अध्यात्म

सत्संग से श्रोताओं को शराब से दूर रहने का उपदेश देते थे

Written by Bhakti Pravah

एक दिन एक नास्तिक व्यक्ति साधु के पास गया और बोला :-महोदय एक बात बताईये “यदि मैं खजूर खाऊँ तो क्या मुझे पाप लगेगा ?
साधु ने कहा बिल्कुल नहीं।

नास्तिक ने अगला प्रश्न किया :-और यदि मैं उस खजूर के साथ थोड़ा पानी मिला लूँ और तब खाऊँ,तो क्या मुझे पाप लगेगा ?
साधु ने कहा इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा ।

उस नास्तिक ने पुनः प्रश्न किया :-और महोदय ,यदि मैं उस खजूर में पानी के साथ-साथ थोड़ा खमीर मिलाकर खाऊँ ,तो कोई धार्मिक अवज्ञा होगी ?
साधु सारी बात समझ गये थे,किन्तु फिर भी बड़े शांत स्वर में उत्तर दिया :-“नहीं ,बिल्कुल नहीं ।”

अब नास्तिक तर्क करता हुआ बोला :-तो फिर धार्मिक गृंथों में शराब पीना पाप क्यों बतलाया गया है,जबकि वह इन तीनों के मिलाने से ही बनती है?

साधु ने नास्तिक के सवाल का जवाब न देते हुए उल्टे उससे ही प्रश्न कर दिया :-अच्छा ,एक बात बताओ । यदि मैं तुम पर मुठ्ठी भर धूल फेंकूँ ,तो क्या तुम्हें चोट लगेगी ? 

नास्तिक का जवाब था :-“नहीं”

साधु ने पूछा :- और यदि उस धूल में थोड़ा पानी मिला लूँ और तब तुम पर फेंकूँ ,तो क्या कोई फर्क पड़ेगा ?

प्रसन्नता से नास्तिक बोला :-तो भी मुझे कोई चोट नहीं पहुँचेगी ।

साधु ने अगला प्रश्न किया :-यदि मैं उस मिट्टी और पानी में कुछ पत्थर मिलाकर तुम्हारे ऊपर फेंकूँ तो क्या अन्तर होगा ?

घबराकर नास्तिक बोला :-तब तो मेरा सिर ही फूट जायेगा ।

अब साधु ने शाँति से कहा :-मुझे विश्वास है कि अब तुम्हें अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा ।

अब नास्तिक वास्तविकता से परिचित हो गया था । सत्संग और शास्त्रों में हमें जो समझाया जाता है और जिन चीजों का परित्याग करने को कहा जाता है उसमें जीवात्मा का ही फायदा है !

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