गीता ज्ञान

सुख का उल्टा दुःख होता है,

Written by Bhakti Pravah

सुख का उल्टा दुःख होता है, प्रेम का उल्टा घृणा है, बंधन का उलटा मुक्ति है, किन्तु आनंद का उल्टा क्या ? स्वर्ग का उल्टा नरक, किन्तु मोक्ष का उलटा क्या ? जिस आनंद को आप स्वीकार करते हैं, उसे सुख कहते हैं, और जिसे स्वीकार नहीं करते वही दुःख है | एक व्यक्ति के पास एक करोड़ रुपये थे, उसके पचास लाख खो गए, जबकि एक के पास कुछ नहीं था, उसे पचास लाख मिल गए | अब दोनों के पास पचास लाख रुपये हैं, किन्तु एक छाती पीट पीट कर रो रहा है, जबकि दूसरा खुशी के कारण पागल हुआ जा रहा है | आनंद का मतलब यह नहीं है कि अब दुख नहीं आयेंगे, आनंद का मतलब है, अब आप ऐसी व्याख्याएं नहीं करेंगे जो उन्हें दुःख बना दें | आनंद का मतलब यह भी नहीं है कि अब सुख ही सुख आयेंगे, आनंद का मतलब यही है कि आप उनकी वे व्याख्याएं छोड़ देंगे जो उन्हें सुख बनाती हैं | अब चीजें जैसी होंगीं, होंगीं | धुप धुप होगी और छाया छाया | कभी धुप होगी कभी छाया होगी | आप उनसे प्रभावित होना बंद हो जायेंगे | आप जान जायेंगे कि चीजें आती हैं और चली जाती हैं |
यही कृष्ण चेतना है |

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