोजन करें। साथ बैठ कर भोजन करने से एकता और प्रेम बढ़ता है।

4.घर के सभी सदस्य एक दूसरे से हर तरह के विषयों पर शांतिपूर्ण तरीके से वार्तालाप करें। किसी भी सदस्य पर अपने विचार न थोपें।

5.घर में हंसीखुशी का माहौल रहे इसके लिए सभी को अपने स्तर पर प्रयास करने चाहिए। घर में हर तरह के मनोरंजन के साधन रखें।

6.घर की अर्थव्यवस्‍था में सभी एक-दूसरे का बराबर सहयोग करें।

7.कुल परंपरा, रिवाजों का पालन करें।

8.संपत्ति और पूंजी का सभी पर अधिकार समझे। रिश्तों के बीच कभी भी रुपयों को न आने दें। घर का कोई भी सदस्य किसी दूसरे सदस्य से न तो अमीर होता है और न गरीब। सभी खून के रिश्तें होते हैं।

9.माता-पिता, भाई-बहन, बेटी-बेटा और पत्नी के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझे।

10.वर्ष में एक या दो बार मनोरंजन या पर्यटन के लिए सभी मिलकर बाहर जाएं।

12.परिवार के सदस्यों को जहां एक दूसरे की बुराई करने से बचना चाहिए वहीं उन्हें घर की स्त्रीयों के मायके की बुराई से भी दूर रहना चाहिए।

13. घर के सदस्य यदि एक-दूसरे की तारीफ और सम्मान करेंगे तो निश्चित ही संयुक्त परिवार में एकजुटता आएगी।

14.परिवार के पुरुष सदस्यों को किसी भी प्रकार का नशा नहीं करना चाहिए और स्त्रीयों को अपनी मर्यादा समझना चाहिए।

15.स्त्रीयां अपने पिता और अपने पति के घर में ही रहती है तो सम्मान बरकरार रहता है। दोनों के घर के अलावा और कहीं रात बिताती है तो इससे भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है।

ॐ शांति शांति शांति ॐ
सदा खुश मुस्कुराते रहिए ,आप हमारी दुआओं में सदेव रहोगे!

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