तरुण सागर जी संत प्रवचन

श्री तरुण सागर जी महाराज 18

Written by Bhakti Pravah

” दान देना उधार देने के समान है | देना सीखो क्योंकि
जो देता है वह देवता है और जो रखता है वह राक्षक |
ज्ञानी तो इशारे से ही देने को तेयार हो जाता है मगर नीच  लोग
गन्ने की तरह कूटने- पीटने के बाद ही देने को राजी होते है |
जब तुम्हारे मन में देने का भाव जागे तो समजना पुण्य का समय आया है |
अपने होश – हवास में कुछ दान दे डालो क्योंकि जो दे
दिया जाता वह सोना हो जाता है और जो बचा लिया जाता है वह मिट्टी हो जाता है |
भिखारी भी भीख में मिली हुई रोटी तभी खाए जब उसका एक टुकड़ा कीड़े – मकोड़े को डाल दे|

अगर वह ऐसा नहीं करता तो सात  जन्मो तक भिखारी ही रहेगा | “

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