अध्यात्म

श्री कृष्ण नाम का अर्थ !!

Written by Bhakti Pravah

जीवन की हर एक हलचल के केन्द्र में आज नारी की महत्वपूर्ण स्थिति है। अब उसके वजूद को दर-किनार नहीं किया जा सकता है। निश्चित ही नारी लेखन का दायरा अब भी सीमित है लेकिन समर्थ लेखिका पुनिता साह ने शानदार कलम चलाई है। श्री कृष्ण नाम का अर्थ !!

श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे, हे नाथ नारायण वासुदेव

श्रीकृष्ण का अर्थ है मन को आकर्षित करने वाले।
गोविन्द का अर्थ है इन्द्रियों के रक्षक भगवान्‌।
हरे का अर्थ है दुःखहर्ता।
मुरारे का अर्थ है मुर नामक राक्षस के विजेता।
हे नाथ का अर्थ है आप नाथ हैं और मैं आपका सेवक।
नारायण का अर्थ है मैं नर हूँ, आप नारायण हैं।

भगवान श्रीकृष्ण का अर्थ कृष ((हर लेना या आकर्षित कर लेना)) लेना है। प्रभु श्रीकृष्ण का मतलब है आकर्षण। श्रीकृष्ण मन, ताप, पाप आदि को अपनी ओर खींच लेते हैं। मन की चोरी करने वाले श्रीकृष्ण हैं, उन्होंने राधा रानी समेत समस्त गोपियों के मन का हरण कर लिया था। भगवान का स्वभाव व प्रेम भाव इतना सुंदर है कि जो भी उनके दर्शन करता या मिलता कृष्णमय हो जाता।
भगवान निष्कर्म भक्ति के दाता हैं, इसीलिए उनका नाम ‘कृष्ण’ है। ‘कृष्’ का अर्थ है- ‘कर्मों का निर्मूलन’, ‘ण’ का अर्थ है- ‘दास्यभाव’ और ‘अकार’ प्राप्ति का बोधक है। वे कर्मों का समूल नाश करके भक्ति की प्राप्ति कराते हैं, इसीलिए कृष्ण कहे गये हैं। नन्द :- भगवान के करोड़ों नामों का स्मरण करने पर जिस फल की प्राप्ति होती है, वह सब केवल कृष्ण नाम का स्मरण करने से मनुष्य अवश्य प्राप्त कर लेता है।

भगवान ‘श्रीहरि’ अर्थात विष्णु निर्वाण मोक्ष प्रदान करने वाले हैं, इसीलिए वे ‘कृष्ण’ कहे गये हैं। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं और ग्रंथों में श्रीकृष्ण को स्वयं भगवान विष्णु का अवतार माना गया है। सभी देवताओं में इन्हें सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। लोगों का यह विश्वास है कि श्रीकृष्ण का नाम लेने मात्र से ही सभी पाप कट जाते हैं। इनका भजन, कीर्तन और भक्ति करने से बड़ा पुण्य मिलता है।

भगवान विष्णु के सब नामों में कृष्ण नाम ही सबकी अपेक्षा सारतम वस्तु और परात्पर तत्त्व है। कृष्ण नाम अत्यन्त मंगलमय, सुन्दर तथा भक्तिदायक है। ‘ककार’ के उच्चारण से भक्त पुरुष जन्म मृत्यु का नाश करने वाले कैवल्य मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। ‘ऋकार’ के उच्चारण से भगवान का अनुपम दास्यभाव प्राप्त होता है। ‘षकार’ के उच्चारण से उनकी मनोवांछित भक्ति सुलभ होती है। ‘णकार’ के उच्चारण से तत्काल ही उनके साथ निवास का सौभाग्य प्राप्त होता है और ‘विसर्ग’ के उच्चारण से उनके सारूप्य की उपलब्धि होती है, इसमें संशय नहीं है। ‘ककार’ का उच्चारण होते ही यमदूत कांपने लगते हैं। ‘ऋकार’ का उच्चारण होने पर ठहर जाते हैं, आगे नहीं बढ़ते। ‘षकार’ के उच्चारण से पातक, ‘णकार’ के उच्चारण से रोग तथा ‘अकार’ के उच्चारण से मृत्यु- ये सब निश्चय ही भाग खड़े होते हैं, क्योंकि वे नामोच्चारण से डरते हैं।

ज्योतिषाचार्य सारिका (सोनिया) गिस्ता

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